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जीवन का एकमात्र लक्ष्य हमेशा खुश रहना। कैसे? त्रिकालदर्शी बनकर: डॉक्टर एच▪पी▪ सिन्हा

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डॉक्टर एच•पी•सिन्हा की कलम से(NHMMI)

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जीवन का एकमात्र लक्ष्य हमेशा खुश रहना। कैसे? त्रिकालदर्शी बनकर

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आज हम जीवन के सबसे गंभीर और अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर बात करने वाले हैं। आप जब कोई चीज खरीदते हैं और बहुत लंबे समय तक किसी कारणवश उसका उपयोग नहीं कर पाते हैं तो क्या करते हैं? आप उसकी एक्सपायरी चेक करते हैं। और एक्सपायरी डेट करीब हो तो क्या करते हैं। आप उसका (उस चीज का) सदुपयोग जल्दी से जल्दी कर लेेना चाहते हैं और प्राय: अगर आप लापरवाह नहीं है तो उपयोग कर भी लेते हैं। और वासत्व में, ऐसा करना ही समझदारी है। अगर आपने किसी कारणवश या उसका उपयोग नहीं किया तो वह वस्तु व्यर्थ चली जाएगी और कूड़ेदान में ही अपना स्थान बनाएगी।

यह बात तो बड़ी सुगम है, आसानी से समझ में आने वाली है। और आपको लग रहा होगा कि इसमें गंभीरता कहां है? इसमें आखिर महत्वपूर्ण कार्य क्या है? अब जरा अपने जीवन में नजर डालिए। आपके शरीर का manufacturing date(mfd) तो आपको पता है लेकिन Expiry date का कोई पता नहीं। जिस वस्तु की एक्सपायरी का पता हो उसका तो आप समय पर शीघ्रता से उपयोग करके व्यर्थ होने से बचा सकते हैं लेकिन जिंदगी की एक्सपायरी का ही पता न हो तो क्या कीजिएगा? क्योंकि वह 10 साल बाद हो सकता है, 50 साल बाद हो सकता है, 5 साल बाद हो सकता है और …. कल भी हो सकता है। दोस्तो अफसोस की बात यह है कि वो एक्सपायरी डेट आज भी हो सकती है, अभी इस क्षण भी हो सकती है। अब आपको किस प्रमादी की श्रेणी में डाले। आपने त्रिकालदर्शी शब्द सुना होगा। लोग प्राय: उसे त्रिकालदर्शी (त्रिकालज्ञ) कहते है जो आपके भूत, वर्तमान और भविष्य को जान सकता है। मेरी परिभाषा त्रिकालदर्शी की कुछ अलग है। मैं उसे त्रिकालदर्शी कहता हूं जो जन्म, जीवन और मृत्यु तीनों को हर क्षण जानता है, उसके बोध में रहता है। जो सतत इस बोध में जीता है वह सुख दुख के पार चला जाता है, अतिक्रमण कर जाता है। द्वंद्व समाप्त हो जाते हैं। फिर इन मनोभावों का उसके लिए कोई मायने नहीं रह जाते। फिर केवल दो ही मनोभाव शेष रह जाते हैं- प्रेम और करुणा. यह ध्यान देने योग्य बात है कि इन दोनों मनभावों का सीधे तौर पर समक्ष व्यक्ति के लिए ही मतलब है। इस अवस्था को प्राप्त व्यक्ति होशपूर्वक, किसी का नुकसान नहीं कर सकता है। ये बड़े ही harmless individuals होते हैं। इनके पास एक सहज पाजिटीविटी को आप अनुभव कर सकते हैं। मैं समझता हूं हम सभी को इस परम दशा को प्राप्त करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। मैं अपने मनोशरीर विकास (psychosomatic disorders) से ग्रस्त मरीजों को हमेशा कहता हूं- खंडित लक्ष्य मत बनाए। केवल एक ही लक्ष्य जीवन का रखिए। हमेशा खुश रहना। जीवन के सारे प्रयास इसी दशा में करिए। इस अवस्था की प्राप्ति का अलग-अलग उपाय सुना और बताया जाता है इस दुनिया में, लेकिन ये सारे उपाय अपने उद्देश्य में नाकाम मालूम पड़ते हैं। मेरी दृष्टि में त्रिकालदर्शी जीवन आपको सहजता से उस परमधाम में प्रतिष्ठित करता है जिसमें सदैव प्रसन्न रहा जा सकता है। अन्यथा ऐसी दशा कल्पना के परे प्रतीत होती है। मैं आपको भरोसा दिलाना चाहता हूं कि शुरुआती थोड़ी बहुत कोशिशों के साथ इस दशा को प्राप्त करत सकते हैं। तो चलिए जीवन का एक लक्ष्य बनाए हमेशा प्रसन्नचित्त रहने का।

– डॉ. एच.पी. सिन्हा
NHMMI Narayana, Raipur

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