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गुजरात में सारे एग्जिट पोल, ओपिनियन पोल क्यो धरे के धरे रह गए?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
ऐसा कई बार होता है, सारे एग्जिट पोल ओपिनियन पोल धरे के धरे रह जाते हैं। लेकिन ऐसा नहीं होता है कि 27 साल वाली एंटी-इनकम्बैंसी के बावजूद 80 परसेंट से भी अधिक सीटें सत्तारूढ़ दल जीत ले, और 6% वोट शेयर भी बढ़े।

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अब तक यह देखा गया है 27 साल में, जितने भी विधानसभा चुनाव हुए, सीटों की संख्या उत्तरोत्तर घटती चली आई। इस बार विपक्षियों को बड़ी आशा थी कि भाजपा साफ हो जाएगी। काटो तो खून नहीं, आज ईवीएम पर भी सवाल नहीं उठाया जा रहा क्योंकि कल ही दिल्ली में लोकतंत्र की जीत हुई है। मामला अभी तरोताजा है।

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बिलकिस बानो, मोरबी, किसान, महंगाई, अदानी-अंबानी कोई भी गुजरात में भुनाया न जा सका। दरअसल ये मुद्दे विपक्षियों के लिए उल्टा प्रहार सिद्ध हुए। बिलकिस बानो का राजनीति में इस्तेमाल गुजरात ने शर्मनाक सिद्ध कर दिया। यह भी कि मोरबी जैसी घटनाओं के अंजाम पर चढ़कर कोई विपक्षी दल सत्ता तक नहीं पहुंच सकती। साफ है कि मोरबी को जनता बेहतर समझती है। महंगाई, अडानी-अंबानी दरअसल वे मुद्दे हैं, जो शायद भाजपा को लाभ के लिए ही राजनीति में इस्तेमाल हो जाते हैं।

एक बात जो भूलनी नहीं चाहिए, मोदी जी को और भाजपा को सबसे ज्यादा गालियां गुजरात में बार-बार सभा जनसंवाद करने के लिए दी गई। भला बताइए जनता के साथ अधिक से अधिक नेताओं का संवाद लोकतंत्र में सकारात्मक लिया जाना चाहिए न? यह तो लोकतंत्र का सौभाग्य होता है, नेता यदि ज्यादा से ज्यादा जनता से संवाद करें तो। उल्टे गालियाँ? गुजरात ने जवाब दे दिया, राजनीति करनी है तो जनता और नेताओं के बीच संवाद के जो फासले 70 वर्षों में गढ़े गए हैं, उस पर कैसे काम करना है।

भाजपा चुनाव प्रबंधन हर चुनाव को इस प्रकार से लड़ती हैं जैसे वह चुनाव हार रही हो। 150 से भी ऊपर सीटें आना, अतिशयोक्ति ना हो यदि मैं कहूं कि यह ओवर मैनेजमेंट का नतीजा है। और चुनावी प्रबंधन की ये लकीर शायद ही कोई राजनीतिक दल कभी पार कर पाए।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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