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पीएम मोदी अपनी जनसभाओं में द केरला स्टोरी का नाम क्यो ले रहे हैं ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
देश का एक प्रधानमंत्री अपने संबोधन में किसी फिल्म का नाम प्रचार करे, क्या इस बात की कल्पना की जा सकती थी? वह भी तब जब उस प्रधानमंत्री की गरिमा वैश्विक स्तर की हो! इससे पहले द कश्मीर फाइल्स आई थी, तब भी उन्होंने किसी बहाने से द कश्मीर फाइल्स का भी नाम लिया था। बजरंग दल पर प्रतिबंध की बात आई तो पीएम मोदी अपनी जनसभा में बजरंग बली की जयकार करके आ गए। जबकि सत्य यह है कि राम मंदिर आंदोलन में बजरंग दल की भूमिका के बाद मोरल पुलिसिंग के अलावे और क्या उपलब्धि है? जब तक प्रतिबंध की बात नहीं हुई थी, कितने ऐसे स्वतंत्र लोग हैं जो बजरंग दल को अपने वक्तव्यों-विमर्शों में, अपने पोस्टों में सम्मान से स्थान देते हों?

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जिस दल का नाम सम्मान से लेने में साधारण विचार का आदमी कतराता है, पीएम मोदी ने उस पर जनसभाएं कर दी। फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो पूछते रहते हैं, शबाना आजमी के पैरों में मोच भी आ जाए तो पीएम मोदी संवेदनाएं प्रकट करते हैं। राज्यसभा में खड़े होकर किसी चोर अपराधी तबरेज अंसारी के लिए दुख दर्द प्रकट करते हैं। तो फिर यहां दो बातों का ध्यान रखना बहुत आवश्यक हो जाता है। पहला- कि ऐसे व्यक्तियों को बिल्कुल तरजीह ना दें, जो पीएम मोदी का विरोध तो नहीं करते हों, लेकिन उन पर संदेह करते हों। विरोध करने वालों ने तो अपना धर्म चुन लिया है, विरोध करना है। उनसे कोई दिक्कत नहीं। लेकिन संदेह करने वाले लोग ज्यादा खतरनाक होते हैं। जो व्यक्ति सिनेमा और संगठन जैसे मुद्दों पर भी सच बोलने से पीछे नहीं हटता, उसे कहां और कब राष्ट्रपति शासन लगाना चाहिए, अथवा नहीं, इसका ज्ञान नहीं होगा?

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दूसरा विषय है न्याय का। जिहाद और धर्मांतरण के खिलाफ न्याय की लड़ाई जितनी जिम्मेवारी से सरकार को लड़नी है, उतने ही जिम्मेवारी से समाज का भी सहयोग चाहिए। जिहाद के लिए अंतरराष्ट्रीय फंडिंग तथा जुड़े संगठनों पर प्रतिबंध लगाकर इस रोग का निदान नहीं किया जा सकता। बल्कि इसके लिए जरूरी है कि पूरे भारतीय समाज में इस रोग के समझ की क्षमता हो। ठीक जैसे हर भारतीय को को-रोना नहीं था, लेकिन हर भारतीय को इसकी समझ अवश्य थी। तब जाकर ही इसके निवारण पर सरकार सफल हो पाई। अगर कोई मजहब जिहाद की जननी है तथा यह समाज और राष्ट्र के लिए खतरनाक है, तो समूचे भारतीय जनसमुदाय में इस तथ्य की स्वीकृति होनी चाहिए। बिना जनस्वीकृति इतने बड़े अभियान में सरकार की कार्रवाई सहज नहीं हो सकती। जनस्वीकृति दिलाना एक बड़ा चुनौती भरा काम है, कहीं न्याय दिलाने से भी बड़ा। और इसलिए पीएम मोदी अपनी जनसभाओं में द केरला स्टोरी का नाम ले रहे हैं। मतलब अपने संवैधानिक जिम्मेवारी से ऊपर उठकर, इस सामाजिक जिम्मेवारी को भी निभा रहे हैं।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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