www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

जानिए कैसे युगों बाद माँ से मिलने गया जोगी कुछ घण्टों बाद फिर लौट आया अपने कर्तव्य पर!

-सर्वेश तिवारी श्रीमुख की कलम से-

Ad 1

Positive India:सर्वेश तिवारी श्रीमुख :
और युगों बाद माँ से मिलने गया जोगी कुछ घण्टों बाद फिर लौट आया अपने कर्तव्य पर! अपने देश को पूरा जीवन दे देने वाले के पास माँ के लिए बस कुछ घण्टे ही थे। हवा के भाग्य में कहीं ठहरना नहीं लिखा होता है भाई!
माँ और बच्चे के बीच का मोह इतना प्रबल होता है कि कुछ पल के लिए किसी भी परम्परा के बंधन को काट देता है। नाथपन्थ की परम्पराओं को मानें तो बाबा को माँ से नहीं मिलना चाहिए था, पर अंततः बाबा हैं तो मनुष्य ही न! मोह कहाँ टूटता है जी…
मोह यदि माता-पिता या सन्तति के प्रति हो और वह किसी अन्य के दुख का कारण नहीं बने, तो वह मोह भी बड़ा पवित्र होता है। बहुत पवित्र, बैराग्य के बराबर ही…

Gatiman Ad Inside News Ad

हिंसा और उत्पात से भरी इस सृष्टि में सबसे सुरक्षित और स्नेहिल स्थान कोई है, तो वह है माँ का आँचल। उतना सुकून और कहीं नहीं। वे चार घण्टे बीस वर्ष की थकान मिटा देने के लिए पर्याप्त थे, वे चार घण्टे अगले बीसों वर्षों तक बिना थके काम करने की ऊर्जा देंगे।
आप बाबा की छोड़िये, माँ की सोचिये। उसने धर्म को अपना बेटा दान किया है। वह बेटा यदि अपनी योग्यता के बल पर पहले महन्थ, फिर सांसद और अब देश का सबसे यशश्वी मुख्यमंत्री बनता है, तो अपनी तपस्या के फल को एक बार देख भर लेने का अधिकार तो है उस माँ के पास! मुख्यमंत्री योगी कैसे छीन सकते हैं उनसे उनका वह अधिकार… सृष्टि की बनाई हर सत्ता के ऊपर की सत्ता है माँ!
कुछ लोग कह रहे हैं कि बाबा पहले क्यों नहीं गए माँ से मिलने! यह अज्ञानता है, या कहें तो धूर्तता भी है! नाथपंथी जोगियों का इतिहास पढ़ेंगे तो जानेंगे कि वे धर्म और राष्ट्र के लिए कितना कठिन वैराग्य धारण करते थे।
गाँव में घूमते जोगी योग्य बालकों का चुनाव करते, उसे दीक्षा देते और कुछ समय तक मठ में रख कर धर्म का ज्ञान और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का बोध कराते। फिर उन्हें दिया जाता बारह वर्ष तक गाँव गाँव घूमने और आम जन में रह कर उनकी पीड़ा का हिस्सा बनने और उन्हें आध्यात्मिक मार्ग दिखाने का महत्वपूर्ण कार्य… और बारह वर्ष के बाद पुनः अपने मूल गाँव जा कर अपनी माँ से भिक्षा लेने का भार! ताकि यदि मन में तनिक भी मोह बचा हो तो माँ को देखते ही उभर जाय और व्यक्ति पुनः गृहस्थी अपना ले। और यदि तब भी मोह नहीं घेर सका, तो वापस मठ में लौट कर समस्त जीवन जनकल्याण के लिए खपा देना…
सारंगी ले कर सुदूर देहात में भजन गाते हुए घूमना, हर गाँव में डेढ़ महीने का प्रवास और लोगों को धर्म की शिक्षा दे कर माटी की परम्पराओं से जोड़े रखना। मुगल काल में जब धर्मपरिवर्तन का जोर हुआ तो देश के बहुत बड़े हिस्से में इन्हीं नाथपंथी जोगियों ने थामा था हिंदुत्व को। वे लड़े आतंकियों से, अपराधियों से, देश और धर्म के शत्रुओं से… ये जोगीजी भी तो वही कर रहे हैं न! हम योगियों जैसा जीवन जीने की केवल कल्पना कर सकते हैं, पर कल्पना और यथार्थ के बीच यदि कोई है जो ठीक-ठाक निभा रहा है तो वे हैं योगी जी!
हत्या और अपराध की खबरों से भरी दुनिया में एक बेटे का अपनी माँ से मिलने जाना भी यदि खबर बन जाता है, तो यह भी सुखद ही है। सब सुन्दर ही है महाराज!

Naryana Health Ad

साभारः सर्वेश तिवारी श्रीमुख-गोपालगंज,बिहार-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.