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कोरोना से लोगो को बचाते हुए डॉ मनोज जायसवाल ने दिया अपना बलिदान

Tribute to Corona Warrior Dr.Manoj Jaiswal.

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Positive India:Bilaspur:
लोगों को कोरोनावायरस से बचाते हुए आज एक और कोरोना वारिऑर डॉ मनोज जायसवाल ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। राजेश अग्रवाल ने एक संस्मरण के जरिए डॉ मनोज जायसवाल को विनम्र श्रद्धांजलि भेंट की है, जिससे आगे बढ़ाया है डॉक्टर राकेश गुप्ता ने।

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आज से 12 साल पहले की बात है। Art of Living का करीब 200 लोगों का एक एडवांस कोर्स था, जिसमें भाग लेने के लिए मैं भी अमरकंटक गया हुआ था। जिस कमरे में मुझे ठहराया गया वहां पर चार लोग थे। देर रात को पहुंचा। किसी से ठीक तरह से परिचय नहीं हो पाया। जैसे-तैसे कैम्प के लॉन में बचा खाना खाकर अपने लिए तय कमरे में घुस गया। कमरे में करीब 70 साल के एक वृद्ध भी हमारे साथ। हम सब की तरह वे भी अपनी मानसिक, शारीरिक सेहत सुधारने के लिये पहुंचे थे। मैंने और बाकी लोगों ने पाया कि बुजुर्ग की तबियत ठीक नहीं है। वे लगातार खांस रहे थे। रात 12 बजे सीने में दर्द महसूस कर रहे थे। खांसी कम होती तो लेट जाते, तेज होने पर बैठ जाते थे। स्थिति ऐसी थी कि उनको तुरंत किसी हॉस्पिटल में भर्ती किया जाना चाहिये। पर इसकी पहल कौन करे। मैने बाहर निकल कर देखा, सब तरफ सूना। मेरे बगल के बिस्तर पर एक बन्धु थे। मुझसे दो-चार साल छोटे लग रहे थे। वे उनकी सेहत को लेकर कुछ ज्यादा चिंतित होते दिखे। हम बाकी दो लोग तो थोडा सा हाल पूछकर कम्बल खींचकर सो जाना चाहते थे क्योंकि ठंड बहुत थी। रात भी बहुत हो चुकी थी। मैं सिर ढांक कर सोच रहा था, जब तबियत इतनी खराब थी तो चाचा कैम्प में क्यों आ गये? बस रात गुजर जाए सुबह किसी डॉक्टर को दिखा देंगे। यात्रा की थकान थी। सुबह 5 बजे योगा सेशन के लिए हाल में पहुंचना भी था। तीन-चार घंटे की ठीक-ठाक नींद हो जाए, दिमाग में चल रहा था। पर ये खांस-खांस कर हमारी नींद खराब कर रहे थे। मैं नाटक करने लगा। मैं सो चुका। ये बात बंगाली वृद्ध ही नहीं, कमरे के बाकी लोग भी जान लें। मगर मेरे बगल वाले बंधु ने कमरे की लाइट ऑन कर दी। मैं तो सोने के नाटक में लगा हुआ था, पर उन्होंने मुझे हिला-हिला कर जगा दिया। बोले, हमें इनको रात में देखना पड़ेगा। जरा साथ देना। बंधु ने बैग से दवा निकाली, मलहम की ट्यूब निकाली। दवा खिलाने के बाद बंधु उसके सीने में मालिश करने लगा। बुजुर्ग ने बताया कि उसे पैरों में भी बहुत दर्द है। बंधु ने उनके पैरों में भी मालिश की। क्योंकि मैं जगा दिया गया था, बंधु को देखकर शर्मिंदगी में मैं भी सेवा में लग गया। दवा खिलाई जा चुकी थी। मालिश के बाद वृद्ध बहुत राहत महसूस कर रहे थे। खांसी रुक गई और वह हमारी मालिश के बाद नींद में चले गए। उसके बाद भी आधा पौन घंटे तक हम इस बात का इंतजार करते रहे कि वृद्ध को कोई नई तकलीफ तो शुरू नहीं हो रही है। जब यह तसल्ली हो गई कि उन्हें आराम मिल गया है, रात के 3 भी बज गए थे। हमने भी कुछ देर सो लेने का तय किया। 2 घंटे के दौरान में सिर्फ इतना जान सका कि ये सेवक भी बिलासपुर का है। साथ ही उसने यह कहा कि मैं अस्पताल में काम करता हूं। मैंने ज्यादा तरजीह नहीं दी। सोचा कोई वार्ड बॉय होगा। वरना, वृद्ध को वे सहारा देकर शौच कराने क्यों ले जाते।
सुबह होते तस्वीर बदल गई थी।

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Art of Living के बहुत से लोग उस वृद्ध की देखभाल के लिए पहुंच चुके थे। सुबह मुझे पता चला कि जिनके साथ मैं वृद्ध की सेवा अनमने ढंग से कर रहा था वह डॉ मनोज जायसवाल हैं। जिला चिकित्सालय बिलासपुर के।

इसके बाद तो लगातार मिलना रहा। अपनी शालीनता, मृदु व्यवहार, मुस्कुराकर बहुत धीमे बात करना, बिना किसी स्वार्थ के सामने आने वाले हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहना। डॉ मनोज जायसवाल की ये सब खूबी थी।

आज सुबह उनके निधन की खबर मिली। हैरान रह गया। बहुत व्यथित हुआ। 4 दिन पहले पता चला था कि वे Corona पॉजिटिव पाए गए हैं। बहुत सामान्य तरीके से लिया इस सूचना को। सब तो बच रहे हैं ये भी बच जाएंगे। खुद डॉक्टर भी हैं और ज्यादा उम्र भी नहीं है। संभागीय कोविड अस्पताल में बतौर अधीक्षक वे लगातार ड्यूटी कर रहे थे। कोरोना मरीजों के सम्पर्क में रहने के कारण बीते 5 महीनों से अपने परिवार से भी नहीं मिल रहे थे। एक बेहतर इंसान को खोने का आज बड़ा दुख हो रहा है। डॉक्टर मनोज जायसवाल अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित एक योद्धा थे। उनसे बिछड़ना एक सदमा दे गया, रुला गये। विनम्र श्रद्धांजलि।
साभार: राजेश अग्रवाल वाया डॉ राकेश गुप्ता।

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