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नागा साधु सनातन धर्म के रक्षक क्यों हैं ?

-अजीत सिंह की कलम से-

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Positive India:Ajit Singh:
नागा साधु(Naga Sadhu) सनातन धर्म के रक्षक हैं..!
लेकिन हमारे ही धर्म के कुछ बौने लोग इन्हें हेय दृष्टि से देखते है…क्योंकि वे इन्हें और इनकी धर्मनिष्ठा से ओत प्रोत सच्चाई को जानते नहीं!
1664 में काशी विश्वनाथ मंदिर की रक्षा करते हुए औरंगजेब को बुरी तरह हराया था इन्ही नागा साधुओं ने!

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जब हम नागा साधुओं के बारे में सुनते हैं,तो हमें शरीर में राख के साथ नग्न साधुओं को लेकर विभिन्न गलत विचार आते है…इनको लेकर बहुसंख्यक समाज का बहुत बड़ा वर्ग आज भी अज्ञानता का शिकार है…जबकि यह सनातन के विरोधियों का सबसे प्रचंड प्रतिवाद करने वाले सैनिक है..उन्होंने हिंदू धर्म की आक्रमणकारी म्लेच्छों और फिर अंग्रेजों से कई बार रक्षा किया..नागा साधुओं के गुरु दत्तात्रेय थे,
त्रिदेवों के अवतार – ब्रह्मा, विष्णु और महादेव।

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मठवासी परंपरा के दशनामी संप्रदाय को दत्तात्रेय के लिए जिम्मेदार बताया जाता है,जिसे आदि शंकराचार्य द्वारा 4 मठों में आयोजित किया गया था।
मठों के अलावा,उन्होंने सनातन धर्म की रक्षा के लिए योद्धा साधुओं के एक वर्ग को भी संगठित किया….बाद में उन्हें ‘नागा साधु’ के रूप में जाना जाने लगा……नागा साधु को मृत्यु का कोई भय नहीं है और त्रिशूल,तलवार, लाठी और शंख उनके अस्त्र रहे हैं।

काशी विश्वनाथ मंदिर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस्लामी लुटेरों ने मंदिर पर कई बार हमला किया था। इसे सबसे पहले कुतुब-उद-दीन ऐबक ने 1194 ई. में नष्ट किया था।
वह तब मोहम्मद गोरी की सेना के अधीन एक सेनापति था..अन्य मंदिरों की तरह,इस मंदिर का भी पुनर्निर्माण किया गया था।
पुनर्निर्माण 13वीं शताब्दी के मध्य से पहले एक गुजराती व्यापारी के संरक्षण में किया गया था काशी को जौनपुर सल्तनत के शर्की शासकों द्वारा फिर से लूट लिया गया था और उसके बाद सिकंदर लोधी की मुस्लिम सेना ने 15वीं शताब्दी में इसका ध्वंस किया गया,जिसे 16वीं शताब्दी के अंतिम भाग में,
यानी 1585 में राजा टोडर मल द्वारा फिर से बनाया गया था…औरंगजेब और उसकी मुगल सेना ने 1664 में काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला किया……….जिसका नागा साधुओं ने प्रचंड विरोध किया और मंदिर का बचाव किया……….उन्होंने औरंगजेब और उसकी सेना को बुरी तरह पराजित किया…मुगलों की इस हार का उल्लेख जेम्स जी. लोचटेफेल्ड की पुस्तक “द इलस्ट्रेटेड इनसाइक्लोपीडिया ऑफ हिंदुइज्म”, खंड 1 में मिलता है,उन्होंने इस घटना को अपनी पुस्तक में ‘ज्ञान वापी की लड़ाई’ के रूप में वर्णित किया।
(ध्यान दें कि औरंगजेब और उसकी सेना के खिलाफ नागा साधुओं की ‘जीत’ को इस विवरण में ‘महान’ कहा गया है।)

इसलिए,भले ही युद्ध का वर्णन अच्छी तरह से न किया गया हो, यह कल्पना की जा सकती है कि नागा साधुओं ने मुगल सेना पर कैसे कहर बरपाया होगा!

बिलबिलाये औरंगजेब ने इसके पांच साल बाद,यानी 1669 में फिर से वाराणसी पर हमला किया और मंदिर में तोड़फोड़ की,उसने इसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण किया जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है….1669 में जब औरंगजेब ने दूसरी बार वाराणसी पर हमला किया,तो नागा साधुओं ने अपनी अंतिम सांस तक जवाबी कार्रवाई की,स्थानीय लोककथाओं और मौखिक कथाओं के अनुसार,लगभग 40,000 नागा साधुओं ने काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।

1780 में,एक बार फिर मराठा राजा मल्हार राव की बहू अहिल्याबाई होल्कर ने ज्ञानवापी मस्जिद से सटे वर्तमान मंदिर संरचना का निर्माण किया…लेकिन अफसोस है कि कांग्रेस के नेतृत्व मे वामपंथियों द्वारा लिखित हमारे अकादमिक इतिहास की किताबों में औरंगजेब के खिलाफ नागा साधुओं की इस जीत का कोई उल्लेख नहीं है..क्योंकि राणा प्रताप की जगह अकबर को महान लिखने वाले वो सत्य जनमानस को बताना नहीं चाहते थे,उन्होने इसके बजाय,मुगल शासक को बहुत महिमा मंडित किया है।

फिलहाल निस्वार्थ भाव से सनातन धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं के रणकौशल और उनके बलिदान को शत शत नमन!

#वंदेमातरम्
#AjitSingh

साभार:अजीत सिंह वाया सोशल मीडिया-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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