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किसान आंदोलन में दम होता तो बासी पैगसस का कोहराम न होता

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
मुस्लिम वोट बैंक में दम होता तो मई , 2014 में नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री न बने होते। नफ़रत और घृणा से भरे मुट्ठी भर लेखकों , कवियों को मई , 2014 के बाद की कविता का विलाप न करना पड़ता। देश छोड़ने का ऐलान न करना पड़ता। राफेल में दम होता तो फिर 2019 में नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधान मंत्री न बने होते। एन आर सी और सी ए ए के दंगों में दम होता तो किसान आंदोलन न होता। किसान आंदोलन में दम होता तो बासी पैगसस का कोहराम न होता। पैगसस का मामला 2019 का है। विपक्ष समेत नरेंद्र मोदी वार्ड के मरीजों को अब से सही समझ लेना चाहिए कि मंकी एफर्ट्स से देश की छवि से खेला तो जा सकता है , अपना इगो मसाज तो किया जा सकता है पर नरेंद्र मोदी जैसे ज़मीनी नेता को पछाड़ा या उखाड़ा नहीं जा सकता। आप पूछ सकते हैं कि मंकी एफर्ट क्या बला है।

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क्या हुआ कि एक जंगल में एक बंदर ने शेर के खिलाफ विष-वमन किया और जंगल में और जानवरों को शेर के खिलाफ ख़ूब भड़काया और बताया कि शेर के अत्याचार से सिर्फ़ मैं ही आप लोगों को बचा सकता हूं। सो मुझे जंगल का राजा बना दो। सारे जानवर मान गए। बंदर राजा बन गया। एक दिन अचानक शेर आ गया। लोग बंदर से बोले , मुझे अब शेर से बचाओ। बंदर पेड़ पर चढ़ गया। और इस डाल से उस डाल कूद-कूद कर शेर को हड़काता रहा। लेकिन शेर ने बंदर की एक न सुनी। एक-एक कर कई जानवरों को खाता रहा। जंगल के जानवरों ने बंदर से कहा कुछ करते क्यों नहीं ? हमें बचाते क्यों नहीं ? इस डाल से उस डाल उछल-कूद करते हुए बंदर बोला , ‘ कोशिश तो लगातार कर रहा हूं। मेरे एफर्ट में कोई कमी हो तो बताओ। ‘ और शेर एक-एक कर सभी जानवरों को खा गया।

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कुछ-कुछ इसी तरह भारत का विपक्ष निरंतर समाप्त होते हुए कांग्रेस और राहुल गांधी के मंकी एफर्ट को इंज्वाय कर रहे हैं। पैगसस भी इसी मंकी एफर्ट का एक सिलसिला है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आज विपक्ष के इस मंकी एफर्ट की ऐसी-तैसी करते हुए पूछ लिया है कि सुबूत क्या है ? 2019 में यह मामला सामने आने पर भी अभी तक कहां थे ? कहीं शिकायत क्यों नहीं की ? सुनवाई मंगलवार यानी 10 अगस्त को फिर है। पर पैगसस पर पहले राउंड में राहुल गांधी के मंकी एफर्ट की हवा निकाल दिया है सुप्रीम कोर्ट ने।

बाकी विपक्ष भी जब तक राहुल के मंकी एफर्ट के खेल से बाहर निकल कर जब तक जनता के बीच नहीं जाएगा। कोई ज़मीनी बात नहीं करेगा , गगन बिहारी बातें करता रहेगा तो 2024 में भी नरेंद्र का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। यह लिख कर रख लीजिए। बिना किसी भेदभाव के गरीबों के बीच पक्का मकान , शौचालय , गैस , जनधन , किसान को पैसा , मुफ्त राशन आदि ज़मीनी कार्यक्रमों की ताकत विपक्ष अभी तक समझ नहीं पाया है। कोरोना के बावजूद जी एस टी का रिकार्ड कलेक्शन , निर्यात का बढ़ता रिकार्ड देख कर भी विपक्ष फर्जी जी डी पी का गाना गाता रहता है। उलटी बात करने से जनता बहकती नहीं। ज़मीनी हक़ीक़त देखती है। नरेंद्र मोदी ने आज ओलंपिक की चर्चा करते हुए विपक्ष पर हमलावर होते हुए कहा भी है कि देश पद नहीं पदक से आगे बढ़ रहा है।

देश ही नहीं , देश का खेल और देश की राजनीति भी अब आमूल-चूल बदल चुकी है। जनता ने अपनी प्राथमिकताएं भी बदल ली हैं। अपनी ज़रूरतें जनता जानती है और अपनी महत्वाकांक्षाएं भी। कोरोना की इतनी बड़ी महामारी में भूख से मरने का कोई आंकड़ा नहीं आ पाना भी बड़ी बात ही। रही बात स्वास्थ्य व्यवस्था की तो वह समूची दुनिया में लाचार दिखी है। भारत में भी ध्वस्त थी। इस से कोई कैसे इंकार कर सकता है। हां , विपक्ष ने ज़रूर इस कोरोना के बहाने भी देश को गृह युद्ध में झोंकने की पूरी कोशिश की। जनता और मज़दूरों ने इस बात को बहुत करीब से देखा और महसूस किया है।

किसान आंदोलन के बहाने भी देश को गृह युद्ध में झोंकने और दिल्ली को जालियांवाला बाग़ बनाने के बेतरह कोशिश की विपक्ष ने। क्या जनता अंधी है ? या सिर्फ़ गोदी मीडिया कह कर घटनाओं पर पानी डाला जा सकता है। विपक्ष भारी हताशा में है। इस हताशा में अपने पैर पर निरंतर कुल्हाड़ी मारने में व्यस्त है। पैगसस भी एक ऐसी ही कुल्हाड़ी है। जैसे कभी राफेल था। अयोध्या में राम मंदिर की सत्यता को स्वीकार न करने और सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद राम मंदिर का विरोध करने से मुट्ठी भर मुस्लिम वोट तो मिल सकते हैं विपक्ष को पर देश को क्या मिलता है , यह बात विपक्ष नहीं समझना चाहता है।

चंद मुस्लिम वोटों के लिए भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा अल्ला , इंशा अल्ला ! या तुम कितने अफजल मारोगे , हर घर से अफजल निकलेगा की मानसिकता में डूबा विपक्ष पुलवामा में आतंकी कार्रवाई को भी मोदी की साज़िश मानता है। मोदी विरोध के उफान में चीन को अपना बाप मानता है। सर्जिकल स्ट्राइक के सुबूत मांगता है। बालकोट एयर स्ट्राइक को फर्जी बताता है। अभिनंदन की वापसी को भी तिकड़म मानता है। सेना पर विपक्ष को यकीन नहीं। चीन के साथ खड़े हो कर सरकार पर हमलावर दीखता है विपक्ष। चुनाव आयोग , सुप्रीम कोर्ट हर कोई उन्हें भाजपाई दीखता है।

लेकिन जनता क्यों भाजपाई हो गई है , विपक्ष को , राहुल गांधी को यह तथ्य नहीं दीखता। लोग राहुल गांधी को भाजपा का स्टार प्रचारक ऐसे ही तो नहीं कहते। बात-बेबात विपक्ष कीचड़ फैलाता रहता है और कीचड़ में कमल ऐसे ही खिलता रहता है। विपक्ष को , मोदी वार्ड के मरीजों , घृणा और नफ़रत की वैचारिकी में डूबे लेखकों , कवियों को अपनी घृणा और नफ़रत से कभी अवकाश मिले तो अपने को अपने इस कीचड़ के दर्पण में देखना ज़रूर चाहिए। नहीं , ऐसे गगन बिहारी टोटकों से तो नरेंद्र मोदी को कभी न हटा पाएंगे। उलटे और मज़बूत करते जाएंगे। मज़बूत बनाते ही जा रहे हैं।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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