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मोहन भागवत ने क्यों कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों खोजना ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
मोदी जी जब मुख्यमंत्री थे, सुभाष बाबू और गांधी जी को लेकर बड़ा स्पष्ट रहते थे। कोई दुविधा नहीं पालते थे। लेकिन जब वे गांधीनगर से दिल्ली आए, उन्होंने केवल सिर झुकाकर नहीं अपितु पुरा तन झुका कर गांधी जी को नमन किया। लेकिन मोदीजी को उनके समर्थक आज भी उसी रूप में देख रहे हैं, जिस रूप में उन्हें आरंभ से जानते हैं। अब मोदी जी कुछ भी कह लें, उनके समर्थक वही बात समझते हैं जिसके लिए वे समर्थक बने हैं।

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जब किसी व्यक्ति या संगठन का दायरा बड़ा हो जाता है, जब उस व्यक्ति या संगठन को सुनने वाले, अनुसरण करने वालों की संख्या अधिक हो जाती है, तब उस व्यक्ति अथवा संगठन के संवाद का स्तर बहुत ऊंचा हो जाता है। संवेदनशील हो जाता है। तब तीखे शब्दों में और ऊंची आवाज में संवाद करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। ऊंची आवाज तो क्या, तब संकेत ही पर्याप्त होते हैं। क्योंकि यह संवाद का एक ऐसा स्तर होता है जब सुनने वाले का हमें ध्यान खींचने की आवश्यकता नहीं होती। लोग स्वयं सुनने के लिए संवेदनशील होते हैं।

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भागवत जी ने कहा कि राम मंदिर आंदोलन में संघ ने हिस्सा लिया, लेकिन अब वे ऐसा कोई भी आंदोलन नहीं करेंगे। उन्होंने तब क्यों हिस्सा लिया और अपना बलिदान दिया? क्योंकि वे समाज का नेतृत्व चाहते थे। आज आरएसएस एक सक्षम नेतृत्व की हैसियत में है। अब वह देश को जिस आदर्श राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं, ले जा सकते हैं, इसका उन्हें आत्मविश्वास हो गया है।

मैंने मोहन भागवत साहब का बयान सुना। वे पूरे भारतीय समाज से अपेक्षा रख रहे हैं कि सभी मिलजुल कर रहें। आपसी समझौते से किसी भी बात का हल कर लें। चूंकि हमेशा ऐसा नहीं हो सकता, इसलिए अदालत जो निर्णय दे उसका सम्मान करें। मुस्लिम लोग भी कनवर्टेड ही हैं। उनके पूर्वज हिंदुस्तानी ही हैं। उन्हें भी चाहिए कि इस बात को समझें। हमें हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों खोजना? भागवत जी घर वापसी पर काम करने वाले लोग हैं। बिना संघर्ष पैदा किये पूरे भारत का नेतृत्व थामना चाहते हैं और भारत को भारतवर्ष बनाना चाहते हैं।

तब सवाल है एक तरफा उदारपन से संपूर्ण भारत का नेतृत्व कैसे मिलेगा? मुझे लगता है इसके लिए कुछ दिन पहले आया इमरान चौधरी, जो कि आरएसएस के मुस्लिम मंच के नेता हैं, उनका बयान सुनना चाहिए। उन्होंने ठीक वही सब कहा जो आरएसएस जैसे संगठन से उनके समर्थक अपेक्षा रखते हैं। कितना सुंदर है सब कुछ! मुसलमान अपने किए का पश्चाताप करें, औरंगजेब का दुत्कार करें। और भागवत जैसे हिंदुत्ववादी नेता राष्ट्रीय एकीकरण पर जोड़ दें।

संघ को अब संघर्ष पैदा करने वाली लहलहाते बयान देने की क्या आवश्यकता है? ऐसे लहलहाते बयान समाज के एक बड़े वर्ग को स्वीकृत नहीं हो सकता। क्योंकि जिन्हें समाज में व्यापक नेतृत्व थामने की लालसा है, उन्हें व्यापक स्वीकृति पाने के लिए कभी पीछे बढ़कर किसी पीछे छूटे का हाथ पकड़कर खींचने की आवश्यकता पड़ेगी। यही आज संघ कर रहा है। इसलिए अब संघ को हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की आवश्यकता नहीं है। इसके लिए हिंदुत्व की धारा में जुड़ चुके लोग अब स्वयं ही सक्षम हो गए हैं।

संघ अपेक्षा रखता है कि सब की घर वापसी हो जाए और शिवलिंग समेत तमाम मजहबी इमारत भी वापस हो जाए, बिना संघर्ष किए। मुझे लगता है ऐसे उच्च स्तरीय और आदर्श विचार संवाद में रखने के लिए संघ अब सक्षम हो चुका है। उसे अब ऐसा ही संवाद रखना चाहिए। यह विचार परिवार की उच्चता का प्रमाण है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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