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खूंखार सजायाफ्ता मुजरिम लालू यादव पीएफआई की तुलना आरएसएस से कैसे कर सकता है?

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
बिहार की पहचान जिस कालिदास, बुद्ध, महावीर, आर्यभट्ट और चाणक्य की भूमि से होती थी, उस भूमि की पहचान आज एक अपराध सिद्ध चोर और भ्रष्ट व्यक्ति से होने लगी है। जब वह व्यक्ति बोलता है तब पूरा देश सुनता है। उसकी एक आवाज न केवल अखबार की सुर्खियां अथवा टीवी चैनल के ब्रेकिंग न्यूज़ बनते हैं, बल्कि उसके बयान पर प्राइम टाइम विमर्श होते हैं। संपादकीय लिखा जाता है। ऐसे में क्या संदेश जाता होगा देश भर को, इस बिहार के बारे में?

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लालू यादव को चोरी और भ्रष्टाचार के कई मामलों में 32 साल से ऊपर की जेल हुई है। कानूनी पैंतरा लगाकर कानून को धोखा देकर बीमारी के बहाने जमानत पर हैं। और जेल से निकलते ही आकर राजनीति में सक्रिय हो जाते हैं। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ते हैं। निर्विरोध जीतते हैं। ना केवल अपनी पार्टी की राजनीति करते हैं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति के लिए दिल्ली के दस जनपथ भी पहुंचते हैं।

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पीएफआई पर प्रतिबंध से बौखला कर आरएसएस पर प्रतिबंध का बयान जब एक अपराध सिद्ध चोर और भ्रष्ट व्यक्ति देता है, तब यह मामला पीएफआई बनाम आरएसएस का नहीं होता। तब यह मामला लालू यादव के व्यक्तिगत कंट्रोवर्सी का भी नहीं होता। बल्कि इस बयान से सबसे पहले इस युवा देश के मन में प्रश्न आता है कि लालू यादव कौन हैं? कहां से हैं? उत्तर मिलता है लालू यादव एक खूंखार सजायाफ्ता मुजरिम है। जिसके परिवार को बिहार ने लगातार 15 वर्ष तक सत्ता पर बैठाए रखा और जिसका परिवार आज भी पूरी तरह से सत्ता में मौजूद है।

मानव का चरित्र निर्माण करने वाला सामाजिक संगठन आरएसएस पर जब कोई सजायाफ्ता मुजरिम उंगली उठाता है और उसकी तुलना पीएफआई से करता है, तब शर्मसार लालू यादव नहीं होते, बल्कि तब शर्मसार यह बिहार होता है। जिस बिहार ने इस मुजरिम परिवार को पूरी इज्जत देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखा है। यदि लालू परिवार की पार्टी को यह बिहार सबसे बड़ी पार्टी बनाकर सामने नहीं करता, तब 32 साल की सजा में मौजूद एक मुजरिम को निश्चित तौर पर जमानत मिलना आसान नहीं होता। लेकिन विद्वान और बुद्ध पुरुष वाली धरती जब जातिवादी जहर के चपेट में पड़ जाए, तब लोकतंत्र के भाग्य में कोई मुजरिम ही लिखा जाता है।

विशाल झा

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