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असली साम्यवाद पूंजी से ही आता है।

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

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Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
हर गाँव में कोई न कोई ऐसे धनवान काका जरूर होते हैं जो गाँव के लड़कों की फरमाइश सुन लेते हैं और पूरी भी कर देते हैं। उनके बेटे का विवाह तय हुआ नहीं कि गाँव भर के छोकड़े पहुँच जाएंगे सलाह देने, “ए काका! अबकी बारात में बम्बइया नाच का सट्टा कीजिये न! उसमें जो देवुआ लवंडा है, सरवा गजब नाचता है… उसको जरूर बुलाना, बुलुका आँख वाला को… जान लीजिये कि जदि आ गया तो इतिहास रच देगा…”

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ऐसे बुढ़वे भी बड़े रसिक होते हैं। झट से ताव में आ कर कहेंगे, “अरे तुमलोग कह दिए तो समझो कि हो गया सट्टा! साला पचासो हजार मांगेगा तो देंगे पर नाच आएगा तो वही आएगा… नचाओ सार को तीन दिन…”

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अम्बानी के लड़के की शादी में एक साथ नाचते सारु-सलमान-अमीर को देख कर लगता है, जैसे उनके खानदान के सारे लड़कों ने मिल कर कहा होगा, “काका हो! बुलाओ ससुर तीनो लवंडो को… बहुत लम्बी लम्बी फेंकते हैं सब! अबकी तीनों नाचेंगे और हम रुपया उड़ाएंगे…”

अम्बानी बड़ी चीज हैं। उनके लड़के के बरच्छा में देश की सारी नाच पार्टी उतर आई है। देश क्या, विदेशों से कलाकार नाचने उतर पड़े हैं। वे हीरो होंगे तो पर्दे पर होंगे, ककवा के आगे तो सब तिरहुतिया नाच के लवंडों जैसे ही हैं। क्या रनबीर, क्या अर्जुन कपूर… मुम्बई का टाइगर उसके दुआर पर बंदर की तरह नाच रहा था। अच्छे कुमार किसी अच्छेलाल जैसे ही हैं। असली साम्यवाद पूंजी से ही आता है।

यह अम्बानी का बड़प्पन है, उन्होंने अपने गाँव के पड़ोसियों के मनोरंजन की व्यवस्था वैसे ही की है जैसे गाँव देहात के बड़े लोग करते हैं। हर बड़े आदमी को ऐसा ही होना चाहिये।

वैसे अम्बानी की बारात में नाच कर तीनों सुपरस्टार ने यह सिद्ध कर दिया कि पूंजी के आगे सब नाचते हैं। अहंकार अल्पायु ही होता है, टूट जाना ही उसकी नियति होती है। जिस प्रकार ज्ञान का अहंकार किसी ज्ञानी से मिलने पर टूटता है, वैसे ही पैसे का अहंकार अधिक पैसे वाले के सामने टूटता है। जो सारु खान एक साधारण पत्रकार को डपट कर कहते हैं कि हम तीनों को एक साथ बुलाने में चड्डी बनियान बिक जाएगी, वही सारु खान सलमान अमीर के साथ मिल कर अम्बानी के सामने चड्डी डांस करते हैं। यही समय है।
खैर! हमारे जीवन का एक दुख यह भी है कि हमारे बिहार में कोई अम्बानी काका नहीं, जो अपने लड़के के बरच्छा में सारु खान का नाच मंगाए। कोई बात नहीं, हम अभी भी सुतावन सिंह के नाच से काम चलाएंगे।

साभार:सर्वेश तिवारी श्रीमुख-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

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