www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

कल और आज, प्रधानमंत्री मोदी के दो दिनों की भाव भंगिमा कुछ अलग ही क्यों है?

-विशाल झा की कलम से-

Ad 1

Positive India:Vishal Jha:
कल और आज, प्रधानमंत्री मोदी के दो दिनों की भाव भंगिमा कुछ अलग ही क्यों है? विधानसभा चुनाव परिणाम के पश्चात अबतक मीडिया के माध्यम से दो बार जन संबोधन के लिए सामने आ चुके हैं। दोनों ही संबोधनों में उनके कहने का जो अंदाज है, वह उनके स्वाभाविक संबोधनों से बहुत अलग है। वे सीरियस दिखाई दे रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए कि, चार विधानसभा चुनाव परिणाम में से तीन में उन्हें विजयी मिली है‌ और चौथे में भी उन्हें बढ़ोतरी मिली है, तो संबोधन में आनंद भाव दिखनी चाहिए।

Gatiman Ad Inside News Ad

दिल्ली में कल चुनाव गणना समाप्त होने के पश्चात्, वे हर बार की तरह कार्यकर्ताओं को संबोधित करने सामने आए। उनका संबोधन हर बार की तरह औपचारिक नहीं था। न ही राजनीतिक खानापूर्ति वाला भाषण था। वे बिल्कुल ऐसे बोल रहे थे जैसे घर का कोई अभिभावक, जो अपने आश्रितों को समझा समझा कर थक गया हो और अब हिदायत देने लगा हो। मोदी जी बड़े गंभीर लहजे का इस्तेमाल करते हैं और कहते हैं, सुधर जाइए वरना एक-एक कर आप लोगों को यह जनता बाहर का रास्ता दिखा देगी। यद्यपि कांग्रेस मुक्त भारत की बात प्रधानमंत्री मोदी 2014 से पहले से करते आ रहे हैं और अपने दूसरे पंचवर्षीय कार्यकाल में इन शब्दों को बोलना भी छोड़ दिया। इसका कारण यह कतई नहीं है कि जनता ने कई राज्यों में कांग्रेस की वापसी कराई, बल्कि इसका कारण मोदी का वह स्वभाव है, जिस स्वभाव में लगातार मिल रही विजय से विनम्रता बरतनी पड़ती है।

Naryana Health Ad

बहुत सी बातें चुनावी संबोधनों में नहीं बोली जा सकती, बल्कि चुनाव परिणाम आने के बाद विजय प्राप्त होने पर ही बोली जा सकती है। तिस पर भी बात जब मोदी जी जैसे नेताओं की हो, तब तो यह और जरूरी हो जाता है। अडाणी, पैगेसस, चंद्रयान, पॉलिसी घोटाला, भ्रष्टाचार, ईडी की कार्रवाई, क्रिकेट, टनल जैसे तमाम मुद्दों पर मोदी जी को बड़ी मजबूत साजिशों के तहत घेरा जाता है, तब मोदी जी बहुत कुछ कहना चाहते हैं। जवाब देना चाहते हैं। लेकिन मोदी जी की राजनीति का अपना स्तर है जो बातों में उलझने के बजाय काम करने पर ध्यान देने की हो, तब मोदी जी कुछ बोल नहीं पाते। तू-तू मैं-मैं भाषणबाजी और बयानों की राजनीति से स्वयं को दूर रखने के लिए उन्होंने मीडिया ट्रायल, कॉन्फ्रेंस जैसी चीजों से भी स्वयं को अलग कर लिया। पिछले 9 सालों से इसका पालन करते आ रहे हैं। लेकिन मोदी जी भी मानव हैं, तो उनके भी मन में बातें तो होगीं ही।

चुनाव दर चुनाव जब समूचे देश ने उन्हें इस भूमिका में ला दिया है कि वे इस देश के एक निर्विवाद अभिभावक हैं, तो वे अपने इसी जिम्मेवारी का बोध करते हुए देश के खिलाफ भौगोलिक, सामरिक, आर्थिक, राजनीतिक साजिश रचने वालों को बड़े तल्ख लहजे में हिदायत दे रहे हैं। आज शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले मोदी जी ने मीडिया संबोधन किया। इस संबोधन में भी उन्होंने कोई राजनीतिक सत्ता के नेता की तरह बयान नहीं दिया। बल्कि उन्होंने नसीहत दी कि सदन में विरोधी पक्ष अपने आचरण को सुधारे। बस विरोध के लिए विरोध से बाज आए। पराजय का गुस्सा सदन में ना निकालें। अपने को थोड़ा परिवर्तित करें। इन सभी बातों को कहने का उनका लिहाज न ही सलाह के रूप में था, न ही निर्देश के रूप में। बल्कि बिल्कुल आदेशात्मक था। ऐसा लग रहा मोदी जी ने चुनावी राज्यों में मिली अप्रत्याशित जीत को, जनता के प्रचंड जनादेश को हृदय से ले लिया है। जिसका अर्थ हुआ कि भारत के उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक, चाहे वह कोई भी हो जो देश, धर्म और भारतीय संस्कृति से स्वयं को ऊपर समझता होगा, उसे अब मोहलत तक का अभाव हो जाएगा।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.