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गांधीजी की एक सौ पचासवी जयंती पर विशेष

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
गांधीजी और गांधी वाद आज के समय कितना सामयिक है इस पर भी गंभीरता से विचार करना होगा होगा । क्या कारण है इस वादे से लोग हट रहे है । गांधीजी का सबसे बड़ा अभियान स्वच्छता भी आज के समय अगर किसी सरकार ने इमानदारी से लागू की है तो वो मोदी जी सरकार ही है ।

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गांधी जी का सबसे बड़ा अभियान नशा मुक्ति तो किसी भी सरकार ने अमल मे ही नही लाया । सिर्फ जन्मदिन व पुण्यतिथि मे ही बंधकर गांधीजी के मार्ग पर चलने की अपनी इच्छा शक्ति दिखाई है ।

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दुर्भाग्य तो यह है जिस नशा को पूर्ण रूप से बंद करने का संकल्प लेना था, वो शराब तो चुनाव जीतने का एक बड़ा साधन हो गया है । अब तो हालात यह है कि इसके बगैर कोई चुनाव रणक्षेत्र मे नही उतरता । यह तो चुनाव मे नैया पार करने का अचूक नुस्खा हो गया है । गांधीजी के मार्ग से जीने वाला व्यक्ति व्यवहारिक जीवन मे अगर ऐसे ही नेक रास्ते मे रहना है तो सन्यास नही ले लेगा ? किसी भी नेता से यह अपेक्षा की जा सकती है ? । सिर्फ नोट के लिए व वोट के लिए ही गांधी जी का सबसे बड़ा उपयोग किया जाता है । आज हालात यह है कि किसी का भी काम बगैर गांधीजी के नही होता ।

आज भ्रष्टाचार इस देश मे शिष्टाचार मे बदल गया है । चाहे कितना भी बड़ा काम हो या छोटा, बगैर उसके संभव ही नही है । सवाल उठता है इसे अमल मे कौन लायेगा । सात दशक की राजनीति के कारण एक आम आदमी को गांधीवाद से दूर कर दिया है । अब सिर्फ ये औपचारिकता मात्र बनकर रह गई है । नेताओ ने तो ऐसी हालत कर दी है कि लोगो को खादी पर से विश्वास खत्म हो गया है । कुल मिलाकर गांधी वाद एक रस्मअदायगी बनकर रह गई है ।

गांधीवादी नेताओ ने अपनी सुरक्षा, अपनी पेंशन, राजनीति मे अपनी विरासत आदि का अच्छे से इंतजाम कर लिया है । इससे ज्यादा इन लगो से पूछा जाना चाहिए कि जिनको ये लोग गोडसे से जोड़ा करते थे वो आज कैसे सत्ता पर काबिज हो गए । क्या कारण है आज गोडसेवाद गांधी वाद पर भारी पड़ रहा है । क्योंकि गांधीवाद और गांधी जी सिर्फ औपचारिक हो गये है । इसका पूर्ण जिम्मेदारी सतर वर्ष से सत्ता मे काबिज रही यह पार्टियाँ है । जिनको लग रहा था गांधी जी के नाम से वो कुछ भी कर ले फिर सत्ता मे आ जाऐंगे; यह तिलिस्म खत्म हो गया । लोगो मे जागरूकता आ गई है, देश इकसवी सदी का हो गया है इसलिए उन्हे कामो से ही प्रभावित किया जा सकता है । इस तरह की जागरूकता ने व्यवसायिक नेताओ के होश उड़ा दिये है । किसी ने यह सोचा भी नही था कि गांधीजी के नाम का भी सहारा काम नही आयेगा । अब समय आ गया है अपने को गांधीवादी बोलने वाले अब अपना आत्म निरीक्षण करे । अन्यथा जिस देश से गांधीवाद आया है कही उसी देश से इन लोगो के दोहरे मापदंड के चलते कही अप्रासंगिक न हो जाए ।
लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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