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विद्याचरण शुक्ल-जिनके कार्यों का मूल्यांकन अभी बाकी है

विद्याचरण शुक्ल जी को उनकी सातवीं पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि ।

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
किसी व्यक्ति के कार्य का विश्लेषण उसकी मृत्यु के बाद होता है । पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके कामों के मूल्यांकन उनकी मृत्यु के बाद भी नहीं होता है, यह दुख का विषय है । मैं बात कर रहा हूं पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व.पं. विद्याचरण शुक्ल जी की । स्व. पं जवाहर लाल नेहरू के मंत्रीमंडल मे सबसे युवा चेहरे, विद्याचरण शुक्ल जी ने उपमंत्री के रूप मे शपथ ली थी । मुझे लगता है कि कांग्रेस में वो एकमात्र चेहरे होंगे, जिन्होने तीन पीढ़ियों के साथ काम किया था ।

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देश के राजनीतिक गलियारों मे विद्या जी भी उन चुनिंदा राजनीतिज्ञों ने से एक थे, जिनका राजनीतिक सफर काफी लंबा था । यह भी उतना ही अकाट्य सत्य है कि राजनीति के उतार चढ़ाव को विद्याचरण शुक्ल जी ने जितने करीब से देखा, शायद ही वह किसी राजनीतिज्ञ के नसीब में आया हो। राजनीति मे खासियत यह है कि यहां हर समय उगते सूरज को ही सलाम किया जाता है । राजनीति मे एक तलवार हर समय लटकते रहती है “जिंदगी एक सफर है सुहाना, यहाँ कल क्या होगा किसने जाना ” । ऐसे स्थिति मे जमीन से जुड़े लोग ही काम कर सकते है ।
विद्याचरण शुक्ल जी के हर रूप से देश व लोग परिचित हैं । जब इस देश मे कांग्रेस दो भागों में विभाजित हुई, तो कांग्रेस के तत्कालीन नेता पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष श्री निजिलिंगपपा के नेतृत्व में सिंडीकेट कांग्रेस बनाई गई । तब राजनीति के जानकार इसी कांग्रेस को असली कांग्रेस का चेहरा मानते थे । स्व. पं. शयामाचरण शुक्ल जी ने भी सिंडीकेट कांग्रेस का दामन थामा था । ये वो दौर था जब राजनीति के जानकार इंदिरा गांधी जी को मोम की गुड़िया बोलते थे । उस वक्त विद्याचरण शुक्ल जी “इंदिरा कांग्रेस” जिसको “इंडिकेट कांग्रेस” कहते थे, उसका हिस्सा बने । यह बात शायद 1969 की है । चुनाव मे इंदिरा जी को जबरदस्त सफलता मिली । वो कांग्रेस का स्वर्णिम काल था ।

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वो आपातकाल, जिसमे विद्याचरण शुक्ल जी एक सूचना प्रसारण मंत्री के रूप मे, अपने हर फैसले के लिए जाने लगे । जब जनता दल की सरकार आई तो तो तत्कालीन सरकार ने इंदिरा जी को ही जिम्मेदार ठहराया था । पर इन सबके बीच मे स्व. विद्याचरण शुक्ल जी ही एक ऐसे शख्स थे, जिन्होने सूचना प्रसारण मंत्री के रूप मे होने वाले सभी फैसले की जिम्मेदारी अपने उपर ली थी । यह उनके राजनीतिक दृढ इच्छा शक्ति को दर्शाता है ।

आपातकाल के समय, दूरदर्शन का बैंगलोर मे मे लाने का प्रस्ताव था । पर विद्याचरण शुक्ल जी ने उस दूरदर्शन को रायपुर ले आए । वो रायपुर, जिसका उस समय दूरदर्शन के लिए कही नाम नहीं था । इस मामले में रायपुर के लोग बहुत सौभाग्यशाली थे, जिन्हे बहुत पहले से दूरदर्शन देखने का मौका मिला । उस समय बड़े शहर वालो को भी काफी रोष था कि उनके नेता भी विद्याचरण शुक्ल जी जैसे प्रभावशाली क्यो नही है ।

अब मै उनके राजनीतिक सफर पर बात करूंगा । जब स्व. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस से बगावत कर अपना जनता दल बनाया , तो उस दल मे एक बडे स्तंभ विद्याचरण शुक्ल जी भी थे । मेरे को अच्छे से याद है कि विद्याचरण शुक्ल जी का, उनके कार्यकर्ताओ ने, रायपुर पहुंचने पर भव्य स्वागत किया था । यहां से उनका अपने पुराने कांग्रेस दल से नाता टूटा । पर इस सबके बीच मे विद्याचरण शुक्ल जी के लिए हर समय कांग्रेस का एक तबका, हर समय, उनके फैसले के साथ खड़ा रहा । उनके साथ कार्यकर्ताओ की फौज थी, जो विद्याचरण भैया के पूर्ण रूप से समर्पित थी । ये ऐसे कर्मठ कार्यकर्ता, सिर्फ आदेश का इंतजार करते रहते थे । विशाल व्यक्तित्व के मालिक विद्याचरण शुक्ल जी का वजन इतना रहता था कि वो सत्ता मे रहे ना रहे, इसका इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था । भले केंद्र की राजनीति की हो, पर राज्य के स्तर पर उनकी पकड़ हर समय बनी रहती थी । उनके आवास मे मिलने जुलने वालो का तांता लगा रहता था । हालात तो यह थे कि दूसरे विचार धारा के लोग भी अपने समस्या लिए विद्याचरण भैया से ही मिलते थे । यही कारण था कि राजनीति में, हर दल और नेताओं
से उनके काफी मधुर संबंध थे । लेख बड़ा हो रहा है । अभी तो स्थानीय नेताओं की भूमिका के बारे मे चर्चा करनी है । वहीं श्यामाचरण जी ने छत्तीसगढ़ को कैसे समृद्ध किया है, उस पर बात होगी । पर झीरम घाटी में हमले मे गंभीर रूप से घायल होने की बाद भी किसी तरह खड़े होकर निर्देष देना उस काठी का व्यक्ति ही यह काम कर सकता है । अंततः आज से सात साल पहले, आज ही के दिन खबर आई विद्याचरण शुक्ल जी नहीं रहे; तो एक बारगी तो विश्वास ही नहीं हुआ । उस दिन लोगों को लगा कि अब छत्तीसगढ़ राजनीतिक रूप से कमजोर हो गया ।

आज सात साल हो गए, पर उनकी जगह, उस कद के नेता का अभाव आज भी हम महसूस करते है । यही कारण है कि केंद्र का कोई भी काम जब यहां नहीं होते है तो विद्या भैया लोगों के स्मृतियो मे आज भी आते है । लेख को विराम दे रहा हू । विद्याचरण शुक्ल जी का व्यक्तित्व एक लेख में लेना मुश्किल है । इसलिए अभी आगे उनके किये गए कामों की चर्चा जारी रहेगी । आज उनके सातवीं पुण्यतिथि पर भावपूर्ण श्रद्धांजलि । क्रमशः

लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर

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