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राहुल गांधी ने लोकसभा में क्यों कहा कि भारत राष्ट्र नहीं राज्यों का संघ है ?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
आज बहुत दिनों बाद वामपंथी बुद्धिजीवियों को राहुल गांधी के ईगो मसाज का अवसर मिला है। आपदा में अवसर टाइप का। काई जम गई थी , क़लम पर। आज वह काई कट गई है। सोशल मीडिया पर चंहु ओर यह लोग राहुल के भाषण पर वैसे ही मुदित हैं , जैसे एक समय हिंदी मीडियम का कोई बच्चा जब घर आए मेहमानों को सावधान मुद्रा में खड़ा हो कर , आंख मूंद कर , पोयम सुना देता था तो घर वाले मुदित हो जाते थे। और टॉफी खिला देते थे। तो राहुल गांधी को आज यह सभी बुद्धिजीवी टॉफी खिला रहे हैं। लोकसभा में पोयम सुनाने पर। तेली के इन बैलों ने कभी नहीं पूछा इस बच्चे से कि बेटा , इस चुनाव की बेला में इतने दिनों तक ननिहाल में क्या कर रहे थे। आते ही चीन और पाकिस्तान की कोर्निश क्यों बजाने लगे ?

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लेकिन ऐसे अनिवार्य प्रश्न भूल कर , राहुल गांधी ने आज लोकसभा में जो धुआंधार झूठ बोला , उस पर यह सभी बुद्धिजीवी मुदित हो गए हैं। राहुल ने चीन द्वारा पी ओ के में 1960 में बनाई सड़क को अभी की बनी बता दिया। तमाम मूर्खता भरी बातें कुतर्क की चाशनी में डुबो कर , संविधान का हवाला दे कर बता दिया कि भारत राष्ट्र नहीं , राज्यों का संघ है। वी द पीपुल आफ इण्डिया , शायद गीता , कुरआन या बाइबिल में लिखा है , संविधान में नहीं। गणतंत्र , फेडरल सिस्टम , नेशन का फ़र्क जो राहुल की समझ में नहीं आता तो क्या इन बुद्धिजीवियों को भी नहीं आता। लेकिन बुद्धिजीवी लोग हैं। सो मुदित हो कर बता रहे हैं कि आज संसद में राहुल का भाषण बड़ा मेच्योर था। अकादमिक था।

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तो क्या अभी तक का राहुल का भाषण मजाक में होता था ? सोच कर भी हंसी आती है कि क्या आज पप्पू पास हो गया , इन विद्वानों की राय में ? प्रतिबद्धता के खूंटे में बंधे इन तेली के बैलों से पूछने का मन होता है। लोकसभा अध्यक्ष ने राहुल को उन के मेच्योर भाषण पर किस तरह और कितनी बार डपटा , मुस्कुरा कर मजा लिया , यह नहीं देखा इन तेली के बैलों ने। लाइन से सब के सब राहुल की चंपूगिरी में न्यस्त हो गए हैं। गुड है ! धूमिल याद आते हैं :

मैं रोज़ देखता हूँ कि व्यवस्था की मशीन का
एक पुर्ज़ा गरम होकर
अलग छिटक गया है और
ठंडा होते ही
फिर कुर्सी से चिपक गया है
उसमें न हया है
न दया है

नहीं—अपना कोई हमदर्द
यहाँ नहीं है। मैंने एक-एक को
परख लिया है।
मैंने हरेक को आवाज़ दी है
हरेक का दरवाज़ा खटखटाया है
मगर बेकार… मैंने जिसकी पूँछ
उठाई है उसको मादा
पाया है।

वे सब के सब तिजोरियों के
दुभाषिए हैं।
वे वकील हैं। वैज्ञानिक हैं।
अध्यापक हैं। नेता हैं। दार्शनिक हैं।
लेखक हैं। कवि हैं। कलाकार हैं।
यानी—
क़ानून की भाषा बोलता हुआ
अपराधियों का एक संयुक्त परिवार है।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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