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चंद्रयान की उपलब्धि पर हमें गौरवान्वित क्यो होना चाहिए ?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
हमारी नानी ने जब नया नया टीवी देखा तो बहुत हैरान हुईं । बोलीं कि इतने आदमी औरतें कैसे इतने छोटे से बक्से में बंद रहते हैं और बटन दबाते ही उछलने कूदने लगते हैं । वैसे तो ऐसा होना असंभव था लेकिन सामने दिखाई देने वाली चीज़ पर अविश्वास भी नहीं कर सकतीं थीं । टीवी के पीछे का विज्ञान उन्हें कोई नहीं समझा पाया ।

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आज भी बहुत से लोग अपनी सदियों पुरानी अवधारणा से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं । विज्ञान के चमत्कार उन्हें अविश्वास करने को विवश कर देते हैं । ऐसे ही पुरातन जीवी लोगों ने अमेरिका के अपोलो मिशन और मानव को चंद्रमा पर उतारने की महान उपलब्धि को झूठा बताने का अभियान चलाया हुआ है । पहले तो यह ख़बर मस्जिद मस्जिद चली थी । सन ८० में मैंने सुदूर गाँवों के मौलवियों से भी सुनी थी लेकिन मैंने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया । लेकिन चंद्रयान ३ की लैंडिंग के बाद बड़े बड़े विद्वान भी फ़ेसबुक पर इस ख़बर ऐसे चला रहे हैं जैसे नेहरू जी का मुस्लिम डीएनए खोज लाये हों ।

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तरह तरह के तर्क हैं इनके पास कि चाँद पर वायुमंडल नहीं है तो झंडा लहरा कैसे रहा है ? इतने बड़े रॉकेट से पृथ्वी से प्रक्षेपित किए गए थे तो चंद्रमा से वापस प्रक्षेपित करने वाला रॉकेट कहाँ है ? फ़ोटो में तारे क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं ? मेरा सात साल का दौहित्र है उसकी अनंत जिज्ञासाओं का समाधान कोई नहीं कर सकता । बच्चों के प्रश्नों का समाधान हो भी नहीं सकता । वे ऐसे सवाल पूछते हैं जिनका उत्तर समझने के लिए विज्ञान की फ़ंडामेंटल जानकारी होनी ही चाहिए । जब वे बड़े होंगे, ऊँची कक्षाओं में पहुँचेंगे तब स्वयं समझ जायेंगे ।

चंद्र मिशन पर संदेह करने वाले बड़ी उम्र के बच्चे हैं । ये बातचीत में रॉकेट साइंस समझना चाहते हैं । इन्हें पृथ्वी और चंद्रमा के पलायन वेग के अंतर का पता नहीं है । इन्हें इतनी सी बात नहीं समझ में आती कि झंडा धातु के पतले तारों के सहारे शून्य में भी लहराया जा सकता है । ये कहते हैं कि हमें चंद्रयान भेजने में इतनी दिक़्क़त आई कि तीसरी बार में हम सॉफ़्ट लैंडिंग कर पाये तो अमेरिका पचास साल पहले कैसे इतनी आसानी से उतर गया । इन्हें मनुष्य की क्षमता का पता नहीं है । मानव रहित मिशन हमेशा मुश्किल होते हैं, जब अंतरिक्ष यात्री होता है तो वह हर बाधा से निपट सकता है ।

२० जूलाई १९६९ का दिन मानव जाति के लिए मील का पत्थर है । पृथ्वी से बाहर निकलते ही यह हमारी पृथ्वी दिखाई देती है अमेरिका रूस भारत तब नहीं रह जाते । जो लोग जातियों और धर्मों और राष्ट्रीयताओं में अपनी पहचान खोजते हैं वे कभी नहीं समझ सकते कि इंसान की भी अपनी एक अलग पहचान है । मनुष्य की हर उपलब्धि पर हमें गौरवान्वित होना चाहिए ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार है)

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