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जाट राजपूत विवाद की चरम परिणति से मन अवसाद से क्यों भर जाता है?

-कुमार एस की कलम से-

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Positive India:Kumar S:
आज जब जाट(Jaat) राजपूत(Rajput) विवाद की चरम परिणति देखता हूँ, मन अवसाद से भर जाता है।
मेरा बचपन अत्यंत दुःखों से भरा रहा है। मै राजपूत घर मे जन्मा। जब सातवीं में पढ़ता था, एक मित्र वीर तेजाजी पर पद्यबद्ध कोई सस्ती सी किताब लाया और उसके कुछ भाग बालसभा में गाकर सुनाए।
“गाज्यो गाज्यो जेठ आषाढ़ कुंवर तेजा रे….!” तेजाजी की कहानी साधारण पारिवारिक कथा से शुरू होकर अंत में उच्चतम त्याग, बलिदान और करुण विरह पर समाप्त होती है। यह कहानी आज भी मुझे अपनी स्वयं की कहानी लगती है। कहीं से भी यह किसी राजपूत यौद्धा या लोकदेवताओं के पराक्रम से कम नहीं है। मै बहुत वर्षों तक तेजाजी को कोई राजपूत लोकदेवता ही मानता था। जब सुनता हूँ, या किसी को सुनाता हूँ, भीतर तक रुला देती है।

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हम जहां रहते हैं वहां कोई जाट नहीं रहता। कॉलेज से पहले तक मैंने किसी जाट को देखा तक नहीं था। बाद में कुछ परिचय हुए, दो तीन अच्छे मित्र भी बने। मेरे एक जाटमित्र की बहिन के विवाह में जाने का अवसर मिला। संघ के सम्पर्क में आने के बाद अनेक जाट कार्यकर्ताओं से खूब जमी। एक बार खेमा बाबा के मंदिर में कोई समारोह था तो मुझे वहां मुख्य वक्ता रखा गया। मैंने भारत माता और धरती माता, इस विषय पर भाषण दिया था। कार्यक्रम के अंत में अनेक बुजुर्गों ने मुझे गले लगाया और खूब आशीर्वाद दिया।
मैंने जहां तक देखा है, जाटों के लड़के अत्यंत परिश्रमी, अधिक भोजन करने वाले, बहुत कम चर्बी वाला शरीर, थोड़े उज्जड, बोली में अनाड़ीपन, कभी जरूरत से ज्यादा बखान करने वाले और कभी पलट कर तीर सा जवाब देने वाले, लेकिन सुंदर होते हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से होने के कारण हमारे क्षेत्र के राजपूत लड़के बलशाली, विशाल डील वाले, अंतर्मुखी और संकोची होते हैं। छोटे बड़े की मर्यादा और महिलाओं के विषय में विशेष सतर्कता इधर की विशेष बात लगती है। सच पूछो तो तेजाजी का जैसा वर्णन मेरे मन में बसा है, मुझे वह राजपूत युवा जैसे ही लगे।

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लेकिन ये बहुत साधारण बातें हैं, जाट-राजपूत विवाद जैसा भी कुछ है यह मुझे होस्टल जाने के बाद अनुभव हुआ। जिन छोटी छोटी बातों को लेकर जाट राजपूत द्वेष का वातावरण खड़ा किया जाता है, वर्तमान में उनमें एक भी ऐसा कारण नहीं है जो स्थायी दिखे, सिवाय राजनीति के। हो सकता है मै गलत होऊं, लेकिन मुझे लगता है इसकी शुरुआत नागौर के जाट और शेखावाटी के राजपूत राजनेताओं की तरफ से हुई। इसके कुछ ऐतिहासिक पक्ष भी होंगे, लेकिन वर्तमान में 5% जहरीले लोग दोनों तरफ हैं और वे राजनीति से जुड़े हुए हैं और इनकी योग्यता यह है कि वे सामने वाली जाति को बढ़िया गालियां देकर खुद को सुपर साबित करते हैं। मैंने यह भी देखा है कि जाटों के लिए गाली बोलना सहज है जबकि राजपूत सबसे ज्यादा चिढ़ते ही गाली से है।
जो भी हो, राजस्थान में इन दोनों बड़ी जातियों में भयंकर तकरार रही है और सोशल मीडिया आने के बाद यह बढ़ी है। बड़ी जातियों में बड़े लोग और उनकी शिकायतें भी बड़ी होती हैं। आश्चर्यजनक रूप से दोनों ही किसानी, पशुपालन से जुड़े हैं। प्रत्येक जाट के 4-5 राजपूत मित्र अवश्य होंगे और ऐसा ही राजपूतों के साथ भी होगा। व्यक्तिगत स्तर पर हर व्यक्ति आज समरस और सर्वव्यापी है। मुझे तेजाजी का चरित्र अपना सा लगता है तो किसी न किसी जाट को भी पाबू जी में तेजाजी के दर्शन अवश्य होते होंगे।

लेकिन दोनों को एक दूसरे के राजनेता नहीं सुहाते। बात पार्टी या वोट की हो तो एक जुनून, एक बुखार सा चढ़ जाता है। भाई मरे तो मरे, भौजाई विधवा दिखनी चाहिए। कुछ प्रसंगों में मैंने एकता भी देखी जब किसी ने पहल की या समझदारी दिखाई। एक दो प्रसंगों में ऐसा भी हुआ कि वे इसलिए एक हुए क्योंकि कोई तीसरा लट्ठ लेकर इनके द्वार तक आ पहुंचा था।
एक और ट्रेंड है, कोई नौकरी का रिजल्ट या टिकट इत्यादि वितरण के समय अपनी अपनी जाति के उम्मीदवारों की संख्या गिनी जाती है और तुलना की जाती है, फिर जिनका सलेक्शन हुआ है वे नहीं, कोई अन्य ही ताने देने लगते हैं।
दोनों पक्षों की अपनी समस्याएं हैं लेकिन एक पक्ष के लिए दूसरे पक्ष ने समस्या खड़ी की है, जाट ने राजपूत समझकर बदमाशी की या राजपूत ने जाट समझकर दादागिरी दिखाई, ऐसा नहीं है। दुर्गुण और गुण व्यक्तिगत होते हैं, उन्हें जाति पर आरोपित कर बचने या टालने की कोशिश की जाती है।
#तेजाजी_हल_चलाते_थे और युद्ध भी किया। पाबूजी भी अकाल पड़ने पर #घास_काटने_गये थे। समन्वय के बहुत सारे सूत्र हैं। अनेक जाट राजपूतों को वोट देते हैं और अनेक राजपूत जाटों को वोट देते हैं।

यदि शिकायत सुनने बैठें तो दोनों पक्षों की अनेक हैं लेकिन यह कोई समाधान नहीं। जाकी रही भावना जैसी। जिसकी जैसी रुचि प्रकृति है उसे वहाँ संतुष्ट होने दो। व्यक्तिगत कुंठा या महत्त्वाकांक्षा को पूरे समाज पर आरोपित मत करो। तुम 5% जहरीले लोगों के पीछे हम अपना घर नहीं बिगाड़ सकते। मै जानता हूँ, 5% जनों में उन्माद गहरा है, ज्वर बहुत तेज है, घुट्टी आयी हुई है और मेरे द्वारा छिड़के ठंडे पानी के छींटे इसे नहीं उतार सकते। हो सकता है कल को कोई तीसरा डॉक्टर कड़वी दवाई खिला दे या किडनी ही निकाल दे, क्योंकि तब आप ऑपरेशन टेबल पर बेसुध होंगे।
अच्छा होगा कि त्याग, वैराग्य, वीतराग और वीरराग का कोई भजन सुनें।

आप तेजाजी सुनिए। आप पाबूजी की पड़ सुनिए।
रविन्द्र जैन हो या कैलाश खेर, दोनों ही अच्छे गायक हैं। गायक हैं तो थोड़ा बहुत बजाते भी होंगे।

साभार: कुमार एस-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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