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मुसलमानों ने फ्रांस की सबसे बड़ी पब्लिक लाइब्रेरी को आग के हवाले कर ईद अल-अज़हा का अविस्मरणीय तोहफा दिया है

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
फ्रांस की ईद अल-अज़हा
फ्रांस को शांति का अविस्मरणीय तोहफा मिला है। शहर मार्सिले स्थित फ्रांस की सबसे बड़ी पब्लिक लाइब्रेरी को आग के हवाले कर दिया गया है। यह याद दिलाता है करीब 8 सौ साल पूर्व जब नालंदा विश्व की शिक्षा का केंद्र हुआ करता था और विश्व के सबसे बड़े पुस्तकालय को दीन और ईमान कायम करने वालों ने जला दिया था था। पुस्तकालय में 90 लाख पांडुलिपियाँ मौजूद थी जो महीनों तक जलती रहीं। 3 दिनों से फ्रांस में चल रही इस्लामिक उन्माद में लगभग 500 इमारतों को नष्ट किया गया है। 2,000 से अधिक गाड़ियां और लगभग 4000 जगहों पर आगजनी हुई है।

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फ्रांस में ट्रैफिक रूल बहुत स्ट्रिक्ट है। पब्लिक यदि पुलिस को सहयोग ना करें तो पुलिस संदेह की स्थिति में गोली चला देती है। पिछले साल ऐसे 13 लोगों का काउंटर पुलिस की गोली से हुई। इस बार नाहेल नाम का एक टीनेजर मुस्लिम लड़का था। पुलिस ने उसके कार रोककर ड्राइविंग लाइसेंस की मांग की तो वह भागने लगा। पुलिस मुठभेड़ में नाहेल की मौत हो गई। यह महज एक इंजस्टिस का मामला है। जबकि पुलिस अधिकारी को सस्पेंड भी किया गया। कार्रवाई भी हो रही है। लेकिन पूरे शहर को अल्लाह हू अकबर का नारा लगाकर जलाया जा रहा।

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फ्रांस में 10% से भी कम मुस्लिम जनसंख्या है। इसके बावजूद भी फ्रांस का कोई भी स्टोर अब सुरक्षित नहीं रह गया। फ्रांस को मल्टीकल्चरल फ्रांस कहा जाता है। क्योंकि 2022 में भी बांग्लादेश अफगानिस्तान और तुर्की से आए हुए लाख से ऊपर शरणार्थियों को फ्रांस ने शरन दिया था। फ्रांस को उसके उदारता का पुरस्कार मिल रहा है। फ्रांस की संसद में शहरों के विनाश पर मौन रखा जा रहा है। प्रशासन पूरी कोशिश में लगी हुई है। लेकिन कोई एक अब्दुल रोडवेज की एक बस के ड्राइविंग सीट पर कब्जा कर लेता है और सारे बैरिकेडिंग को तोड़ते हुए निकल जाता है। प्रशासन देखती रह जाती है।

फ्रांस में विश्व हिंदू परिषद नहीं है। आरएसएस नहीं है। बजरंग दल नहीं है। फिर भी फ्रांस क्यों चल रहा है? फ्रांस में सड़कों पर शोभायात्रा नहीं निकल रही है। हनुमान चालीसा नहीं हो रहा है। फिर भी फ्रांस क्यों जल रहा है? फ्रांस में अनुराग ठाकुर नहीं हैं। कपिल मिश्रा नहीं हैं। नूपुर शर्मा नहीं हैं। फिर भी फ्रांस क्यों जल रहा है? कदाचित फ्रांस में मोदी योगी नहीं हैं। हिमानता बिसवा सरमा नहीं है। उनका बुलडोजर नहीं है। अगर होता भी तो यह लड़ाई शासन-प्रशासन के बलबूते नहीं लड़ी जा सकती थी। लेकिन जागृति तो संभव है। सदियों का सोया भारत 9 वर्षों में जागने लगा है। क्योंकि यह लड़ाई आम जनता की लड़ाई है। मुल्क कोई भी हो, भारत या फ्रांस।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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