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आदिपुरूष फ़िल्म रामायण नहीं बल्कि शैतानी आयतों से प्रेरित क्यो दिखती है?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से

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Positive India:Rajkamal Goswami:
सैटेनिक ववर्सेज़(Satanic Verses) में सलमान रुश्दी(Salman Rushdie) ने कहीं पैग़ंबर मुहम्मद का नाम नहीं आने दिया अपितु एक कल्पित चरित्र महूंद को गढ़ा । पैग़ंबर की पत्नियों के नाम भी बदल दिए । लेकिन कहानी लगभग उसी तरह रखी कि आयतें उतर रही हैं, आयतों को लिपिबद्ध करने वाला कातिब अपनी तरफ़ से कुछ जोड़ रहा है । लेकिन पढ़ने वाले को सब समझ में आ जाता है लेखक का लक्ष्य कौन है और वह किसे क्या संदेश देना चाहता है ।

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फ़िल्म आदिपुरुष के बारे में भी मनोज मुंतशिर कह रहे हैं कि हमने रामायण नहीं बनाई है अपितु रामायण से प्रेरणा ली है । लेकिन सब कुछ आईने की तरह साफ़ है कि वह हमारे आराध्यों को मामूली स्टंट स्टार बना कर नई पीढ़ी के मनोमस्तिष्क में स्थापित कर देना चाहते हैं ।

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यह बड़े ही विस्मय की बात रही है कि इतना मतवैभिन्य होने के उपरांत भी हिंदू समाज राम के नाम पर एकजुट हो जाता है । राम नाम का यह जादू कबीर और तुलसी से लेकर मीरा जैसी कृष्ण भक्त संत कवि पर भी पड़ा है । नेपाल से रामेश्वरम तक राम के स्मृति चिह्न हैं । इसलिए राम को लाचार बेबस और स्टंट फ़िल्म का हीरो दिखाना आवश्यक है । तभी नई पीढ़ी के ऊपर से उनका जादू उतरेगा ।

फ़िल्म रामायण नहीं शैतानी आयतें से प्रेरित दिखती है । फ़िल्म में राम का नाम राघव लक्ष्मण का शेष सीता का जानकी और रावण का लंकेश रखा गया । हनुमान जी बजरंग बन कर उपस्थित हैं ।
सीता हरण में रावण रथ की जगह चमगादड़ का उपयोग करके उड़ जाता है और बेबस से राघव और शेष पीछे पीछे दौड़ते रह जाते हैं ।

यदि रावण में इतना ही साहस होता तो मारीच और कपट मृग की ज़रूरत ही क्या थी । लक्ष्मण अकेले ही समस्त राक्षस कुल के लिए पर्याप्त थे ,

जग में सखा निसाचर जेते
लछिमन हनइँ निमिष महँ तेते

फ़िल्म में लंकेश राघव को युद्ध में उठा कर दूर फेंक देता है । राम का इससे बड़ा अपमान क्या हो सकता है । Siddharth Tabish ने अपनी भित्ति पर यह दृश्य डाला है । देख कर मन क्षुब्ध हो गया ।

रामकथा और भक्तों की भावना को आहत करने, धार्मिक प्रतीकों का अपमान कर अशांति भड़काने का आरोप फ़िल्म की पूरी टीम पर बनता है । अभी ट्विटर पर देख रहा था कि मनोज मुंतशिर के फोटो मोदी जी के साथ योगी जी के साथ, शिवराज चौहान के साथ देवेंद्र फडनवीस के साथ और यहाँ तक कि मोहन भागवत के साथ भी प्रदर्शित किए गए हैं । लेकिन कालनेमि से धोखा तो हनुमान जी भी खा गए थे । रामकथा को विद्रूप करने की सज़ा तो मिलनी चाहिए ।

काहू बैठन कहा न ओही ।

राखि को सकहि राम कर द्रोही

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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