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अखिलेश यादव आप किस ज्युडिशियल सिस्टम की बात कर रहे हैं?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
आप किस ज्युडिशियल सिस्टम की बात कर रहे हैं? वही ज्युडिशियल सिस्टम न, जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज अतीक अहमद के आते ही कुर्सी छोड़कर हट जाते थे। आज यूपी में कानून का राज चल रहा है तो माफियाओं के लिए आपको ज्युडिशियल सिस्टम याद आ रहा है। ध्यान रखिए कि अदालत को भी अपनी सुरक्षा के लिए स्टेट कानून की आवश्यकता पड़ती है। जब अदालत सुरक्षित रहेंगे, तभी अदालतों में फैसले भी हो पाएंगे। इसलिए मान लीजिए कि कुछ फैसले अदालतों के सामर्थ्य से भी ऊपर है। जब आपको किसी अदालत का फैसला मंजूर नहीं होता तो आप कहते हैं, ज्युडिशियल सिस्टम से ऊपर है जनता की अदालत, आज जान लीजिए कि जनता भी खुश है और अदालत भी।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट भारत में तमाम ऐतिहासिक फैसलों के लिए जाना जाता है। उस इलाहाबाद हाईकोर्ट में इतना सामर्थ नहीं था कि 2012 में अतीक अहमद की जमानत याचिका पर सुनवाई करे और उसे जमानत ना दे। एक-एक कर 10 जजों ने स्वयं को मामले पर सुनवाई से अलग कर लिया, खौफ इतना। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक अहमद को जमानत दी।

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12 मार्च 2007 तो याद है? योगी आदित्यनाथ लोकसभा में रो रहे थे, आप हंस रहे थे। ध्यान रखिए कि संसद में 2007 से पहले भी कोई नहीं रोया था, न ही 2007 के बाद आज तक‌। क्योंकि योगी से पहले कोई योगी नहीं हुआ, योगी के बाद आज तक कोई मुकाबले में नहीं है। 2007 का 12 मार्च योगी के लिए अपनी बेसहाई का सबसे निचला तल था। उस तल से जब कोई उठता है तब उसके सामर्थ्य का अंदाजा लगाना आप के बस की बात नहीं। आज योगी के नाम से सैनिक का एक कुत्ता भी साबरमती जेल पहुंच जाए, तो अतीक अहमद कुत्ता के पीछे दौड़ते हुए नैनी जेल आ जाएगा।

योगी आदित्यनाथ रोए, तो यूपी की 25 करोड़ जनता उनके आंसू पोछने खड़ी हो गई। भारत की 140 करोड़ जनता भी प्रतीक्षा में है। लेकिन अतीक, मुख्तार और आजम को अब मुझे तो ऐसा लग रहा, यूपी पुलिस का एनकाउंटर भी ठीक से नसीब नहीं होगा। मिट्टी में मिला देंगे कहकर महाराज जी ने कुछ कम ही कह दिया शायद। अतीक अहमद सही बोल रहा था, रगड़ना, मिट्टी में मिला देने से ऊपर की बात है।

टूट कर के सबसे निचले तल से उठा हुआ व्यक्ति, दोषियों को कभी माफ करना नहीं जानता। बहुत कठोर होता है। क्योंकि उसी अनुपात में उसे अपने हृदय में वैसे ही बेसहाय आम जनता के लिए करुणा भी धारण करना पड़ता है। करुणा की अंतिम गुंजाइश ही कठोरता का मानक तय करता है। चांदी की चम्मच मुंह में लिए पालने झूल कर बड़े हुए, तुम इन मानको का अंदाजा लगाना छोड़ दो। और अपनी आंखों से रामराज्य को स्थापित होता हुआ देखो।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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