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हिप्पोक्रेट वामपंथियों की ख़ामोशी तो देखिए !

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
हिप्पोक्रेट वामपंथियों की ख़ामोशी तो देखिए ! बद्री नारायण को बीते साल संघी बताने वाले लोग , संजीव पर ख़ामोश हैं। सांप सूंघ गया है। इन्हीं कुछ सालों में कांग्रेस नेता मोइली और शशि थरुर को भी साहित्य अकादमी मिला है , तो क्या यह सब भी संघी हैं ?अवार्ड वापसी गैंग को अब तो मालूम हो ही जाना चाहिए कि साहित्य अकादमी स्वायत्तशासी संस्था है। लेखकों द्वारा , लेखकों के लिए। हां , लेखकों की राजनीति ख़ूब चलती है , साहित्य अकादमी में। लेकिन जनता और पाठक से कट गए लोग सिर्फ़ अपनी मनोकामना और एजेंडे के कुएं में क़ैद हैं।

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और हां , जो लोग नहीं जानते , अब से जान लें कि साहित्य अकादमी के संविधान के मुताबिक़ कोई साहित्य अकादमी लेने के बाद लौटा नहीं सकता। इस बाबत लेखक , साहित्य अकादमी को शपथ पत्र भी देते हैं , तभी साहित्य अकादमी अवार्ड मिलता है। लेकिन हिप्पोक्रेट लेखक इस बात को अवार्ड वापसी के समय किसी अपमान की मक्खी की तरह पी गए। संजीव को भी यह शपथ पत्र देना होगा , साहित्य अकादमी अवार्ड प्राप्त करने के लिए। लोगों को यह भी जान लेना चाहिए साहित्य अकदमी अवार्ड वापसी सिर्फ हवा-हवाई ऐलान था। शोशेबाज़ी थी।

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किसी एक ने साहित्य अकादमी अवार्ड वास्तव में वापस नहीं किया। चाहते तो साहित्य अकादमी के बैंक खाते में पैसे वापस जमा कर सकते थे। वह तो नहीं ही किया , उलटे अपनी कृति पर जो विभिन्न भारतीय भाषाओँ में अनूदित हैं , हर साल मिलने वाली रायल्टी भी निरंतर प्राप्त कर रहे हैं साहित्य अकादमी से। कांग्रेस के चाकर यह हिप्पोक्रेट वामपंथी लेखक , कांग्रेस के लिए पिच बनाते-बनाते थक कर अब ध्वस्त हो गए हैं। दुष्यंत याद आते हैं :

होने लगी है जिस्म में जुंबिश तो देखिये
इस पर कटे परिंदे की कोशिश तो देखिये।

संजीव को मुझे पहचानो के लिए साहित्य अकादमी मिलने पर बहुत बधाई !

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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