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ये है बिहार का शिक्षक भर्ती तमाशा

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव वही कर रहे हैं जो उनके पिता लालू यादव ने 1990 में सीएम बनते ही किया था। दरअसल बिहार में 1990 से पहले शिक्षकों की भर्ती एकेडमिक तथा प्रशिक्षण प्रमाण पत्र के आधार पर होता था। क्योंकि प्रशिक्षण महाविद्यालय में प्रवेश भी एकेडमिक प्रमाण पत्र के आधार पर ही होता था, इसलिए शिक्षकों की भर्ती किसी भी प्रकार से प्रतियोगिता जैसी परीक्षाओं से मुक्त था। अंग्रेजी काल से ऐसा ही होता आ रहा था। विज्ञापन निकलते थे, एकेडमिक क्वालिफाइड और ट्रेंड अभ्यार्थी विज्ञापन के विरुद्ध आवेदन करते थे। वरीयता सूची जारी होती थी, शिक्षकों की भर्ती हो जाती थी।

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1991 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अपने कैबिनेट से एक शिक्षक नियुक्ति नियमावली पास कराया। तय हुआ कि शिक्षकों की बहाली बीपीएससी के द्विस्तरीय प्रतियोगिता के माध्यम से होगी। इस प्रतियोगिता में प्रशिक्षित अप्रशिक्षित हर अभयार्थी भाग ले सकते थे। लेकिन प्रशिक्षित शिक्षकों का मूल वेतन अप्रशिक्षित शिक्षकों के मूल वेतन से अधिक तय हुआ था। शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को बीपीएससी में ले जाने के विरुद्ध प्रशिक्षित अभ्यर्थियों ने मामले पर हाईकोर्ट में अपील कर दी। मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक चलता रहा। लेकिन 1999 तक 42000 शिक्षकों की भर्ती हो गई। और जब 2003 में 34540 शिक्षकों की भर्ती का विज्ञापन आया, तब तक सुप्रीम कोर्ट से फैसला आ गया। और भर्ती प्रक्रिया पर स्टे लग गया।

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सुप्रीम कोर्ट ने नियमित भर्ती शिक्षक प्रक्रिया पर ही पूर्ण रूप से रोक लगा दिया। लेकिन क्योंकि 34540 शिक्षकों की बहाली के लिए बीपीएससी विज्ञापन जारी कर चुका था, इसलिए इन रिक्तियों के विरुद्ध बहाली नियमित वेतनमान पर तो हुई, लेकिन बिना प्रतियोगिता परीक्षा के हुई। ’90 से पहले जैसे शैक्षणिक प्रमाणपत्रों के आधार पर वरीयता सूची बनती थी, उसी प्रकार वरीयता सूची जारी हुई। 2008 में इन रिक्तियों के विरुद्ध तकरीबन भर्तियां संपन्न हुई। कुल मिलाकर बिहार में करीब 75000 ऐसे नियमित शिक्षक हुए, जिनके संदर्भ में कहा जाता है कि बिहार के इतिहास में पहली बार बीपीएससी जैसे संस्थान द्वारा काबिल शिक्षकों की नियुक्ति लालू राज में हुई। फिर इन्हीं शिक्षकों की देन है कि बिहार में शिक्षा क्रांति आई। शिक्षा क्रांति? आश्चर्य न होइए?

पहले समझिए कि गलती से भी अगर आज आपको बीपीएससी द्वारा भर्ती किए गए 75000 इन शिक्षकों में से कोई वैसा शिक्षक मिल जाए, तो शिक्षा व्यवस्था से लेकर तमाम सरकारी व्यवस्था तक चारों ओर कितनी खुशहाली कितनी तरक्की थी, वे सब बताएंगे। वे बताएंगे कि बिहार में जंगलराज जैसी कोई बात नहीं थी। जंगलराज विरोधियों के द्वारा गढी हुई बस कपोल कल्पना थी। गांव के सरकारी स्कूल में 2005 में पांचवा में मेरा दाखिला हुआ था। उस समय विद्यालय के नाम पर खपरैल का एक करीब 30 बाई 20 का एक कमरा हुआ करता था। एक मास्टर साहब और एक देवी जी हुआ करती थीं। देवी जी अपने नाम के दो शब्द, जिसमें कुल सात अक्षर हुआ करते थे, उन 7 अक्षरों को वे बड़े प्रयास से तकरीबन 20 से 25 सेकंड में लिख लेती थीं। हां मास्टर साहब उस वक्त के हिसाब से ठीक-ठाक पढ़े लिखे थे। कुंजी देखकर बच्चों को अच्छा पढ़ा सिखा देते थे।

मेरे चाचा जी बताते हैं कि बीपीएससी द्वारा काबिल शिक्षक भर्ती प्रक्रिया के नाम पर जातिवाद और उगाही का खेल खेला गया था। अवैध उगाही का एक और बड़ा साम्राज्य खड़ा हो गया था। बिहार में स्टाफ सिलेक्शन के लिए इंटर लेवल तथा ग्रेजुएशन लेवल दो सिलेक्शन कमीशन हुआ करता था। लेकिन भर्ती के इस साम्राज्य को और विस्तार देने की नियत से शिक्षकों की बीपीएससी से भर्ती के लिए नियमावली लाया गया था।

तेजस्वी यादव सरकार ने एक बार फिर बिहार में शिक्षकों की नियमित भर्ती प्रक्रिया के लिए नियमावली पर मुहर लगाया है। इस नियमावली के तहत अब जितने भी शिक्षक भर्ती विज्ञापन निकलेंगे, उन्हें बीपीएससी अथवा समकक्ष संस्था द्वारा आयोजित प्रतियोगिता में भाग लेना होगा। बहुत ध्यान देने वाली बात है कि इस प्रतियोगिता से उन अभ्यार्थियों को भी गुजारना पड़ेगा, जो राज्य द्वारा आयोजित टीईटी परीक्षा पास करके अब पिछले 4 वर्षों से जोइनिंग की प्रतीक्षा कर रहे हैं। राज्य द्वारा आयोजित टीईटी परीक्षा में 1991 वाली बीपीएससी लेवल की धांधली की वाली खबर भी आई। प्रशासनिक एक्शन से लेकर परीक्षा रद्द तक सारी कार्रवाई भी हुई। खबर है कि लाखों रुपए में एसटीइटी परीक्षा के प्रश्न पत्र शिक्षा बाजार में बड़ी सुविधा से उपलब्ध हो गए थे। किसी भी प्रकार बात नियोजन पर आ गई थी। अर्थात तय हो गया था कि सरकार के खजाने से अब हर महीने इतने अतिरिक्त पैसे इन शिक्षकों पर व्यय होने हैं। खजाने में धन है नहीं। ऐसे में तेजस्वी सरकार का नियमित शिक्षक भर्ती वाला एजेंडा, इन्हें बचने का थोड़ा और वक्त मुहैया करा सकता है। साथ में उगाही के एक बड़े बाजार की भी व्यवस्था का विकल्प है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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