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डाइबेटिक फूट के बारे में जागरुकता आवश्यक क्यो?

NHMMI takes initiative to spread awareness about Diabetic Foot.

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Positive India:Dr.Rajesh Sinha(NHMMI);7 October 2020:
डाइबेटिक फूट के बारे में जागरुकता अति आवश्यक है। एनएचएमएमआई के सीनियर कनस्लटैण्ट डॉ राजेश सिन्हा ने इस विषय पर प्रकाश डाला ताकि डाइबेटिक फूट की जटिलता से बचा जा सके।

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मधुमेह(Diabetes) दुनिया भर में सबसे आम समस्याओं में से एक है। भारत में मधुमेह का प्रकोप अन्य राष्ट्रों के मुक़ाबले अधिक बढ़ रहा है। आईडीएफ़ के अनुसार, वर्ष 2020 में, दुनिया में 463 मिलियन लोगों को मधुमेह है और भारत में 77 मिलियन लोग मधुमेह से प्रभावित हैं। Diabetic Foot मधुमेह के सबसे दुर्बल और भयानक जटिलता में से एक है। डायबिटिक फुट का वैश्विक प्रसार 6.3% है। भारत में डायबिटिक फुट का व्यापकता दर 11.6% पर दिखाई देता है। Dianetic Foot होने पर मधुमेह के रोगी में पैर के विच्छेदन का जोखिम 15% से 46% ज्यादा है, गैर मधुमेह रोगी की तुलना में। डायबिटीज 70% से अधिक लोअर लिम्ब विच्छेदन का कारण है, अर्थात यह पूर्व युद्ध क्षेत्रों से भी अधिक विच्छेदन का कारण है।

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डाइबेटिक फूट, मधुमेह की दीर्घकालिक जटिलता है। मधुमेह रोगी के पैरों में अल्सर, संक्रमण, या गैंग्रीन विकसित होने को डाइबेटिक फूट कहते है।
डाइबेटिक फूट होने के तीन कारक हैं:
1- डाइबेटिक न्युरोपैथी
2- डाइबेटिक वास्कुलोपैथी
3- संक्रमण (इन्फ़ैकशन)।

बहुत लंबे समय तक मधुमेह के रोगी होने पर पैरों की उत्तेजना खो जाती है, रक्तशर्करा की अधिक मात्र के कारण संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है, और यह सब डाइबेटिक फूट के विकास की ओर जाते है।
पैरों मे कुछ महसूस न होना, सुन्नता या झुनझुनी सनसनी, फफोले या अन्य घाव (दर्द के साथ या बिना दर्द के), त्वचा में मलिनकिरण, लालिमा, मवाद के साथ घाव या बिना मवाद के घाव, विच्छेदन का खतरा, बुखार, ठंड लगना आदि डाइबेटिक फूट के लक्षणों में शामिल हैं।
डाइबेटिक फूट का इलाज़ यदि समय पर नहीं किया गया, तो यह त्वचा और हड्डियों के संक्रमण जैसी कुछ बहुत गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकता है। फोड़ा, गैंग्रीन, सेप्सिस, पैर की विकृति, चारकोट फूट और कभी-कभी यह विच्छेदन का कारण बन सकता है।

डाइबेटिक फूट के उपचार में निरर्थक उपचार और सर्जिकल उपचार शामिल हैं। निरर्थक उपचार में घाव की सफाई और ड्रेसिंग, एंटीबायोटिक्स और अन्य दवाइयाँ, उचित जूते, अंग व्यायाम और फिजियोथेरेपी, रक्त प्रवाह बेहतर करने के लिए दवाइयाँ, रक्त शर्करा का नियंत्रण आदि शामिल है।
सर्जिकल उपचार में शामिल हैं – सर्जिकल डिब्रिडमेंट, जल निकासी की सफाई, मृत सेल और ऊतकों की छटाइ, पैर विच्छेदन।

डाइबेटिक फूट को गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है :
ग्रेड 0- इंपेंडिंग अल्सर (त्वचा के उपेरी हिस्से मे अल्सर),
ग्रेड 1- सुपेर्फ़िसीयल अल्सर (उपेरी अल्सर)
ग्रेड 2 -कण्डरा, हड्डी या अस्थिबंधन तक गहरा अल्सर,
ग्रेड 3 – ऑस्टियोमाइलाइटिस,
ग्रेड 4- पैर की उंगलियों या अग्रभाग की गैंग्रीन,
ग्रेड 5 – पूरे पैर का गैंग्रीन

डाइबेटिक फूट से बचने के लिए मधुमेह रोगियों कों एहतियाद बरतना अति आवश्यक है। मधुमेह के रोगी को अपने पैरों के बारे में बहुत सतर्क रहना चाहिए।

डाइबेटिक फूट से बचने के लिए निम्नलिखित उपाय करने चाहिए:
1)हर दिन पैरों की जांच करें, रोजाना पैर धोएं, 2)सहायक जूते और मोजे पहनें व्यायाम और चलने से, पैरों में रक्त प्रवाह बहतर होता है, नाखूनों को सावधानी से काटें, पैरों को अत्यधिक तापमान से बचाएं, पैरों की नियमित जांच करवाए, ब्लड शुगर को नियंत्रित रखें, धूम्रपान से बचें।
अगर यह लक्षण दिखें तो डाइबेटिक रोगियों को फ़ोरन चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए: पैरों की त्वचा के रंग में परिवर्तन, पैर या एडी में सूजन, पैरों में तापमान परिवर्तन, पैरों पर लगातार घाव, पैरों या एडी में दर्द या मरोड़, पैरों के नाखून का अंदर की ओर बढ़ना, पैरों का फंगल संक्रमण, सूखी और फटी त्वचा, संक्रमण के संकेत

डॉ राजेश सिन्हा
सीनियर कंसल्टेंट – जनरल एंड लपरोस्कोपिक सर्जरी
एनएचएमएमआई नारायणा सुपेर्स्पेकियालिटी हॉस्पिटल-रायपुर ।

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