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आजके संसद अटैक ने क्यों याद दिला दिया 13 दिसंबर 2001 का वो काला दिन जब संसद पर हुआ था आतंकी हमला

-अजीत सिंह की कलम से-

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Positive India:Ajit Singh:
आज ही यानी 13 दिसंबर 2001 का वो काला दिन जब संसद पर हुआ था आतंकी हमला…!!

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वर्ष 2001 में भारतीय संसद भवन पर हुआ हमला आतंकवादियों द्वारा सीधे सीधे भारत की संप्रभुता पर किया गया घातक आतंकवादी हमला था, जिसके पीछे आतंकवादी संगठन जैशे मोहम्मद का षड्यंत्र था, जैश की योजना को अंजाम तक पहुँचाने के लिए भारत में ही कुछ लोग कोआर्डिनेट कर रहे थे, इनमें अफजल प्रमुख था।

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यह घटना 13 दिसम्बर 2001 की है। जब सुबह लगभग 11 बजे जैश के आतंकवादी एक एम्बेसडर कार से संसद के भीतर घुसे थे। जिस समय ये आतंकवादी संसद भवन में घुसे थे सामान्यता यह समय संसद की कार्रवाई का होता है। प्रधानमंत्री सहित अधिकांश मंत्रिमंडल के सदस्य, सांसद और अधिकांश अधिकारी भी संसद भवन में होते हैं।

किन्तु उस दिन किसी कारण से संसद की कार्यवाही बीच में चालीस मिनट के लिये स्थगित हो गई थी।

प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई और अधिकांश अधिकारी कुछ समय के लिये संसद परिसर से बाहर चले गये थे फिर भी उप प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवानी, कुछ केन्द्रीय मंत्री और अनुमानतः दो सौ सांसद, संसद परिसर में मौजूद थे।

ये आतंकवादी कुल पाँच थे जिन्हें आवश्यकता पड़ने पर आत्मघाती ब्लास्ट करने का प्रशिक्षण दिया गया था। सभी के पास एके-47 रायफलें थीं और कमर में बम बंधे थे।

कार पर लालबत्ती लगी थी, इसलिए आरंभिक दो गेट आसानी से पार हो गये पर तीसरा द्वार जो गेट नम्बर 11 था, पर महिला एएसआई कमलेश यादव को कार के चलने के तरीके पर कुछ संदेह हुआ उसने कार रोकने के लिये हाथ दिया पर कार न रुकी तो एएसआई कमलेश कुमारी यादव ने द्वार बंद करने का प्रयास किया, द्वार बंद होता देख एक आतंकवादी ने गोलियाँ चला दी। कमलेश यादव वहीं बलिदान हो गईं।

आतंकवादी आगे बढ़े !! वे किसी भी प्रकार संसद के भीतर सभा कक्ष में घुसना चाहते थे, उन्होंने कार के कोने से ही उस दरवाजे को धकेला जिसे कमलेश यादव ने बंद करने का प्रयास किया था, गोलियों की आवाज संसद परिसर में गूँज गई जिसे सुनकर सुरक्षाबलों ने अन्य गेट्स बंद करने के प्रयास किये। सिपाही जीनतराम और जगदीश यादव कार के पीछे दौड़े। कार गेट नम्बर नौ की ओर बढ़ने लगी थी ताकि वे संसद भवन के सभा कक्ष में घुस सकें।

अनुमान था कि वे संसद भवन की रेकी पहले ही कर चुके थे, उन्हें यह पता था कि कौन सा गेट नम्बर कहाँ है और किस गेट से भीतर जा सकते हैं।

यदि उन्होंने रेकी नहीं की थी तो यह बहुत आश्चर्यजनक था कि वे सीधे महत्वपूर्ण द्वारों की ही ओर बढ़ रहे थे, उनका उद्देश्य संसद के भीतर घुसकर संसद को बंधक बनाने का था पर कमलेश यादव के बलिदान से सुरक्षाबलों को सतर्क होने का अवसर मिला और वे कार को घेरने में जुट गये।

कार गेट नम्बर नौ की ओर मुड़ी पर सुरक्षा बलों ने जैसे ही उस पर गोलियों की बौछार की तो बचने के लिये कार गेट नम्बर बारह की ओर मुड़ चली, उधर गेट नम्बर एक पर उपराष्ट्रपति जी की कार लगी थी, वे निकलने ही वाले थे कि हमला हो गया और वे लौटकर संसद के भीतर चले गये, हालांकि आतंकवादियों ने यह देख लिया था और उनमें से एक आतंकवादी कार से उतरा और गोलियाँ चलाता हुआ गेट नम्बर एक से संसद के भीतर सभा कक्ष में घुसने का प्रयास किया।

सुरक्षाबलों ने गोलियाँ चलाईं, वह आतंकवादी ढेर हो गया। गिरते ही उसने अपनी कमर में बँधे बम से स्वयं को उड़ा दिया।

दूसरा आतंक वादी गेट नम्बर पाँच के समीप मारा गया और शेष तीनों आतंकवादी गेट नम्बर नौ पर ढेर हुये।

यह हमला कुल चालीस मिनट चला। पाँच मिनट तो सुरक्षाबलों को आतंक वादियों की लाशों के समीप जाने में लगे, चूँकि उनकी कमर में बम बँधे थे इसलिये सावधानी और तकनीक दोनों का प्रयोग हुआ और 45 मिनट बाद पाँचों आतंक वादियों के सफाये की घोषणा कर दी गई।

वे संसद को बंधक बनाने आये थे जिसके लिए उनकी कार में तीस किलो विस्फोटक लदा था, यदि वे संसद को बंधक बनाने में अथवा अपनी कार में लदे बिस्फोटक को उड़ाने में सफल हो जाते तो किसी को कल्पना भी नहीं हो सकती कि कितनी भयानक दुर्घटना होती किन्तु सुरक्षा बलों की सतर्कता से, विशेषकर एएसआई कमलेश यादव की सतर्कता से इस विपत्ति को टाला जा सका, इस कठोर संघर्ष में कुल नौ लोगों का बलिदान हुआ और अठारह जवान घायल हुये।

बलिदानियों में सुरक्षाबलों के आठ जवान और एक मीडिया कैमरामैन शामिल थे। बलिदान हुये सुरक्षा कर्मियों में कमलेश यादव, जगदीश यादव, जीतन राम, मातवर सिंह, देशराज सिंह, विजेन्द्र सिंह, घनश्याम ओमप्रकाश और एएनआई कैमरामैन विक्रम सिंह थे।

जबकि पाँचों आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे पर इन्हे भारत में ही बैठे लोग रास्ता बता रहे थे इनमें सबसे प्रमुख मास्टर माइंड अफजल था जिसे एक लंबी कानूनी कवायद के बाद घटना के लगभग सवा ग्यारह साल बाद 9 फरवरी 2013 को फाँसी दी जा सकी थी, बाद की जाँच में मास्टर माइंड अफजल के साथ तीन और लोग अब्दुल रहमान गिलानी, शौकत गुरु, नवजोत संधू भी पकड़े गये थे। इनमें दो साक्ष्य के अभाव में अदालत से छूट गये थे।

जो पाँच पाकिस्तानी आतंकवादी संसद पर हमले के लिये आये थे, अफजल ने बाद में उनके नाम हमजा, हैदर, राणा, राजा और मोहम्मद बताये थे। पर ये नाम असली नहीं थे। उन पाँचों की असली पहचान उनके साथ ही चली गई।

अफजल सहित जो कुल चार मास्टर माइंड पकड़े गये थे अदालत में उनका बचाव करने के लिये भारत के नामी गिरामी वकील खड़े हुये, इनमें दो लोग तो साक्ष्य के अभाव में छूट गये थे, पर अफजल को फाँसी मिली पर यह भी आसान नहीं था।

अफजल को बचाने के लिये भी कोर्ट में लम्बी लड़ाई चली, यहाँ तक कि राष्ट्रपति जी के पास दया याचिका भी लगाई गई थी, पर अंततः फाँसी हुई।

किन्तु यह सब यहीं खत्म नहीं हुआ, अफ़ज़ल की फाँसी से भारत में भारतीयों का ही एक वर्ग इतना आहत हुआ कि यह नारा भी गूँजा कि, “अफजल हम शर्मिंदा हैं”, यह भारत का ही दुर्भाग्य है…!!

आज के दिन संसद को इस भयानक हमले से बचाने वाले सभी बलिदानी सुरक्षाबल जवानों के चरणों में शत शत नमन्…!!

साभार-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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