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क्या यही है बिहार का रूल ऑफ लॉ ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
’90 के शुरुआती दशक की बात है। बिहार के बेतिया में लालू जी भाषण दे रहे थे। जनसभा दलितों को केंद्रित करके आयोजित की गई थी। भाषण देते हुए उनके मंच पर एक सबसे तेज तर्रार और ईमानदार ब्यूरोक्रेट भी उपस्थित थे। भारतीय समाज में सबसे निचले पायदान पर आने वाली एक जाति है, डोम। जिनको सामाजिक रूप से बाल्मीकि जाति भी कहा जाता है। जो ब्यूरोक्रेट लालू जी के मंच पर थे, डोम जाति से ही थे। गर्मी का मौसम था। मंच पर भी तीखी धूप सीधे पहुंच रही थी। सो मंच पर जितने भी लोग थे, उन्हें धूप के कारण जनता की तरफ देखने में परेशानी हो रही थी। इसलिए सभी अपने माथे पर हथेली की ओट लगाए देख रहे थे।

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लालू जी क्षेत्रीय भाषा में जनता को संबोधित करके बोले, “हऽई देखा, तोहरा लोगन खातिर केकरा के लईले बानी..”, मतलब ये देखिए आप लोगों के लिए किसको लाए हैं, और लालू जी हाथ पकड़ के उस ब्यूरोक्रेट को जनता के सामने मुखातिब कर दिए। उनका नाम था जी कृष्णैया। लालू जी आंध्र प्रदेश से विशेष सिफारिश पर दलित आइएएस जी कृष्णय्या को मंगवाए थे और उन्हें पश्चिमी चंपारण का डीएम बनाया था। बेतिया के लोगों को लालू जी कहे, “तोहरा लोगन के अगर कोई परेशानी होई..”, मतलब आप लोगों को अगर कोई भी परेशानी हो, तो सबसे पहले आपको इन्हें बताना है, हमको तो बहुत काम रहता है इसलिए आप लोगों के ही समस्या के लिए इनको लाए हैं। जी कृष्णैया माथे पर हथेली की ओट किए धूप से बचने की कोशिश कर रहे थे। लालू जी ने कहा, “तनिक हाथ हटाबऽ.., अपना मुंह दिखाइए।

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लालू जी के शासन का चौथा साल ’94 चल रहा था। जी कृष्णैया गोपालगंज के डीएम बने। इस वक्त तक पूरा बिहार जातिवाद के खूनी संग्राम के लिए तैयार हो चुका था। लालू यादव की जातिवाद की राजनीति ने बिहार से ऊंची जाति की सफाई के लिए पूरी तरह से कमर कस लिया था। राजनीति में उस वक्त नेता दलों के हिसाब से नहीं, बल्कि जातियों के नेता के रूप में तैयार होने लगे थे। सवर्णों में भी तमाम बाहुबली नेता गोलबंद हुए। आनंद मोहन सिंह और शुक्ला बंधु जैसे बाहुबली अपने-अपने जात के सैकड़ों युवाओं को हथियार बंदूक धराकर गुंडई के रास्ते पर उतार दिया था। न जाने कितने ही घरों के चिराग का अपराधीकरण हो गया। अगड़ा पिछड़ा के इस संघर्ष में शुक्ला बंधु में से एक छोटा शुक्ला की हत्या, टेक्नोलॉजी मिनिस्टर रहे बृज बिहारी प्रसाद ने कथित तौर पर करा दी। जिसकी शव यात्रा 5 दिसंबर ’94 को मुजफ्फरपुर के भगवानपुर में हजारों की भीड़ बनकर उबल रही थी। गैंगस्टर आनंद मोहन इस भीड़ का नेतृत्व कर रहा था। इतने में ही पटना से मीटिंग खत्म कर, उसी रास्ते जी कृष्णैया गुजर रहे थे। उस भीड़ ने लाल बत्ती गाड़ी से डीएम कृष्णैया को उतारकर बीच सड़क पर पीट-पीटकर मार दिया। एक अंतिम गोली भी उन पर चलाई गई। आनंद मोहन को 2007 में इस दोष में फांसी की सजा हुई। और हाईकोर्ट ने इसे उम्रकैद में बदल दिया।

लालू जी के बेटे तेजस्वी यादव आज बिहार की राजनीति में सबसे बड़ा नेता हैं। अगले चुनाव को देखते हुए उन्होंने तय किया है कि आनंद मोहन समेत कुल 27 सजा भुगत रहे खूंखार अपराधियों को जेल से रिहा कराया जाएगा। इसके लिए कारा कानून बदल कर तमाम कागजी प्रक्रिया में पूर्ण कर ली गई है। जी कृष्णैया की पत्नी रिहाई का आज भी विरोध कर रही है। लेकिन उनकी कौन सुनता है! सामाजिक न्याय की इस राजनीति में आनंद मोहन के कंधे का इस्तेमाल कर मुस्लिम और यादव जाति के कुल 13 गैंगस्टर्स को भी रिहा किया जा रहा है। अतीक अहमद कि जब हत्या हो गई थी, तेजस्वी यादव ने अतीक अहमद को अतीक जी कहकर संबोधित करते हुए रूल ऑफ लॉ की बात कही थी। रूल ऑफ लॉ ने तो बिहार में इन 27 दुर्दांत क्रिमिनल को जेल की सजा दी है। फिर कानून बदल कर इन्हें बाहर निकालना किस रूल ऑफ लॉ के तहत आता है? दरअसल बिहार एक बार फिर जातिवाद के खूनी खेल के लिए इस चुनाव तैयार किया जा रहा है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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