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सिनेमाई संसार में पराजित प्रेम कहानियों की सर्वश्रेष्ठ नायिका कौन? रेखा! रेखा और केवल रेखा!

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
सिनेमाई संसार में पराजित प्रेम कहानियों की सर्वश्रेष्ठ नायिका कौन? रेखा! रेखा और केवल रेखा!
हर जगह भड़की हुई दिखने वाली जया बच्चन को देख कर गुस्सा नहीं आता मुझे! उनकी झुंझलाहट का कारण स्पष्ट समझ आता है। वो एक ऐसी प्रेम कहानी की नायिका हैं, जिसका नायक उनका हो कर भी उनका नहीं। उसके माथे पर लिख दिया गया है एक दूसरी लड़की का नाम! ठीक वैसे ही, जैसे किसी फिल्म में नायक के हाथ पर किसी विलेन ने लिख दिया था- मेरा बाप चोर है। जया के भाग्य में केवल झुंझलाहट ही है…
पता नहीं अमिताभ बच्चन इसे अपना दुर्भाग्य मानते हैं या सौभाग्य, पर उनके जीवन का एक सच यह भी है कि उनकी कहानी बिना रेखा के कभी पूरी नहीं होगी।
रेखा कुछ वर्षों तक साथ रहीं अमिताभ के, प्रेम कुछ ही वर्षों तक साथ रहता है! मनुष्य सर्वाधिक सुन्दर तभी लगता है, जब प्रेम में होता है। अमिताभ अपनी फिल्मों में सर्वाधिक सुन्दर तभी दिखे, जब रेखा के साथ थे। आदमी अपने प्रेम को भले छोड़ दे, प्रेम उसे कभी नहीं छोड़ता। अमिताभ रेखा भले एक दूसरे के साथ नहीं, पर एक का नाम लेते ही दूसरा याद आ जाता है।

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अमिताभ का दुर्भाग्य यह है कि वे केवल अच्छे अभिनेता हो सके। एक मित्र, प्रेमी या नागरिक के रूप में वे सदैव आलोचना के घेरे में रहेंगे। शायद इसका कारण भी उनका शानदार अभिनेता होना ही हो। हम अनावश्यक ही एक अच्छे अभिनेता में उतना ही अच्छा नागरिक भी ढूंढने लगते हैं। एंग्री यंग मैन… शहंशाह… महानायक… पर ऐसा होना सम्भव है क्या? अमिताभ को एक अच्छे अभिनेता के रूप में ही याद किया जाना चाहिये।
रेखा को इधर किसी सङ्गीत के शो में गाते हुए सुना था। इश्क की रश्म को कुछ ऐसे निभाया हमने… आरजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने… रेखा जैसे अपनी कहानी सुना रही थीं। उस कहानी में अमिताभ का नाम कहीं नहीं था, पर पूरी कहानी अमिताभ की ही थी।
अमिताभ रेखा के न हो सके, तो रेखा भी किसी की न हो सकीं। अमिताभ के बाद उनका जीवन जाने कितनी कहानियों का हिस्सा बना, पर कहीं भी निभ न सका उनसे… यही होता है। प्रेम का रङ्ग एक बार चढ़ जाय, फिर दुबारा नहीं चढ़ता… काठ ही हांडी है भई!
प्रेम बूढ़ा नहीं होता कभी! रेखा कभी बूढ़ी नहीं होंगी। यूँ ही गुजर जाएंगी, कातिक की रात में रजनीगन्धा की गंध लिए निकले किसी झोंके की तरह… यही उनकी नियति है…
एक बात और! चकाचौंध से भरी उस दुनिया में परदे के पीछे केवल अंधेरा है। इतना गहरा अंधेरा, कि जाने कितनी सुन्दर कहानियां उन्ही अंधेरों में घुट कर समाप्त हो गईं। पर यह केवल सिने जगत का सत्य नहीं। चमक-दमक से भरे हर रंगमंच के पीछे का सत्य यही है। अंधेरा…
खैर! इक्यासी साल के हो गए उस युवक को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं! जया जी के भीतर राजनीति का मोह न होता तो शायद बच्चन के हिस्से में इतनी आलोचना नहीं आती…

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साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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