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हमास ने क्या सोचा था कि इसराइल मनमोहन सिंह की तरह चुप बैठ जाएगा?

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
वैसे हमास ने क्या सोचा होगा ७ अक्टूबर के हमले से पहले ? यह तो उसे पता ही होगा कि इस्राइल चुपचाप बर्दाश्त करके मनमोहन सिंह की तरह नहीं बैठ जायेगा । कुछ न कुछ तो करेगा ।

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हमास एक सुन्नी संगठन है और ईरान शिया लेकिन यहूदी दोनों के कॉमन शत्रु हैं । यद्यपि हिज़्बुल्लाह शिया है और ईरान द्वारा ही संपोषित है लेकिन काँटे को काँटे से ही निकालना चाहिए और बाद में दोनों काँटे फेंक देने चाहिए । अगर जंग में हमास भारी पड़ता तो ईरान माले ग़नीमत लूटने के लिये हिज़बुल्ला को ज़रूर आगे बढ़ाता ।

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हल्दीघाटी के युद्ध में इतिहासकार मुल्ला बदायूंनी युद्ध में शामिल था । एक समय ऐसा आया कि घमासान युद्ध में यह समझ में नहीं आ रहा था कि कौन सा राजपूत योद्धा मानसिंह की तरफ़ से लड़ रहा था और कौन सा महाराणा प्रताप की ओर से । ऐसे में एक मुग़ल सिपहसालार ने मुल्ला से पूछा कि कैसे पहचानें कि कौन अपनी सेना का है ? मुल्ला का जवाब था कि पहचानने की क्या ज़रूरत है किसी को भी मारो उद्देश्य इस्लाम का ही पूरा होगा ।

ईरान को न हमास के मरने से फ़र्क़ पड़ता है न यहूदियों के । वह अपनी तलवार की धार आज़मा रहा है । हार हो या जीत दुश्मन की ताक़त तो पता चलती है । अगली बार इस्राइल की इस रणनीति की भी काट खोजी जाएगी ।

इस्राइल को अमेरिका का एक राज्य ही समझा जाना चाहिये । जिस तरह अमेरिका ने इस्राइल के साथ एकजुटता दिखाई है उसका यही अर्थ निकलता है ।

अखाड़े में ख़लीफ़ा कभी सीधे मुक़ाबले में नहीं उतरते अपने शागिर्दों को लड़ाते हैं जैसे लखनऊ में कभी पंजों में नश्तर बाँध कर मुर्ग़े लड़ाये जाते थे ।

राजकमल गोस्वामी

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