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रंग शब्द हमारा नहीं है फिर हमनें इसे क्यो अपनाया ?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
रंग शब्द हमारा नहीं है। लेकिन हमने इसे न केवल अपनाया है, बल्कि आत्मसात किया है। बसंत की सुंदरता से लेकर फागुन के गीतों तक यह रच बस गया है। इसका आगमन फारसी भाषा से उर्दू के जरिए हुआ है। रंग शब्द का असल में अर्थ होता है, आनंद। यह अर्थ ही इस शब्द की स्वीकृति का पहला गवाह है। इसलिए होली रंगो का उत्सव कहा जाए अथवा आनंद का उत्सव, दोनों एक ही बात है।

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इस्लाम का आगमन जिस प्रकार से भारत में हुआ, फारसी से लिया गया शब्द ‘रंग’ को उर्दू के माध्यम से सूफियों ने भी भारत में खासकर उत्तर भारत में लोकप्रियता दिलाई। सूफियों का प्रभाव वैसे 11वीं सदी में भारत में दिखने लगा। जब इसके लिए 8वीं सदी में अरबी आक्रांता मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में इंदौर मुल्तान पर इस्लाम का कब्जा हो गया। लेकिन इसके बाद सूफियों ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। मध्य एशिया को उत्तर भारत से जोड़ने के लिए लगातार उत्तर भारत में जमीन तैयार करते रहे। सूफी आंदोलन की इसमें गहरी भूमिका रही। 13वीं सदी के आरंभ में ही बनारस, कन्नौज, राजस्थान, बिहार, बंगाल सब जगह मुस्लिम शासन स्थापित हो चुका था। इसी क्रम में एक सूफी थे, निजामुद्दीन औलिया, जिनका दरगाह दिल्ली में बना। अजमेर का मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह मध्य व दक्षिण भारत के इस्लामीकरण लिए नाभिक करार दे दिया गया।

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रंग शब्द को आनंद का पर्याय देते हुए अमीर खुसरो ने निजामुद्दीन औलिया की दासता में एक गीत लिखा। इन विद्वानों का काम ही यही था, सूफियों के खिदमत में ऐसी गीतें लिखते थे जो सनातन धर्म में उपनिषद स्तर के होते थे। हम निजामुद्दीन औलिया अथवा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में कालांतर में किस प्रकार पाप कर्म बड़ा आश्रयपूर्वक किया गया, हम सब जानते हैं। ये दरगाह ये मजार आज घृणा का पात्र बन गया है। लेकिन यदि तनिक व्यस्क समझ से देखा जाए तो बुद्ध पुरुषों की परंपरा में अमीर खुसरो को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

परमानंद से साक्षात्कार सनातन में मोक्ष का मिलना कहा जाता है। अमीर खुसरो अपने इस मिलन की बात को अपनी मां से कहते हैं। सुहाग की रात की तरह पिया से मिलन, जिसमें दो मन मिलकर एक हो जाते हैं। खुसरो की यह रात आनंद की रात है। इस आनंद को, इस मिलन को, खुसरो ने रंग कहा है। आत्मा का परमात्मा से मिलन ही सच्चे अर्थों में आनंद है। जिसे सच्चिदानंद कहते हैं, अथवा परमानंद कहते हैं। जैसे-जैसे रात चढ़ने लगती है खुसरो बताते हैं, पूरा शहर उनके महबूब की रंगों में रंगा बिल्कुल लाल नजर आता है। खुसरो के मैले वस्त्र आज बाहर की रात उनकी पिया के हाथों रंग जाने वाला है।

खुसरो के इस गीत को बॉलीवुड ने फिल्म जुनून के जरिए पिछली सदी में और फिल्म मकबूल के जरिए इस सदी में लगातार जिंदा बनाए रखा। पाकिस्तान की आबिदा परवीन आज विश्व भर में सूफी गायन के लिए सर्वश्रेष्ठों की सूची में मौजूद है। बॉलीवुड के साजिशों ने अबीदा परवीन को भारत में वह लोकप्रियता दिलाई, जो कि दीदी लता मंगेशकर के लिए पाकिस्तान में सहज ना हो सका। आबिदा परवीन खुसरो के इस रंग को संगीत के जरिए विश्व की एक बड़ी जनसंख्या तक पहूँचा चुकी है। गीत है- “आज रंग है री मां।”

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार है)

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