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क्या आप जानते हैं भारतीय राजनीति का तुर्की से कितना बड़ा पुराना नाता है?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
भारतीय राजनीति का तुर्की से बड़ा पुराना नाता है । कुतुबुद्दीन ऐबक ,अल्तमश और बलबन तुर्की पर इस्लामी हमले के वक़्त लूट कर गुलाम बना कर बेचे गये थे । कालांतर में मुहम्मद गोरी ने इन्हें ख़रीद लिया और अपनी सेना में भर्ती कर लिया । लूटे हुए गुलाम फ़ौज़ में और औरतें हरम में डाल ली जाती थीं ।
अरब तो भारत में सिंध से आगे कभी बढ़ नहीं पाये मगर तुर्क गुलामों ने दिल्ली सल्तनत की नींव डाली । इन सुल्तानों के माँ बाप का नाम शजरा कुछ पता नहीं चलता । सुलतान और बादशाह में यह फर्क होता है कि सुल्तान तकनीकी तौर पर अपने को इस्लामी ख़लीफ़ा के अधीन समझता है और कभी कभार ख़िराज और तोहफ़े वग़ैरा भेज कर अपनी वफ़ादारी का इज़हार करता रहता है ।
यह ख़लीफ़ा की सीट भी बदलती रहती थी । शुरूआती चार ख़लीफ़ा मदीना से शासन चलाते थे लेकिन हज़रत अली के वक़्त मुआविया ने विद्रोह कर दिया और अली की कूफ़ा में शहादत के बाद मुआविया ने दमिश्क को दारुल ख़लाफ़त बना कर वहाँ से हुकूमत की । इस्लाम की लम्बी तारीख़ में ख़लाफ़त भी वंश दर वंश बदलती रही ।दमिश्क से बग़दाद ,बग़दाद से काहिरा और आख़िर में ख़लाफ़त तुर्की में कुस्तुनतुनिया में आ कर टिक गई । बीच में एक समानांतर ख़लीफ़ा उंदुलुस या स्पेन में भी बैठता रहा जो स्पेन में इस्लामी हुकूमत ख़त्म होने के साथ ही गुम हो गया ।

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दिल्ली सल्तनत के बाद मुग़लों ने ख़ुद को बादशाह घोषित कर दिया और ख़लीफ़ा से नाम मात्र की अधीनता से भी मुक्ति पा ली ।

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हैदर अली और टीपू बड़े धर्मसंकट में थे कि मैसूर का असली राजा तो वाडियार ही था मगर वास्तविक सत्ता हैदर और उसके बाद टीपू ने हथिया रखी थी । टीपू को अपनी सत्ता को वैधानिकता देने के लिये मुगल बादशाह की जरूरत थी कि वह निज़ाम हैदराबाद की तरह टीपू को भी मैसूर में मुगलों का प्रतिनिधि मान कर कुछ नवाब या सूबेदार वगैरा बना दे ताकि उसे फ्रेंच और अंग्रेजों जैसी विदेशी शक्तियों से मोल तोल करने में आसानी हो मगर मुगल बादशाह ने मना कर दिया । शायद निज़ाम ने भड़का दिया । हार कर टीपू ने तुर्की में सफ़ीर भेज कर ख़लीफ़ा से अपने को सुलतान तसलीम करवा लिया ।

प्रथम विश्वयुद्ध के बाद तुर्की से ख़लीफ़ा का पद ही खुद एक मुसलमान मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने उखाड़ फेंका मगर भारत में दंगे शुरू हो गये । सबसे ज्यादा असर दक्षिण में टीपू वाले इलाके मालाबार में ही हुआ । हज़ारों हिंदू काट दिया गया । गाँधी जी ने पहले तो यह सोच कर ख़िलाफ़त आंदोलन का समर्थन किया कि शायद मुसलमान उनके असहयोग आंदोलन का समर्थन करेंगे लेकिन वे तो हिंदुओं को ही लूटने लगे । संयोग से चौरीचौरी कांड हो गया और गाँधी ने अपना हाथ ख़लाफ़त आंदोलन से खींच लिया । मालाबार में हिंदुओं के क़त्ले आम ओर पश्चिमोत्तर में कोहाट में हिंदू नरसंहार के कारण मजबूरन हिंदुओं को अपनी जान बचाने के लिये राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का गठन करना पड़ा ।
जब कमाल पाशा ने तुर्की में ख़लाफ़त जड़ से ख़त्म कर दी तो भारत से मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमंडल तुर्की गया और कमाल पाशा से ख़ुद ख़लीफ़ा बनने की दर्ख़्वास्त की मगर उसने अर्जी ठुकरा दी और तुर्की को एक धर्मनिरपेक्ष यूरोपीयन देश बना दिया यहाँ तक कि अरबी में अज़ान देने तक पर रोक लगा दी ।

जिन दिनों तुर्की में इस्लामी ख़लीफ़त थी तब आज का सऊदी अरब यानी हिजाज़ का इलाका तुर्की के कब्जे में था । अठारहवीं सदी के अंत में वहाँ एक वहाबी फिरका पैदा हो गया जो अति शुद्धतावादी था । उसने तुर्की के कब्जे से हिजाज को छुड़ा लिया और वहाँ वहाबी हुकूमत स्थापित कर दी जिसने नये अक़ीदे के मुताबिक पैग़ंबर के ख़ानदान सहित सारे मकबरों और मजारों को ज़मींदोज़ करके कब्रों को नंगा करके छोड़ दिया । तुर्की ने कुछ ही दशकों बाद फिर हिजाज पर कब्जा कर लिया और मतबरे और मजार फिर बन गये लेकिन प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेज़ों की मदद से इब्न सऊद ने फिर अरब पर कब्जा कर लिया और तुर्की में ख़लाफ़त ख़त्म होते ही दुनिया भर के मुसलमानों के विरोध के बावजूद सारी मजारे मकबरे मिसमार कर दिये बस किसी तरह नबी का गुम्बद बचा रह गया ।

जब तक तेल नहीं निकला था अरब का बद्दू बंबई में मजदूरी करता दिखाई दे जाता था । बहुत ग़रीब लोग हुआ करते थे अरब । लेकिन पेट्रोडॉलर ने सऊदियों के हाथ में अपार संपति ला दी । अब वह सारी दुनिया में वहाबी फिरका फैला रहे हैं । हिंदुस्तान में भी ख़ुदा हाफ़िज़ की जगह अल्लाह हाफ़िज़ शुरू हो गया । गाँव गाँव में मदीना की नकल की मस्जिदें तैयार हो गईं । सऊदी अरब मुस्लिम जगत का नया नेता बन कर उभरा है ।

उधर तुर्की में अर्दोगन आ गये जो धर्मनिरपेक्ष तुर्की को फिर कट्टरपंथी बना कर मुस्लिम जगत के ख़लीफ़ा बनने का ख़्वाब पाले बैठे हैं । अया सोफिया का चर्च फिर से मस्जिद में बदल कर वह दुनिया भर के मुसलमानों का दिल जीत चुके हैं ।

सौ साल में भारत का ख़लीफ़ा समर्थक मुसलमान अब तक पाकिस्तान बना चुका है जिसे कश्मीर के लिये तुर्की के समर्थन की जरूरत है बदले में वह अर्दोगन को ख़लीफ़ा तसलीम करने को तैयार है । अब क़र्ज़ा तो पाकिस्तान पर सऊदी अरब का चढ़ा है और ख़लीफ़ा बनेंगे अरदोगन तो बनाइये । सऊदी अरब ने अपना हजारों करोड़ का कर्ज वापस माँगा है और पाकिस्तान में हड़कंप है ।

अब ख़लीफ़ा तो इस्लामी जगत का उसी तरह नेता है जैसे रोमन कैथोलिक का पोप बल्कि ख़लीफ़ा के हाथ में ख़ुदा की तलवार भी है । तो इस्लामी जगत की आगामी हलचल देखने लायक होगी ।

अल्लाम इक़बाल बज़रिये अल्लाह जवाबे शिकवा मे कह गये हैं मुसलमानों से

अक़्ल है तेरी सिपर इश्क़ है शमशीर तेरी
मेरे दरवेश ख़लाफ़त है जहाँगीर तेरी ।॥

आगे आगे देखिये होता है क्या

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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