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इमरान खान ने क्यों कहा कि भारतीय बहुत खुद्दार कौम हैं?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
तालिबान ने चढ़ाई की तो अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार भाग खड़ी हुई थी। अशरफ गनी ने तालिबान से संघर्ष नहीं किया। कोई दोषारोपण नहीं, कोई तकरार नहीं। आज इमरान खान(Imran Khan) क्या कर रहे हैं? अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से डटकर मुकाबला करने के बजाए दूसरे मुल्कों को दोषारोपित कर रहे हैं। यह इनकी खासियत है। दुनिया को भले जो दिखे, ये आपस में नहीं लड़ते। अलग बात है कि ताकत और वर्चस्व जिसके पास होती हैं सत्ता उसे मिल ही जाती है। इमरान खान फ्लोर टेस्ट से कब तक भागेंगे?

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ताकत और वर्चस्व के इस खेल में जन सरोकार के मुद्दे कहीं भी देखने को नहीं मिलते। यहाँ सत्ता का खेल अलग होता है और आवाम का सरोकार अलग। मुल्क की आवाम कभी सत्ता के खेल में आड़े नहीं आती। अगर आवाम के किसी हिस्से को सत्ता परिवर्तन से कठिनाई महसूस होती है तो वह मुल्क छोड़ देता है। अफगानिस्तान के पठानों ने प्लेन के पंखों पर बैठकर बड़ी खुशी खुशी मुल्क छोड़ दिया। मुल्क छोड़ देना भी उनके लिए एक अवसर की तरह है। इससे उम्मत को बल मिलता है। वह किसी दूसरे मुल्क में शरणार्थी की तरह जाते हैं और फिर वहां जिहाद का कब्जा जमाते हैं। यही तो सुंदरता है इस्लामिक जगत में राजनीतिक उठापटक की।

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इमरान खान कहते हैं भारतीय बहुत खुद्दार कौम हैं। पर मैं यहां इमरान खान के बयान से असहमत हूं। क्योंकि भारतीय कौम कहने का अर्थ है भारत में रहने वाले हर वर्ग के लोग। इमरान खान को मालूम होना चाहिए कि भारत में रहने वाला एक बड़ा ही गद्दार वर्ग भी है। और इसी गद्दारी का नतीजा हुआ था कि अखंड भारत टुकड़ों में बंट गया। भारत की सहिष्णुता के कारण उस गद्दार कौम का एक अच्छा खासा हिस्सा फिर भी शेष भारत में ही रह गया। जो फिर एक बार भारत को तोड़ने के लिए आजादी का नारा बुलंद कर रहा है। इमरान खान ने जो कहा कि दोनों मुल्क एक साथ आजाद हुआ, यहां आजाद का मतलब इसी आजादी से है। आजादी का यह उन्माद पाकिस्तान के रूप में विलग हो जाए या बांग्लादेश के रूप में, शांति स्थापित हो नहीं सकती।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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