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‘आप’ की दस्तक के मायने

- दिवाकर मुक्तिबोध की कलम से-

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Positive India:दिवाकर मुक्तिबोध:
पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचंड विजय से उत्साहित आम आदमी पार्टी अब गुजरात, हिमाचल प्रदेश व छत्तीसगढ़ में अपने लिए नयी संभावनाएं तलाशने जुट गई है। छत्तीसगढ़ में अगले वर्ष नवंबर में राज्य विधानसभा के चुनाव हैं। कांग्रेस व भाजपा की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं है। पार्टी के गुजरात प्रभारी व मूलत: छत्तीसगढ़ निवासी सांसद संदीप पाठक, प्रदेश प्रभारी संजीव झा व दिल्ली की आप सरकार के मंत्री गोपाल राय के हाल ही के छत्तीसगढ़ दौरे से यह स्पष्ट है कि आप आदमी पार्टी कांग्रेस व भाजपा के बाद स्वयं को तीसरे विकल्प के रूप में पेश करना चाहती है। इस दृष्टि से उसके पास करीबन डेढ वर्ष का समय शेष हैं। इन डेढ़ वर्षों में संगठन के विस्तार के साथ ही उसका एजेंडा गांव-गांव में जन संवाद के जरिए लोगों के बीच अपनी पैठ बनाना तथा विश्वास अर्जित करना है। यानी ‘आप ‘ ने छतीसगढ़ की राजनीति में धमक पैदा करने कमर कस ली है।

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लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा ? संशय है। यद्यपि छत्तीसगढ़ में आप की चुनावी संभावना के संबंध में अभी कुछ भी कहना या आकलन करना जल्दबाजी होगी पर चूंकि आप का केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनाव को गंभीरता से ले रहा है अत: कुछ तो कहा ही जा सकता है। दरअसल प्रदेश में आप का सांगठनिक ढांचा बहुत कमजोर है। बौद्धिक वर्ग में भी उसका असर नहीं है जबकि यह उन्हीं की पार्टी कहलाती है। अपने अस्त-व्यस्त पार्टी के सांगठनिक ढांचे को नये सिरे से खडा करने के लिए उसके पास काफी समय तो है पर वह जडें जमाने के लिए पर्याप्त नहीं हालांकि छत्तीसगढ़ मे पार्टी एक दशक से काम कर रही है। पर इन दस वर्षों में न तो प्रभावशाली क्षेत्रीय नेतृत्व उभर पाया और न ही इसके लिए इमानदार कोशिश की गई। यह स्थिति अभी भी बनी हुई है। 2018 में राज्य विधानसभा के अपने पहले चुनाव में आप ने 90 में से 71सीटों पर प्रत्याशी खडे किए थे पर नतीजा ,जाहिर है शून्य ही रहा। उसे सिर्फ 1,23,535 वोट मिले। सभी उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हो गईं।

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इसलिए छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी को लगभग शून्य से शुरुआत करनी होगी। दिल्ली को छोड़ दें, जहाँ 2013 से उसकी सरकार है, पार्टी ने बीते आठ- नौ वर्षों में कुछ राज्यों में धीरे धीरे पैर पसारे हैं। पार्टी ने गोवा, गुजरात, हरियाणा , झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, मेघालय, नागालैंड ,राजस्थान, तेलंगाना, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ व उत्तरप्रदेश में संगठन खडा करने की कोशिश की। अलग-अलग समय में हुए इन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने जोर-आजमाइश की लेकिन मामूली उपस्थिति दर्ज करने के अलावा कुछ हासिल नहीं हुआ अलबत्ता पंजाब फायदेमंद रहा। 2017 के चुनाव में पार्टी ने बीस सीटें जीतकर मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया था और अब तो वहां उसकी सरकार है। कुछ ही महीने पहले सम्पन्न हुए विधान सभा चुनाव में पार्टी ने 117 में से 92 सीटें जीतीं और यही बंपर पंजाबी जीत टानिक का काम कर रही है जिसने उसका रूख गुजरात, हिमाचल प्रदेश के बाद छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनाव की ओर मोड दिया है।

बहरहाल प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों एवं मतदाताओं के मिजाज को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि राज्य के अगले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए उजली संंभावनाएं नजर नहीं आतीं। दरअसल छत्तीसगढ़ के पृथक राज्य बनने के दो दशक बाद भी यहां कांग्रेस व भाजपा के मुकाबले कोई ऐसी राजनीतिक पार्टी खडी नहीं हो सकी जिस पर जनता का विश्वास जमें। राज्य ने इस दौरान चार विधानसभा व लोकसभा चुनाव देखें। अधिकतर वोटों का बंटवारा कांग्रेस व भाजपा के बीच ही हुआ हालांकि सपा, बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, जदयू व वामपंथी दलों के प्रत्याशी भी प्रत्येक चुनाव में मैदान में रहे। पर नकारे गए। यह प्रदेश की राजनीतिक तासीर है जिसमें दो ही खिलाड़ी रहते हैं-कांग्रेस व भाजपा। अलबत्ता इनके बीच अजीत जोगी के नेतृत्व में 2016 में गठित जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ ने जरूर जगह बनाने की कोशिश की। पर प्रचार की बहुत ऊंची उडान और जोगी की गहरी पैठ के बावजूद मतदाताओं ने उसे विकल्प के रूप में स्वीकार नहीं किया। उसके सिर्फ पांच प्रत्याशी जीतकर विधानसभा सभा में पहुंच पाए। जबकि बसपा के दो। स्पष्ट है मतदाताओं ने जोगी की नई पार्टी को विकल्प के बतौर स्वीकार नहीं किया। हालांकि पार्टी के पहले ही चुनाव में चार विधायकों का चुना जाना उपलब्धि ही मानी जाएगी। लेकिन वर्ष 2020 में अजीत जोगी के निधन के साथ ही छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस की सारी चुनावी संभावनाएं खत्म हो गई है। पार्टी रसातल में जा चुकी है।

यानी कह सकते हैं कि राज्य में तीसरे विकल्प की संभावना मौजूद है। आम आदमी पार्टी इसी खाली जगह को भरने की कोशिश में है। यह कोशिश कितनी कामयाब होगी, उसमें कितना समय लगेगा, कितने चुनावों से होकर गुजरना होगा तथा जनता का रूख क्या होगा,केवल अनुमान ही लगा सकते है। पर यह तय है जनता की स्वीकार्यता हासिल करने उसे उनके बीच रहना होगा। गांव-गांव जन-संवाद आप का प्रमुख एजेंडा अवश्य है पर वह डेढ वर्ष में वोटों के लिहाज से कितना फलीभूत होगा, कहना मुश्किल। एक अच्छी बात है कि स्वयं की स्थिति को तौलने के लिए विधानसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं है। लिहाजा पार्टी का जोर संगठन के विस्तार के साथ ही नेतृत्व के उभार पर रहेगा। अभी उसके पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो छत्तीसगढ़ के जन-जन के बीच जाना पहचाना व प्रभावशाली हो और जिसे वह मुख्य मंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर सके। कहने के लिए पार्टी के रणनीतिकार व राज्य सभा सदस्य संदीप पाठक छत्तीसगढ़ से हैं किंतु यहां उनकी कोई जमीनी पकड़ नहीं है। राज्य में उनकी पहचान भी तभी बनी जब लोगों को पता चला कि पंजाब में पार्टी की सफलता के पीछे एक रणनीतिक के रूप में उनका भी योगदान रहा हैं। क्या वे मुख्यमंत्री का चेहरा बनेंगे ? यह भी समय की बात है अलबत्ता रायपुर में मीडिया से बात करते हुए, वे इस संभावना से इंकार कर चुके हैं।

अब अंतिम बात। क्या अगले साल विधानसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस व भाजपा के असंतुष्ट खेमें के लोग जिनमें कुछ वरिष्ठ नेता शामिल हैं, दलबदल कर सकते हैं ? आम आदमी पार्टी को राज्य में सबल नेतृत्व की जरूरत है लिहाजा उसकी कोशिश होगी जमीनी पकड वाले अच्छी छवि के नेताओं को सम्मान पूर्वक पार्टी में आमंत्रित किया जाए। कांग्रेस सरकार के वरिष्ठ मंत्री टी एस सिंहदेव पर नजरें इसीलिए टिकी हुई हैं। वे असंतुष्ट हैं, आहत हैं क्योंकि ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री बनाने का वायदा कांग्रेस हाईकमान ने पूरा नहीं किया। उन्होंने यद्यपि यथास्थिति स्वीकार कर ली है लेकिन उनका असंतोष छिपा हुआ नहीं है। उन्होंने खुद ही कहा आम आदमी पार्टी के लोग उनसे मिले थे। इसे सदभावना भेंट बताते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मुलाकात को किसी और अर्थ में न लिया जाए। वे कांग्रेसी हैं और आजीवन कांग्रेस में रहेंगे। लेकिन राजनीतिक व्यक्तियों की कथनी और करनी में अंतर रहता है। इसके ढेरों उदाहरण हैं। वैसे भी देश भर में कांग्रेस की हालत खस्ता है लिहाजा माकूल वक्त पर कोई बडा उलटफेर हो जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

एक और सवाल है, क्या छत्तीसगढ़ के मतदाता कांग्रेस व भाजपा का विकल्प चाहते हैं? जवाब पिछले दो चुनाव हैं। 2003 के चुनाव में शरद पवार व विद्याचरण शुक्ल की राष्ट्रवादी कांग्रेस तथा 2018 में जोगी कांग्रेस को सात – सात प्रतिशत वोट मिले थे। वे यद्यपि सीटों में तब्दील नहीं हुए पर यह संकेत जरूर दे गए कि तीसरी बडी पार्टी की गुंजाइश है। आम आदमी पार्टी इसी संभावना पर काम कर रही है। अभी कांग्रेस सत्ता में है और अब तक के अपने साढे तीन वर्षों में उसने बहुत से ऐसे काम किए हैं जिससे सरकार पर जनता का विश्वास बढा है। अतः यह आम राय है कि भूपेश बघेल के नेतृत्व में पार्टी को शासन करने पुनः पांच साल और मिलेंगे। इसलिए आप 2023 के चुनाव में कांग्रेस व भाजपा को भले ही कोई चुनौती न दे पाए पर छत्तीसगढ़ में उसकी मौजूदगी ,बशर्ते दमदार हो, भविष्य की राजनीति की ओर संकेत जरूर करेगी।

साभार:दिवाकर मुक्तिबोध-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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