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चंदखुरी के फुटहा मंदिर के खंडहरों की खामोशियों को सुनिए। वे राम कथा सुनाती हैं

फुटहा मंदिर आठवीं शताब्दी का है, और तुलसीदास जी यही कोई 500 बरस हुए। फुटहा मंदिर में राम कथा के प्रसंग उत्कीर्ण हैं। अर्थ यह हुआ कि तब लोग न केवल राम को जानते थे, बल्कि रामकथा भी जानते थे।

अरे ये तो हमारे प्रभु हैं! अरे हमारे प्रभु श्री राम आ गए!!

चौदह वर्षों की प्रतीक्षा पूरी हुई थी, प्रसन्नता अश्रु बन कर सबकी आंखों से झरने लगी। रुंधे गले से चिल्ला कर निषादराज ने कहा, "सभी अयोध्या चलने की तैयारी करो, प्रभु वहीं जा रहे हैं..."

अखिलेश को नहीं मालूम कि भाजपा ने मंडल और कमंडल की दूरी को ख़त्म कर दोनों को एक कर दिया…

सैकड़ो स्वामी प्रसाद मौर्य और ओमप्रकाश राजभर अखिलेश के साथ चले जाएं। मंडल-कमंडल अब अलग होते नहीं दीखते। फेवीकोल का जोड़ लग गया है।

संसार में इतने लोग भोजन करते हैं, उनके बरतन कौन मांजता है?

बड़े से बड़ा धन्नासेठ भी अपने जूतों के तस्में स्वयं बाँधता है, कमीज़ के बटन किसी दास से नहीं लगवाता। नृपेन्द्र के केश कोई और काढ़ता हो, वैसी बात नहीं है।