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शाहीन बाग आंदोलन और दिल्ली दंगे का राजनैतिक एजेंडा बेनकाब

Truth behind Shaheen Bagh and Delhi Riots exposed.

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Positive India:Dr.Chandrakant Wagh:
मेरे मित्र व पाजिटिव इंडिया के संपादक पुरूषोत्तम मिश्रा ने दिल्ली पर लिखने की गुजारिश की थी । पर व्यस्तता के चलते लिख नही पाया । पर जो दिल्ली मे हुआ काफी गंभीर बात थी । निश्चित ही शाहीन बाग के आंदोलन की परिणीति अंत मे यही होने वाली थी । प्रशासन का वेट एंड वाच की नीति के कारण सीएए विरोधी आंदोलनकारियों के हौसले बुलंद हो रहे थे । इसलिए इन शांतिप्रिय लोगो ने दूसरे जगह भी आंदोलन के विस्तार की रणनीति अपनाने मे कोई देर नही की । फिर जिसका अंदेशा था वही हुआ । खुले आम विरोध के नाम से आम जनता को परेशानी मे डालना, इनके लिए एक तरह से संवैधानिक अधिकार लगने लगा। मेट्रो बंद क्यो ? सुप्रीमकोर्ट के वार्ताकारो ने भी आंदोलन को संवैधानिक अधिकार माना, पर सार्वजनिक जगह मे किये गये आंदोलन को वापस लेने की भी गुजारिश की गई ।

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नेतृत्व विहीन आंदोलन और पीछे से की जानी वाली राजनीति का एक हिस्सा बनकर यह आंदोलन रह गया था । दुर्भाग्य से आंदोलन मे बैठे दादी, नानी को यह आंदोलन किस लिए किया जा रहा है, यह भी मालूम नही था । पर जिस तरह से आंदोलन मे बिरयानी आदि चीजे खिलाई जा रही थी, उसके दानदाताओ के बारे मे अभी तक पता नही है । इस आयोजन का खर्च कौन उठा रहा है यह भी एक जांच का विषय है । पर्दे के पीछे के लोग इस शांतिपूर्ण आंदोलन को महिमा मंडित करने के लिए टीवी डिबेट मे आकर पैरवी करते रहे है । अब इन तीस से ज्यादा मौतो का गुनाहगार कौन है ?

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ये हालात अकस्मात पैदा नही हुए है इसे बड़ी परिपक्वता के साथ उसके अंजाम तक पहुंचाने दिया गया है । इन्हे मालूम था महिलाओ पर कोई भी सरकार कड़ा कदम नही उठायेगी, जिसका इन्होंने अपने राजनीतिक फायदे के लिए भरपूर दोहन किया । यह कहने मे कही भी संकोच नही की अस्थिरता फैलाना पहला मकसद था । इसलिए जितने भी अहिंसा के मसीहा गए, उनके भाषणों में कही भी इस आंदोलन को खत्म करने के लिए, कभी भी दो शब्द भी नही बोला गया । इस आंदोलन की सफलता ही उनकी राजनीतिक सफलता होती । पूरा विपक्ष इस आंदोलन के साथ जुड़ने मे अपने को गौरवान्वित महसूस कर रहा था । टीवी डिबेट मे भी खुलकर राजनीतिक पार्टियां अपने आप को इस आंदोलन के साथ जोड़ रही थी । एक ही मकसद था, मोदीजी कैसे हटे या मोदी सरकार को कैसे बदनाम किया जाए। इसीलिए कुछ लोग राजनीतिक गंडा बंधवाने पाकिस्तान भी गये थे। वहाँ हटाने के लिए गुहार भी की थी । मोदीजी की छवि कैसे खराब हो, इसलिए इन्होंने ट्रंप के दौरे के समय दिल्ली मे सुनियोजित आगजनी और दहशत का माहौल फैलाने मे कोई कसर बाकी नही रखी । मालूम था कि चाह कर भी कुछ नही कर सकते । एक बात निश्चित है, पर्दे के पीछे के जितने भी नायक है, एक एक करके इनके नाम सामने आयेंगे । जांच ऐजेंसियो को खुली छूट मिलनी चाहिए जिससे दूध का दूध और पानी का पानी होना चाहिए ।

अभी तक किसी भी दल को व नेता को कभी भी किसी दंगे की साजिश के लिए बेनकाब कभी भी नही किया गया । जांच के नाम से वो ठंडे बस्ते मे चला गया । चाहे वो सिक्ख दंगे रहे हो या काश्मीरी पंडितो का नरसंहार, खुले आम अपराधी घूम रहे थे और बेखौफ होकर राजनीति कर रहे थे । कई सज्जन तो बड़े संवैधानिक पदो पर भी रहे है । सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का । इसी मूलमंत्र मे चलने की आदत सी हो गई थी । मोदीजी को इन सफेदपोश लोगो को बेनकाब करने की आवश्यकता है । वही क्षतिपूर्ति भी इन्ही लोगो से लेनी चाहिए ।

आने वाले दिनो मे जांच ऐजेंसिया अपना काम कर जनता को बताऐंगी । बस अब एक कड़े कदम की आवश्यकता है जिससे देश मे शांति का माहौल हो, वहीं षड्यंत्र रचने वाली राजनीति का खात्मा हो । इन्ही शब्दो के साथ ।
डा.चंद्रकांत वाघ-अभनपूर

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