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कालजयी रचनाओं को पाठकों तक पहुंचाने में ऑडियोबुक अहम : रस्किन बॉन्ड
पॉजिटिव इंडिया: रायपुर (भुवनेश्वर)
भुवनेश्वर में एक साहित्य महोत्सव में जुटे कई लेखक इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि कालजयी रचनाओं को ऑडियोबुक या पॉडकास्ट के रूप में लाने से कई लोग इन्हें…
जब शराब के चक्कर में फ़िराक गोरखपुरी की गोरखपुर में ज़मानत ज़ब्त हो गई
फ़िराक बड़ी शान से कहा करते थे कि हिंदुस्तान में अंगरेजी सिर्फ़ ढाई लोग जानते हैं । एक खुद को मानते थे , दूसरे सी नीरद चौधरी और आधा जवाहरलाल नेहरु।
हाय ! हम क्यों न हुए खुशवंत !
खुशवंत सिंह ने जो जीवन जिया और जिस तरह जिया, जिस रोमांच, जिस सलीके और पारदर्शिता से जिया उस में दिया बहुत ज़्यादा और लिया बहुत कम। ऐसा जीवन और ऐसा लिखना काश कि सब के नसीब में होता !
गजेंद्र की लेखनी मानों सोने पर सुहाग
*नये क्षितिज की ओर* किताब कुछ लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने की ताक़त रखता है यदि पाठक उसे अपने जीवन संघर्ष से जोड़कर देखे और इस किताब से सकारात्मक ऊर्जा के भाव को पहचान कर उसे अपने जीवन…
मां के बनाए काजल की कालिख से मुनव्वर राना ने अपना चेहरा काला कर लिया
मुनव्वर राना ने मां के बनाए काजल को अपनी आंख में लगाने के बजाय अपने चेहरे पर पोत कर अपना चेहरा काला कर लिया है। इंसानियत को शर्मशार कर दिया है। धिक्कार है इस मुनव्वर राना पर। वह लोग जो…
माँ बसे चरणों में तेरे चारों मेरे धाम हैं
खो गया बचपन कहीं पर, लौट कर आता नहीं,
है बहुत रंगीन मंजर, पर मुझे भाता नहीं।
जीतने पर साथ सारे, हारने पर कौन है,
माँ तुम्हीं कुछ बोल दो ना, शेष दुनिया मौन है।
गुम हुई है रोशनी भी, सूर्य…
राज्यपाल अनुसुईया ने सपनों को जी के देखो पुस्तक का किया विमोचन
"सपनों को जी के देखो" आत्मकथा निश्चित ही युवाओं के लिए प्रेरणादायी रहेगी एवं युवाओं को आगे बढ़ने, सपनों को पूरा करने और आनंदपूर्वक जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगी ।
फिर गली प्रेम की मुझको भाने लगी
Positive India:Rajesh Jain Rahi:
फिर गली प्रेम की मुझको भाने लगी
याद तेरी सुबह शाम आने लगी।
याद आता पलटकर तेरा देखना,
तेरी पायल पुनः गीत गाने लगी।
आज आओ प्रिये तुम पुनः बाग में
एक…
मैं गोआ के एक गाँव पर्रा से हूँ इसलिये हम पर्रिकर कहे जाते हैं
मनोहर पर्रिकर ने एक बार अपनी आपबीती बयान की थी।
"मैं गोआ के एक गाँव "पर्रा" से हूँ, इसलिये हम "पर्रिकर" कहे जाते हैं। मेरा गाँव अपने तरबूजों के लिये प्रसिद्ध हैं। जब मैं बच्चा था, वहाँ…
छोड़कर बल्ला वो शामिल दौड़ में
अब सहारा मिल गया अलगाव को,
मंथरा महलों की फिर वासी हुई।