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यह विश्वकप हमारा है !

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
बहुत कम होते हैं ऐसे मैच जिसमें एक की जगह कई कई खिलाड़ी “मैन ऑफ द मैच” के दावेदार दिखें। कल का मैच वैसा ही था… कोहली, अय्यर, शमी या मिचेल ही नहीं रोहित, राहुल और जडेजा भी… क्या शानदार खेले सब के सब… विजेता होने का दावा ऐसे ही बनता है।

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भारतीय टीम के किसी एक खिलाड़ी की पारी भी निकाल दीजिये, टीम आपको हारती हुई दिखने लगेगी। रोहित ने शुरुआती पटाखे न फोड़े होते तो क्या होता? शुभमन अपना काम कर गए थे। कोहली की पारी तो रीढ़ की हड्डी जैसी थी, पर अय्यर और राहुल ने धुंआ धुंआ न किया होता तो अधिकतम साढ़े तीन सौ पर ठहर जाती रेल… और तब? यहाँ आ कर लगता है कि पूरी टीम ने वह खेल दिखाया, जिसकी कल जरूरत थी। सुखद यह है कि भारतीय टीम हर मैच ऐसे ही खेल रही है।

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राहुल के पांच कैच और जडेजा के तीन… इससे बेहतर विकेट कीपिंग और फील्डिंग क्या ही हो सकती है? सर जडेजा तो सर जडेजा ही है।

न्यूजीलैंड के लिए सबसे बड़ी बात यह रही कि उसकी पारी के समय बीच के लगभग दस ओवर तक भारतीय दर्शक शांत और सहमे हुए दिखे। पहली पारी में लगभग 400 रन बनाने के बाद भी यदि कोई टीम खतरे में आती हुई दिखने लगे तो विपक्षी टीम के लिए भी तनिक तालियां बजा देना आवश्यक हो जाता है। मिचेल की पारी न्यूजीलैंड को हमेशा याद रहेगी। कोई संदेह नहीं कि वह कल का सबसे जुझारू खिलाड़ी रहा।
शमी मियां के लिए कुछ भी कहना कम होगा। वे कमाल ढा रहे हैं। कल जब जब मैच फँसता हुआ दिखा, वे टीम को वापस लौटा लाये… और भारत के दर्शक क्या तालियां पीट रहे हैं इस खिलाड़ी के लिए! लाखों लोगों ने उसकी तस्वीर को अपनी प्रोफाइल फोटो बनाई है। खेल चुपचाप जाने कितने प्रश्नों के उत्तर दे देता है न!

अभी टीम में एक भी प्लेयर ऐसा नहीं, जिसके लिए आप कह दें कि इसके स्थान पर किसी और को लाने की आवश्यकता है। किसी भी देश के पास ऐसी टीम बहुत ही कम आती है।
कई बार देखता हूँ, लोग कोहली को अनावश्यक ट्रोल करते रहते हैं कि वह व्यक्तिगत रिकार्ड के लिए खेलता है। जब सचिन खेलते थे तब उनके लिए भी यह बात कही जाती थी। सच कहूँ तो यह बड़े लेबल का जर्रापन है। मतलब किसी भी तरह विघ्न पैदा कर देने की जिद्द… लोग अपनी सारी शक्ति लगा देते हैं कि कहीं से भी एक गलती ढूंढ लें… “क्या हुआ जो भारत जीत गया, पाकिस्तान को तो हराना पड़ा न? अपने पड़ोसी को मौका ढूंढ ढूंढ कर हराना कोई अच्छी बात नहीं…” अमा जा यार!

“फलां खिलाड़ी को केवल अपने रिकार्ड की चिन्ता रहती है…” भाई साहब! जिसे अपने ही रिकार्ड की चिन्ता न हो, वह देश के रिकार्ड की क्या ही चिन्ता करेगा? हर कोई सहवाग या रोहित नहीं हो सकता। और सत्य तो यह भी है कि एक टीम में एक से अधिक सहवाग/रोहित नहीं रखे जा सकते। बंटाधार हो जाएगा…

शतकों का अर्धशतक यूँ ही नहीं लग जाता! प्रतिभा, परिश्रम, परिस्थिति, भाग्य… और जाने कितने ग्रह एकत्र होते हैं तब कोई सचिन या कोहली होता है।
यह विश्वकप टीम रोहित का है भाई साहब! यह वर्ड कप अपना है…

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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