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मातृभूमि के दुखांत विभाजन के पीछे फिर था क्या ??

-अजीत सिंह की कलम से-

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Positive India:Ajit singh:
2024 मे मोदी को हरा कर कुर्सी कब्जाने का ख्वाब देखने वाले कांग्रेस और उसके प्रसव केंद्र मे पैदा और पाली पोसी गई अनेक पार्टियों के मुंगेरीलालों की सनातन राष्ट्रवाद विरोधी हरकतों और उनकी मक्कारी तथा अमर्यादित बयानो को देख कर बस एक सवाल मेरे मन मे आ रहा है कि राजनीति क्या राष्ट्रहित से ऊपर हो सकती है…….??

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दरअसल वर्तमान कालखंड मे लगातार राष्ट्रवाद और सनातन पर आघात करके खुद को और अपने पापो को विक्टिम कार्ड की ओट छिपा लेने की सोची समझी साजिश के साथ मोदी की राष्ट्रवादी राजनीति से बेहद पीड़ित देश के मोदी विरोधी (मक्कार,बेईमान,झूठे,स्वार्थी,वंशवादी,अमानवीय) नेताओं के कथनो,कारनामो के कारण इस प्रश्न को पूछने के पीछे मेरा एक और मूल प्रश्न छिपा है कि मातृभूमि के दुखांत विभाजन के पीछे फिर था क्या….??

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उस समय तक तो कांग्रेस 62 वर्ष की प्रौढ़ हो चुकी थी,वामपंथ भी अधेड़ हो चुका था…इन दोनो के साथ गंगा जमुनी तहजीब वाले भी इन दोनो से ज्यादा अनुभवी थे….यह आयु वर्ग तो गंभीरता का परिचायक होती है फिर इनमे से कोई बतायेगा कि यह राष्ट्र बंटा क्यों?????

इन सवालों पर कुतर्क करने पर मजबूर कांगियों और लाल सलाम को उनके हाल पर छोड़ कर हम अपनी बात कर लें…..क्योंकि हमारे लिये अखण्ड भारत एक स्वप्न न होकर बल्कि विचार पूर्वक लिया गया एक संकल्प है..!!

क्योंकि भूमि को हमने माता माना है…माता भूमि पुत्रोह्मं पृथ्व्यिा……..तो विभाजन को हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं………जिनके लिए भारत जमीन का टुकड़ा नहीं है वह मातृभूमि के विभाजन की वेदना को कैसे भूल सकते हैं….जिसके अन्दर यह भाव विद्यमान है कि जियेंगे तो इसके लिए…मरेंगे तो इसके लिए,वह अखंण्ड भारत के संकल्प को कैसे त्याग सकता है!!!

जो भारत सदियों से अखंण्ड था उसकी सीमाएं वृहद थी वह कुछ कालखण्डों में सिमट कैसे गया??

तब ध्यान में आता है कि हमारी आन्तरिक कमजोरियों और तत्कालीन परिस्थितियों के कारण देश का एक बार नहीं कई बार विखंण्डन हुआ…जिनमें सबसे कष्टकारी विभाजन 1947 का हुआ…वास्तव मे जिसे रोका जा सकता था……….जिस देश की स्वाधीनता के लिए वर्षों तक क्रान्तिकारियों ने अनवरत संघर्ष किया और अगणित बलिदान दिया उन क्रन्तिकारियों के स्वप्नों को कांग्रेस की सत्ता लोलुपता ने मिट्टी में मिला दिया………………..अन्यथा जब हम 1905 में गुलामी के दौर में बंग भंग को विफल कर सकते थे तो 1947 में तो नेतृत्व की बागडोर सम्भालने वाली कांग्रेस मजबूत स्थिति में थी…तो फिर विभाजन क्यों हुआ???

इससे यह सिद्ध होता है कि 1947 का विभाजन तत्कालीन कांग्रेसी नेताओं की सत्तालोलुपता का परिणाम था………..इस विभाजन के पीछे अंग्रेजों की चाल तो थी ही,लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम लीग उसकी हस्तक बनीं…दरअसल अंग्रेज भारत छोड़ने से पहले देश का टुकड़ों-टुकड़ों में बंटवारा करवाना चाह रहे थे….इसी कुत्सित उद्देश्य से लार्ड माउण्टबेटन और एडविना भारत आये थे….पण्डित जवाहर लाल नेहरू एडविना के जाल में फंस गये और एडविना अपने मिशन में पूर्णतया सफल रही….जाते-जाते अंग्रेजों ने भारत का वीभत्स विभाजन कर डाला…….अफसोस तो यह है कि तत्कालीन कांग्रेसी नेतृत्व किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में रहा…..क्योंकि उसे तो सत्ता की चाहत थी…उसने सत्ता के लिए मातृभूमि का सौदा कर डाला…..आज बचे खुचे कांग्रेसी देश भर में डंका पीट रहे कि देश को स्वतंत्रता कांग्रेस ने दिलाई जबकि सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस ने देश को आजादी नहीं विभाजन का उपहार दिया….यह मैं डंके की चोट पर कह रहा हूं !!!

वैसे 1947 का विभाजन पहला विभाजन नहीं था भारत की सीमाओं का संकुचन उसके काफी पहले शुरू हो चुका था लेकिन ताजा घाव ज्यादा कष्टकारी होता है………..उससे भी ज्यादा वह विचार घातक है जिसके आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ…..अखण्ड भारत के मार्ग में भी सबसे बड़ी बाधा मुस्लिमों की पृथकतावादी सोच ही है…जो आज भी कुलबुला कर सर तन से जुदा वाला नारा लगा कर खुद को नंगा कर रही है……!!!

अफगानिस्तान,हिमालय की गोद में बसा नेपाल,भूटान,तिब्बत,श्रीलंका,म्यामार के बाद फिर 1947 में पाकिस्तान भी हमसे अलग हो गया…………..अगर हम इतने घावों के बाद भी सचेत नहीं हुए तो विश्वास करिये यह क्रम आगे भी चलता रहेगा और देश का विभाजन होता रहेगा…..आज देश के कई हिस्से में विभाजनकारी शक्तियां राष्ट्र को तोड़ने में लगी हैं….हम सबको संगठित होकर ऐसी विभाजनकारी ताकतों को मानसिक,वैचारिक और सामाजिक रूप से समाप्त करना ही होगा….आपने ध्यान दिया कि मुझे नही पता….लेकिन मै इतना जानता हूं कि पूर्व में हुए विभाजन से यह बात स्पष्ट हो गयी है कि जिन-जिन क्षेत्रों से हिन्दू घटा वह भाग देश से कटा….शायद 56″ सीने वाली सरकार मे अब यह संभव नही होने वाला है….लेकिन इसके लिये हमे एकजुट होकर सफेद दाढ़ी वाले को वैचारिक समर्थन देते ही रहना होगा….!!!

वास्तव मे भारत विभाजन की नींव तो अंग्रेजों ने 1905 में ही बंग भंग के रूप में डाल दी थी…ये अलग बात है कि वे इसमें वह असफल रहे…..इसके बाद तो साजिशें चलती रही…षडयंत्र होते रहे….फिर 1946 में देश में चुनाव हुए….कांग्रेस और मुस्लिम लीग दो दल मैदान में थे….जहां मुस्लिम लीग ने मुस्लिम मतदाताओं के समक्ष पाकिस्तान का नारा लगाया वहीं कांग्रेस ने देश की अखण्डता को लेकर राष्ट्र के नागरिकों का समर्थन मांगा…देश की हिन्दू जनता को विश्वास था कि कांग्रेस देश की एकता अखण्डता को अक्षुण रखेगी….चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला इसके बाद कांग्रेस विभाजन को रोक नहीं पायी?????

देश के साथ कांग्रेस ने सबसे बड़ा और घातक विश्वासघात किया,परिणामस्वरूप देश दो टुकड़ों में बंट गया…बापू कह रहे थे कि भारत का विभाजन हमारी लाश पर होगा…नेहरू भी कह रहे थे कि विभाजन हमें स्वीकार्य नहीं है……अंतत: कांग्रेस ने देश का विभाजन स्वीकार्य कर लिया… जिस अखंण्ड हिन्दुस्तान की आजादी के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ से कामरूप तक अनगिनत क्रान्तिकारियों ने नि:स्वार्थ बलिदान दिया उसका सौदा कुर्सी के लालची व्यापारियों द्वारा कर लिया गया…!!

एक तरफ जहां दिल्ली में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था तो वहीं पाक में हिन्दू मां बहनों की इज्जत लूटी जा रही थी…….ऐसे समय में कांग्रेसी जब नेहरू के प्रधानमंत्री बनने पर जाम से जाम लड़ा रहे थे तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक अपनी जान को हथेली पर रखकर पाक में फंसे हिन्दुओं को सुरक्षित निकालने में लगे थे…..जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की,तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण त्याग दिये…………उस समय पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज़्यादा राहत शिविर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने लगाए थे…..लेकिन वामपंथी इतिहास लेखकों के बल पर कांग्रेस ने न केवल देश का गलत इतिहास ही लिखाया वरन् संघ के अप्रतिम योगदान की उपेक्षा कर दी गई….यह विभाजन के बाद कांग्रेस द्वारा किया गया एक और पाप था….!!!

भक्त प्रहलाद की नगरी मुल्तान जहां भगवान नृसिंह का अवतार हुआ…भगवान राम के पुत्र लव द्वारा बसाई गयी नगरी लाहौर जहां गुरू अर्जुनदेव,वीर हकीकत राय, भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव बलिदान हुए। विश्व में अध्ययन अध्यापन के लिए प्रसिद्ध तक्षशिला का विश्वविद्यालय, 51 शक्तिपीठों में शुमार माता हिंगलाज का मन्दिर,पांडवों की स्मृति को संजोए कटासराज मंदिर और ननकाना साहिब को हमने खो दिया…ढाकेश्वरी माता का मंदिर हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है….भगवान शंकर का कैलाश पर्वत और मानसरोवर भी पहले ही हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर निकल गया….जानते हैं इस समय 78,114 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पाक तथा 42,735 हजार वर्ग किमी चीन के अवैध अधिकार में है…….इसमें पाक द्वारा 1963 में अपने कब्जे से चीन को उपहार में दिया गया 5180 वर्ग किमी भू क्षेत्र भी सम्मिलित है….जबकि यह सब हमारी मातृभूमि का ही अँश है..!!

महर्षि अरविन्द ने स्वाधीनता के समय भविष्यवाणी की थी कि देर चाहे कितना भी हो पाक का विघटन और उसका भारत में विलय निश्चित है…आज स्थितियां अनुकूल हो रही हैं……जहां पाक अधिग्रहीत कश्मीरी नागरिक भारत में मिलने के लिए आतुर है….वहीं बलूच में भी चिंगारियां उठ रही हैं……….पाक में पंजाबी,सिंधी और बंगाली मुस्लिमों में आपस में एकता नहीं है…यह सकारात्मक पहेली है,जिसको हल करने का सूत्र मोदी और शाह जान चुके हैं….उसी पर काम कर रहे हैं…यह मै नही कह रहा, बल्कि पड़ोसी देश की बौखलाहट से भरी लगातार की जा रही बयानबाजी साबित कर रही है..!

हमारी अखंडता का मार्ग सांस्कृतिक है…..भले ही हमारी राजनीतिक इकाइयां अलग-अलग हों लेकिन सांस्कृतिक एकता अक्षुण रहनी चाहिए…देश तो बनते और टूटते हैं लेकिन राष्ट्र कभी टूटता नहीं है….जैसे जर्मनी एक राष्ट्र था परन्तु उसका राजनैतिक कारणों से विभाजन हो गया जो अप्राकृतिक था अन्तत: बाद में विभाजन समाप्त हुआ….यही वियतनाम में भी हुआ….लेकिन वहीं सोवियत संघ एक देश अवश्य था पर वह राष्ट्र कभी नहीं हो सका यही कारण था कि वह अलग-अलग देशों में विभक्त हो गया…इस तरह मुझे विश्वास है कि भारत का विभाजन भी स्थाई नहीं है वह कृत्रिम है….बस देश के जनमानस और राजनैतिक नेतृत्व जिस दिन प्राणप्रण से एक हो जायेगा,उसी दिन भारत प्राचीन अखंडता यानी पूर्णता को प्राप्त हो जायेगा….वर्तमान केन्द्रीय नेतृत्व में ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति और मनोबल है…गृहमंत्री अमितशाह ने संसद के अन्दर कहा कि जब मैं जम्मू और कश्मीर कहता हूं तो उसके अन्दर पाक अधिग्रहीत कश्मीर भी आता है…….इससे मोदी सरकार की मंशा स्पष्ट होती है कि वह देश के स्वाभिमान के साथ कभी समझौता नही करेगी बल्कि वो स्वप्निल अखंड भारत के सपने को साकार कर देने वाले मार्ग को चुन कर वैभवशाली राष्ट्र निर्माण का निर्णय ले चुकी है..!!!

जो राष्ट्र अपनी सीमाओं की सुरक्षा नहीं कर सकता वह न तो प्रगति कर सकता है और न ही अजेय रह सकता है…जैसे-जैसे समय बीतता जायेगा प्रकृति अपना असर दिखायेगी और विभाजन की रेखा समाप्त हो जायेगी…आज भारत की बढ़ती शक्ति से दुनिया के तमाम देश व्यग्र हो रहे हैं कि वह उनके लिए भविष्य में चुनौती बन सकता है….यही कारण है कि वह पाक की सहायता करके सामरिक दृष्टि से उभरते भारत को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं…………………….जबकि पाक की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी है,वहां का जीवन नारकीय बन चुका है…………..पाक के कई हिस्से में विद्रोह चल रहा है।

फिलहाल यदि हमारे नेता विभाजन का दृढ़ता से विरोध करते तो विभाजन को टाला जा सकता था। उस समय देश की जनता कांग्रेस के साथ खड़ी थी। यदि कांग्रेस उस सुनहरे अवसर का लाभ उठाती और राष्ट्र की अखंण्डता के लिए मुस्लिम लीग और अंग्रेज दोनों की चुनौती स्वीकार करती तो देश विभाजन से बच ही नही सकता बल्कि कांग्रेस जनमानस के लिये सर्वमान्य हो जाती….लेकिन उस समय के कांग्रेस नेेताओं ने जिस सत्ता लोलुपता का परिचय दिया उसके लिए देश की जनता कांग्रेस को कभी माफ नहीं करेगी….दुख तो इस बात को लेकर है कि आज कांग्रेस का विनाश भले ही हो चुका है लेकिन वो अभी भी अपनी विभाजनकारी नीति,सोच और मानसिकता से ऊपर उठ नही सकी है…….कुर्सी की राजनीति को राष्ट्रहित से ऊपर समझ रही है…उसी राह पर जेहादन और कजरीलाल चल पड़े है,इनका भी अंतिम परिणाम वही होगा….जो फिरंगन और उसके छौनो का हुआ है…..पता नही ये लोग क्यों भूल जाते हैं कि यह इक्कीसवी सदी का वो भारत है,जो अपने पुरातन गौरव को वापस पाने के लिये छटपटा रहा है….वो अपने स्वर्णिम स्वप्न को साकार करने के लिये हर बाधा को नेस्तनाबूद कर देगा….क्योंकि उसके सपूत जाग ही नही चुके हैं…वरन् भारत मां के हर शत्रु को उसकी असल औकात तक पहुंचाने के लिये तैयार बैठें है….बस मौका मिलने की देर है………….और हां…एक बात तो कहने से रह गई कि दोनो पक्षों के लिये यह बेहद गंभीर काल चल रहा है…दोनो तरफ से साम,दाम,दण्ड,भेद का प्रयोग हो रहा है….क्यो हो रहा है?
ज्ञान देने की जगह यह नीति अपने सेनापति पर छोड़ दीजिये…सत्ता अपने पास रहना सनातन राष्ट्र के लिये बहुत आवश्यक है,यह कैसे भी हो…मेरा मानना है कि बस होना चाहिये!

बहरहाल एक बार फिर आप सब सजग,सचेत और सावधान हो जाइये क्योंकि पता चला है कि फिरंगन,वाड्राइन और पप्पू..इस बार तीनो एक साथ विदेश गये हैं…..मतलब इस बार लोचा भी बड़ा हो सकता है….बाकी घबराइये नही…होइहैं सोई जो राम रचि राखा…बस इतना निवेदन है कि रायचंद बनने की जगह निस्वार्थ भाव से राष्ट्र के पुरातन गौरव को वापस पहुंचाने मे जुटे अपने सक्षम,समर्थ नेतृत्व के साथ बस धीरज रख कर खड़े रहिये!!

”मैं अमर शहीदों का चारण,उनके गुण गाया करता हूँ
जो कर्ज राष्ट्र से खाया है,मैं उसे चुकाया करता हूँ।”

#वन्देमातरम्
#Ajit_Singh

साभार:अजीत सिंह-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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