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बाबा बैजनाथ की कथा कौन नहीं जानता ?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
संसार में अनेक देशों की जनसंख्या भी उतनी नहीं है, जितने भगवाधारी हर वर्ष सावन के महीने में बाबा बैजनाथ के शिवलिंग पर जल चढ़ाने पहुँच जाते हैं।
बाबा बैजनाथ की कथा कौन नहीं जानता! औघड़दानी भगवान शिव केवल मनुष्यों के ही देवता नहीं हैं, वे संसार के समस्त चर-अचर के मालिक हैं, उनपर कृपा बरसाते हैं। वे देवताओं को मिल जाते हैं और दैत्यों को भी! यही कारण है कि बुराई के प्रतीक लंकेश रावण पर भी उनकी कृपा दृष्टि थी। रावण की तपस्या से प्रसन्न भगवान शिव ने उसे अपना ज्योतिर्लिंग तो दिया, पर यह भी कहा कि इसे जहां भी भूमि पर रख दिया जाएगा, वहीं स्थापित हो जाएगा।
संध्या के समय जब विप्र रावण संध्या वंदन के लिए रुका तो उसने ऐसे किसी व्यक्ति को ढूंढा जो संध्या पूजन करने भर तक शिवलिंग को थाम ले। लोक में मान्यता है कि बैजू नाम के ग्वाले ने कुछ देर तक शिवलिंग को थामा, पर रावण को देर होते और सांझ गहराती देख कर उसने शिवलिंग वहीं रख दिया और गायों को हांकने चला गया। कहीं कहीं यह कार्य भगवान विष्णु और कहीं कहीं भगवान गणेश द्वारा किया गया बताया जाता है।
लोक प्राचीन कथाओं को अनेक रूपों में याद रखता है। इस कथा के भी अनेक रूप हैं। हां, यह बात सभी मानते हैं कि इस स्थान का नाम वैजनाथ धाम उसी बैजू ग्वाले के नाम पर है।
इस कथा को सुन कर आपको लगेगा कि यहाँ तो रावण के साथ छल हो गया। तो सुनिये! छल भी एक सामान्य व्यवहार ही है, और यदि संसार के हित के लिए किसी व्यक्ति विशेष से छल करना भी पड़े तो संकोच नहीं करना चाहिये। धर्म की बागडोर अधर्मी व्यक्ति के हाथ में जाय तो समूची सभ्यता को कष्ट भोगना पड़ता है। संसार को रावण से अत्याचारों से मुक्त करने के लिए यह छल आवश्यक था।
बैजनाथ धाम के शिवलिंग को कामना लिंग कहते हैं। रावण ने भोलेनाथ से मांगा था कि अपना ऐसा विग्रह दीजिये जो मेरी हर मनोकामना पूरी कर दे। देवघर में स्थापित भोलेनाथ अपने भक्तों की हर कामना पूरी करते हैं।
देवघर में केवल बाबा ही नहीं हैं, मइया भी हैं। माँ शक्ति का पवित्र शक्तिपीठ भी है यहाँ। यहाँ माता सती का हृदय गिरा था। माता का मृत शरीर छिन्न-भिन्न हुआ तब भी हृदय वहीं गिरा जहाँ पति विराजमान थे। उतना प्रेम संसार में कहाँ होगा…
देवघर चिताभूमि भी कहलाता है, क्योंकि यहीं माता के हृदय का दाह-संस्कार किया गया था। और फिर उसी चिताभष्म को अपने शरीर में लगा कर बाबा युगों तक संसार से कटे वैरागी हो गए थे। यही कारण है कि यहाँ प्रसाद में भी चिता भष्म दी जाती है।
यहाँ माता के मंदिर और बाबा के मंदिर के शिखरों में बीच लाल कपड़े का रिबन बांधा जाता है। यह गठबंधन है, संसार के सबसे पूज्य युगल का गठबंधन। नए विवाहित जोड़े भी बंधवाते है यह गांठ, इस प्रार्थना के साथ कि उनके मध्य भी शिव-पार्वती सा प्रेम बना रहे। उनकी कृपा हो तो कुछ भी असम्भव नहीं।
सुल्तानगंज में, जहां से जल उठाया जाता है, वहाँ गंगा उत्तर की ओर बहती हैं। सम्भवतः दो ही स्थान ऐसे हैं जहाँ गंगा उत्तरवाहिनी है। एक काशी और दूसरा सुल्तानगंज।
देवघर की यात्रा में असँख्य तीर्थों की श्रृंखला है। अजगैबीनाथ, बासुकीनाथ… हर ओर बाबा की कृपा पसरी हुई है।
बाबा की कृपा आप सब पर भी बरसे। हर हर महादेव…

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साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार है)
गोपालगंज, बिहार।

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