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आज की तारीख़ में कौन समाज है जो मनु स्मृति से भी चलता है ?

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
मनु राजा थे। क्षत्रिय थे । मनुस्मृति भी उन्हों ने ही लिखी । लेकिन यह जहर से भरे कायर जातिवादी, मनुवाद के नाम पर ब्राह्मणों को गरियाते हैं। जानते हैं क्यों ? इस लिए कि ब्राह्मण सहिष्णु होता है , सौहार्द्र में यकीन करता है। गाली गलौज में यकीन नहीं करता। अप्रिय भी बर्दाश्त कर लेता है। करता ही है । दूसरे , यह कायर , नपुंसक , जहरीले जातिवादी अगर क्षत्रिय को मनुवादी कह कर गरियाएंगे तो क्षत्रिय बर्दाश्त नहीं करेगा , गिरा कर मारेगा। सो इन जहरीले जातिवादियों के लिए ब्राह्मण एक बड़ी सुविधा है अपने नपुंसक विचारों को डायलूट करने के लिए।

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अब कुछ मूर्ख कहेंगे कि मैं तो बड़ा जातिवादी हूं , कैसा लेखक हूं? कैसे इतनी अच्छी कविताएं लिखता हूं , उपन्यास लिखता हूं आदि-आदि ! कहते ही रहते हैं । अच्छा यह नपुंसक और कायर जो लगातार ब्राह्मणों को गरियाने का शगल बनाए हुए हैं , यह सब कर के बड़ी-बड़ी दुकान खोल कर समाज में क्या संदेश दे रहे हैं ? आप उन को क्या मानते हैं ? कभी सांस भी लेना जुर्म क्यों समझते हैं उन के जहरीले बोल के खिलाफ ? इतने नादान और बेजान क्यों हैं आख़िर आप ? दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है , इस घोर वैज्ञानिक युग में भी यह मूर्ख ब्राह्मण-ब्राह्मण के पहाड़े से आगे निकलना ही नहीं चाहते ! अजब है यह भी ! अच्छा कोई मुझे यह भी तो बता दे कि आज की तारीख़ में कौन समाज है जो मनु स्मृति से भी चलता है ? मनुस्मृति की ज़रूरत भी किसे है अब ? सिवाय इन गाली गलौज वालों के ? यह विज्ञान , यह संविधान , यह क़ानून अब समाज चलाते हैं , मनुस्मृति नहीं !

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क्या यह बात भी लोग नहीं जानते ? अच्छा कुछ लोग जान दिए जाते हैं इस बात पर कि दलितों को मंदिर में घुसने नहीं दिया जाता ? अच्छा आप जो मनुवाद के इतने खिलाफ हैं तो मंदिर जाते भी क्यों हैं ? दूसरे ज़रा यह भी तो बता दीजिए कि किस मंदिर में आप को नहीं घुसने दिया गया ? किस मंदिर में घुसते समय आप से पूछा जाता है कि आप किस जाति से हैं ? किस मंदिर में यह पूछने का समय है ? और डाक्टर ने कहा है कि आप अपने काम काज में ब्राह्मण बुलाइए ? कि संविधान में लिखा है ? कौन सी कानूनी बाध्यता है आख़िर? क्यों बुलाते हैं आप ? मत बुलाईये , अपना काम जैसे मन वैसे कीजिए लेकिन आंख में धूल झोंकना बंद कीजिए !

अच्छा डाक्टर ने कहा है कि किसी क़ानून ने कि शादी में या मरने में भी पंडित बुलाइए ? बैंड वाला , कैटरिंग वाला या और भी तमाम जोड़ लीजिए अपनी हैसियत से तो पंडित से ज़्यादा पैसा लेते हैं , लेकिन वहां प्राण नहीं निकलता ? अच्छा जब जमादार बुलाते हैं मरने में ही सही , तो क्या उसे उस की मजदूरी नहीं देते ? श्मशान के डोम को पैसा नहीं देते कि लकड़ी वाले या कफन वाले , या वाहन वाले को पैसा नहीं देते ? इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की फीस भी नहीं देते ? कि डाक्टर को फीस नहीं देते ? वकील को नहीं देते ? तो पंडित को देने में प्राण निकलते हैं ? मत बुलाइए पंडित को ! क्यों बुलाते हैं पंडित ? पंडित की गरज से ? कि अपनी गरज से ? मनुस्मृति या कर्मकांड में इतना जीते क्यों हैं , बाध्यता क्या है ? फिर घड़ियाली आंसू भी बहाते हैं ! गोली मारिए मनु स्मृति को , मत मानिए मनु स्मृति और कर्म कांड को ? यह डबल गेम कब तक ?यह दोगला जीवन कब तक और क्यों ? किस के लिए ? बंद कीजिए यह व्यर्थ का रोना-धोना और लोगों को गुमराह करना , समाज में जहर घोलना , समाज तोड़ना !

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार है)

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