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लोकतंत्र

प्रशिक्षित बुद्धि और अप्रशिक्षित बुद्धि में क्या भेद है?

Positive India: Sushobhit: जीवन के हर क्षेत्र में एक्सपर्ट और एमेच्योर का द्वैत आपको दिखाई देगा। आप अभी यहां बैठे हैं, आप तुरंत ही उठकर कथक नृत्य नहीं कर सकते, यह वही कर सकता है जिसने उसका…

“आप 2029 पर ही अटक गए, मैं 2047 के लिए लगा हुआ हूं।”-मोदी

5 वर्षीय चुनाव पद्धति वाले संसदीय लोकतंत्र में मोदी जी अगले 25 साल के लिए अपना विजन देश के सामने रख रहे हैं। किसी भी देश की प्रगति में विजन का तय हो जाना उसकी पहली सफलता है।

दुनिया के किसी देश में संघीय राजधानी की ऐसी दुर्दशा नहीं, जितनी केजरीवाल ने दिल्ली की…

जिस शहर में देश का राष्ट्रपति प्रधानमंत्री संसद और सर्वोच्च न्यायालय स्थित हो वहाँ और उसके आस पास के क्षेत्र पर केंद्र सरकार का निर्विवाद नियंत्रण होना ही चाहिए । पता नहीं किस झोंक में…

करण थापर द्वारा सत्यपाल मलिक का लिया हुआ इंटरव्यू टायं टायं फिस्स क्यों हो गया ?

करण थापर ने पत्रकारिता को जिस गर्त में पहुंचाया, उन्हें अपने चरित्र पर लज्जा आनी चाहिए। अब करन थापड़ जैसे लोग सरकार और जनता के बीच की दलाली नहीं कर पाते। दलालों की दुकान अब पूरी तरह से बंद…

अशोक गहलोत ने राजस्थान में क्यों लोकतंत्र का तमाशा बना रखा है?

लोकतंत्र के साथ खेलना और लोकतंत्र का गला घोट देना गांधी वंश के जीन में है। एक चुने हुए नेता सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस से बाहर निकाल कर गांधी ने यह बीज बोया था।

मैं नरेंद्र मोदी से नहीं डरता, लोकतंत्र की रक्षा लड़ते रहेंगे: राहुल गांधी

पॉजिटिव इंडिया: दिल्ली; कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘नेशनल हेराल्ड’ मामले में प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई को लेकर बृहस्पतिवार को कहा कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नहीं…

द्रौपदी मुर्मू पहली आदिवासी राष्ट्रपति दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की।

आजाद भारत को दूसरी बार महिला के रूप में राष्ट्रपति मिली है । उन्होंने सभी महिलाओं को सम्मानित किया है।

कब तक शिवलिंग को फव्वारा बता सकते हो?

जिन लोगों ने विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका लोकतंत्र के तीनों स्तंभों को सिस्टम के मकड़जाल में उलझा कर पिछले 7 दशकों से रखा हुआ था, अब वो दिन लद गए।

कहां गया ईवीएम आंदोलन? कहां गया टूटता लोकतंत्र?

क्या बोलते हो, क्या चाहते हो, कैसी राजनीति करते हो सारा संदेश पल भर में देशभर को पहुंच जाता है। सारे नैरेटिव टूटकर ध्वस्त हो जाते हैं। सारा एजेंडा बेआबरू हो जाता है।

जश्न वालों ये भीड़तंत्र की जीत है और लोकतंत्र की हार

दशकों से मांग वाली कृषि कानून संसद से पास हुआ था। आज भीड़ तंत्र के सामने टूट गया। टूटा कानून नहीं, टूटा है लोकतंत्र। टूटते हुए लोकतंत्र का घिनौना जश्न हुआ आज। मिठाइयों की शक्ल में लोकतंत्र…