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जब एक ब्रिटिश मिनिस्टर की बीवी को लाइन मारने में उत्तर प्रदेश के चीफ़ सेक्रेट्री की कुर्सी चली गई

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India:Dayanand Pandey:
तमाम अफसरों के रंगीन किस्से , राजनीतिज्ञों के चटखारे भी सिर्फ़ अफवाह नहीं हैं । बहुतेरे किस्से मुझे निजी तौर पर मालूम हैं । थिएटर वालों के भी । रिक्शे वाले , ड्राइवर , सिक्योरिटी गार्ड आदि के भी तमाम किस्से हैं । मोहतरमा लोगों को इन किस्सों पर भी गौर फरमाना चाहिए । एक कारपोरेट घराने में तो तमाम गार्ड इस के लिए उपकृत किए जाते रहे हैं । मेरठ में एक पी सी एस अफसर जब अपने सरकारी ड्राइवर के साथ बहुत ज्यादे आगे निकल गईं तो उन के बॉस डी एम ने जब हस्तक्षेप किया तो दूसरे दिन वह उस ड्राइवर से शादी कर के डी एम के पास पहुंच गईं , मीट माई हसबैंड , कहती हुई । गरज यह कि जब तक आप का काम निकले तब तक ठीक नहीं , सब गड़बड़। किसी मित्र ने एक वाट्स अप भेजा है कि चालीस साल पहले जब मैं पैदा हुई तो डाक्टर ने मेरी हिप थपथपाई थी । तो स्थिति इस विद्रूप स्थिति तक आ गई है । सवाल है कि क़ानून तब भी आप के साथ था , यह समाज भी , आप को तभी एफ़ आई आर लिखवानी थी , रोका किस ने था ?

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एक समय उत्तर प्रदेश में मुख्य सचिव थे रामलाल । मुख्य सचिव मतलब प्रदेश का सब से बड़ा अफ़सर । नारायणदत्त तिवारी मुख्य मंत्री थे और इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री । लंदन से एक मिनिस्टर सपत्नीक आए थे सरकारी यात्रा पर । मंत्री की पत्नी के पिता ब्रिटिश पीरियड में लखनऊ की रेजीडेंसी में रह चुके थे । मिनिस्टर की पत्नी बिना किसी प्रोटोकाल के लखनऊ घूमना चाहती थीं । रेजीडेंसी देखना चाहती थीं । पिता की यादों को ताज़ा करना चाहती थीं । इंदिरा जी ने नारायणदत्त तिवारी से बिना किसी प्रोटोकाल के किसी सीनियर अफ़सर को उन के साथ लगा देने को कहा । तिवारी जी ने सीधे मुख्य सचिव को ही उन के साथ लगा दिया । मुख्य सचिव रामलाल ने मोहतरमा के साथ पूरा सहयोग करते हुए लखनऊ घुमाया। मोहतरमा उन के साथ बहुत ही सहज हो गईं । कह सकते हैं कि खूब खुल गईं ।

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देर शाम कोई आठ बजे रामलाल ने मोहतरमा का हालचाल लेने के लिए फ़ोन किया और पूछ लिया , कैसी हैं । मोहतरमा बेकत्ल्लुफ़ हो कर बोलीं , अकेली हूं । रामलाल तब तक देह में शराब ढकेल चुके थे । कुछ शराब का असर था , कुछ मोहतरमा की बेतकल्लुफी । रामलाल बहक गए । सो बोले , कहिए तो मैं जाऊं , अकेलापन दूर कर दूं । मोहतरमा ने बात टाल दी और पलट कर अपने पति से रामलाल की लंपटई की शिकायत की । पति ने इंदिरा गांधी को यह बात बताई । इंदिरा गांधी फोन कर नारायणदत्त तिवारी पर बरस पड़ीं कि किस बेवकूफ को साथ लगा दिया ! अब दूसरे दिन रामलाल जब आफिस पहुंचे तो वहां उन के आफ़िस में ताला लटका मिला । ताला देखते ही वह भड़क गए । बरस पड़े कर्मचारियों पर । लेकिन ताला फिर भी नहीं खुला । तो वह और भड़के , कि तुम सब की नौकरी खा जाऊंगा ! लेकिन ताला नहीं खुला तो नहीं खुला ।

मौका देख कर एक जूनियर अफ़सर उन के पास आया और धीरे से बताया कि माननीय मुख्य मंत्री जी के निर्देश पर यह सब हुआ है , कृपया माननीय मुख्य मंत्री जी से मिल लीजिए । अब रामलाल के होश उड़ गए कि क्या हो गया भला ? भाग कर मुख्य मंत्री आवास गए । तिवारी जी शालीन व्यक्ति हैं , संकेतों में सब समझा दिया । लेकिन रामलाल अब मुख्य सचिव नहीं रह गए थे । उन्हें परिवहन निगम का चेयरमैन बना दिया गया था । लेकिन तब यह खबर किसी अख़बार में नहीं छपी । लेकिन बहुत पहले जब यह किस्सा एक आई ए एस अफ़सर ने मुझे सुनाया तो मैं ने उन्हें खुमार बाराबंकवी का एक शेर सुना दिया :

हुस्न जब मेहरबां हो तो क्या कीजिए
इश्क के मग्फिरत की दुआ कीजिए ।

कोई धोखा न खा जाए मेरी तरह
सब से खुल कर न ऐसे मिला कीजिए ।

मेरे एक आई ए एस मित्र हैं । बहुत बड़े-बड़े पदों पर रह चुके हैं । तबीयत से पूरे फक्कड़ और बेलौस । साहित्य की गहरी समझ । मीर उन के पसंदीदा शायर । बल्कि मीर को वह जब-तब मूड में आ कर सुनाने भी लगते हैं । भाव-विभोर हो कर । हरियाणा के मूल निवासी , गोरा , लंबा कद , और हरियाणवीपन में तर-बतर । लेकिन बेहद ईमानदार और दिल के साफ़ । उन के साथ के तमाम खट्टे-मीठे किस्से हैं । बाद में उत्तर प्रदेश की राजनीति से आजिज आ कर वह उत्तराखंड चले गए । वहां भी मुख्य मंत्री के सचिव रहे । एक समय हम लोगों का नियमित मिलना-जुलना और उठाना-बैठना होता था । मेरे घर के पास ही बटलर पैलेस कालोनी में रहते थे । कभी वह मेरे घर आ जाते , कभी हम उन के घर । मेरे लिखे पर फ़िदा रहते थे वह । नब्बे के दशक के शुरुआती दिन थे जब वह लंदन भेजे गए ट्रेनिंग पर । लंदन से भी जब तब मूड में आ कर वह फ़ोन करते रहते । जेनरली रात को । बहकते हुए वहां की किसिम-किसिम की बातें बताते । एक सुबह अचानक उन का फ़ोन आया । मैं सोया हुआ था । उन के फ़ोन से उठा और पूछा कि इतनी सुबह-सुबह ? वह बोले , हां । और संजीदा हो कर बतियाने लगे । मुझे जब मुश्किल हुई तो पूछा , आप लंदन में हैं कि आ गए हैं ? वह बोले , आ गया हूं । मैं अचकचाया और पूछा कि आप तो साल भर के लिए गए थे , इतनी जल्दी ? वह बोले , शाम को घर आइए फिर तफ़सील से बतियाते हैं ।

गया शाम को ।

अपनी तमाम दिक्कतें लंदन की बताने लगे । लेकिन ट्रेनिंग छोड़ कर अचानक भारत कैसे आ गए ? पूछने पर वह हंसे और बोले , आया नहीं , भेजा गया हूं कि फ़ेमिली को साथ ले कर वहां रहूं । तो फेमिली लेने आया हूं । किस्सा कोताह यह था कि वह जब भारत से लंदन भेजे गए तो जाने से पहले ही यहां भी एक ट्रेनिंग दी गई थी । बताया गया था कि अगर कोई अंगरेज औरत मिले तो उस से हाथ जोड़ कर मिलें । हाथ नहीं मिलाएं , गले नहीं मिलें , चूमा-चाटी नहीं करें। आदि-इत्यादि । वह एड्स के आतंक के दिन थे और कहा जाता था कि किस से भी एड्स हो जाता है । अब एक दिन किसी पार्टी में कोई अंगरेज औरत आई और हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया । इन्हों ने हाथ मिलाने के बजाए हाथ जोड़ लिया । उस औरत ने तंज किया कि हैंड शेक से इतना डरते हो , कैसे मर्द हो ? इन का भी तीन-चार पेग हो गया था । बहकते हुए बोले , हैंड शेक क्या , मैं तो तुम्हारे साथ लेग शेक भी करने को तैयार हूं , लेकिन अपने देश की परंपरा और अनुशासन से बंधा हूं । तंज के जवाब में कही यह बात इन को भारी पड़ गई। दूसरे दिन किसी भारतीय अफ़सर ने इन के लेग शेक वाली बात की रिपोर्ट कर दी । उन को तुरंत भारत जा कर अपनी फ़ेमिली ले कर ट्रेनिंग पर लौटने की हिदायत दी गई । कहा गया कि लेग शेक के लिए अपनी फेमिली ले आइए । तो तब वह फ़ेमिली लेने लखनऊ लौटे थे ।

जानने वाले जानते हैं कि एम जे अकबर औरतों के बाबत मुग़लकाल के शासक अकबर से ज़रा भी कम नहीं रहे हैं । खुशवंत सिंह के शिष्य रहे पैतीस साल की कम उम्र में संडे जैसी पत्रिका के संपादक बन जाने वाले एम जे अकबर से जुड़ी औरतों की एक लंबी फेहरिस्त है । तमाम नामी महिला पत्रकार अकबर से जुड़ कर फख्र महसूस करती रही हैं । अकबर की करीबी रही मशहूर पत्रकार सीमा मुस्तफ़ा तो जैसे एक समय अकबर के लिए ही जीती थीं । लेकिन ऐसा नहीं कि सीमा मुस्तफ़ा सिर्फ़ अकबर की दीवार में कैद थीं । एक समय पाकिस्तान क्रिकेट टीम भारत आई थी । तब सीमा मुस्तफ़ा इंडियन एक्सप्रेस में थीं और सीमा ने इमरान खान का इंटरव्यू लिया । इंटरव्यू में सीमा मुस्तफ़ा ने लिखा था कि इमरान खान ने कहा कि बिना हमबिस्तरी किए मैं इंटरव्यू नहीं देता । और मैं इंटरव्यू ले आई । यह सब इंडियन एक्सप्रेस में तब छपा और इंटरव्यू से ज़्यादा इस प्रसंग की चर्चा हुई थी तब । क्या यह भी मी टू था ? वैसे भी इमरान खान की मी टू वाली फेहरिस्त दुनिया भर में है । भारत में भी बहुतेरी हैं । फ़िल्म अभिनेत्री ज़ीनत अमान से ले कर सीमा मुस्तफ़ा तक । बहरहाल . एम जे अकबर आज की तारीख में भले भाजपा में हैं , केंद्र सरकार में विदेश राज्य मंत्री भी रहे हैं , अब सिर्फ़ राज्य सभा सांसद हैं , लेकिन एक समय अकबर जबर सेक्यूलर हुआ करते थे और कि कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर किशनगंज , बिहार से सांसद भी रहे हैं । अकबर की ही तरह सीमा मुस्तफ़ा ने भी एक बार उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थ नगर ज़िले की डुमरियागंज लोक सभा सीट से चुनाव लड़ा था पर हार गईं ।

1996 में संजय लीला भंसाली निर्देशित एक फिल्म आई थी जिस के हीरो सलमान खान थे और हिरोइन मनीषा कोइराला । नाना पाटेकर मनीषा कोइराला के पिता की भूमिका में थे और सीमा विश्वास मां की भूमिका में । नाना और सीमा विश्वास इस फ़िल्म में गूंगे और बहरे थे । गूंगे-बहरे का अद्भुत अभिनय किया था नाना पाटेकर और सीमा विश्वास ने । इस फिल्म में नाना पाटेकर भले मनीषा कोइराला के पिता की भूमिका में थे लेकिन मनीषा कोइराला उन को ले कर बहुत पजेसिव थीं । नहीं चाहती थीं कि कोई और औरत नाना पाटेकर के आस-पास भी फटके । लेकिन उन दिनों की एक मशहूर अभिनेत्री थीं आयशा जुल्का , जो इस फिल्म में कोई भूमिका तो नहीं कर रही थीं लेकिन नाना पाटेकर के चक्कर में सेट पर आती रहती थीं । न सिर्फ़ आती रहती थीं , अक्सर नाना पाटेकर के मेकप रुम में भी पहुंचती रहती थीं । मनीषा कोइराला जब कभी आयशा जुल्का को नाना के साथ देखती थीं तो बुरी तरह भड़क जाती थीं नाना पाटेकर पर । खैर फिल्म पूरी हुई और नाना मुम्बई लौट कर उस अभिनेत्री आयशा जुल्का के साथ लिव इन में रहने लगे । मनीषा कोइराला यह सब बस अवाक देखती रह गईं ।
साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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