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सावरकर और गाँधी – पार्ट २

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
सावरकर और गाँधी-२:
कारागार बहुत से बंदियों का जीवन बदल देता है । अलीपुर बम कांड में भारत के सबसे ऊर्जावान क्रांतिकारी अरविंद घोष जेल गए और वहाँ से योगिराज अरविंद बन कर लौटे । कारा ने उन्हें आत्मज्ञान उपलब्ध करा दिया और जीवन की धारा ही बदल दी । तिलक भी जेल में आध्यात्म में डूब गए और उनकी गीता पर टीका जेल में लिखी गई अद्भुत कृति है ।

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सावरकर(Savarkar) ने अपनी अमर कृति १८५७ का स्वातंत्र्य समर इंग्लैंड में इंडिया हाउस में बड़ी खोज बीन करके लिखी थी । कभी मिले तो पढ़िए । बहादुर शाह ज़फ़र, बख़्त ख़ान, मौलवी अज़ीमुल्ला जैसे मुसलमान प्रतिभागियों की उन्होंने खुल कर तारीफ़ की है । यहाँ तक कि अंग्रेज अफ़सर नील की बहादुरी की जम कर तारीफ़ की है । सांप्रदायिकता तो उस किताब में छू तक नहीं गई है । उन्होंने बड़ी मेहनत से तथाकथित सिपाही विद्रोह को स्वातंत्र्य समर साबित किया था ।

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पर जेल ने उनके विचारों को यू टर्न दे दिया । मैं यहाँ उनके माफीनामों पर नहीं जाऊँगा । किन परिस्थितियों में उन्होंने क्या लिखा यह वही जानते होंगे । लेकिन जेल से निकलने के बाद सावरकर पूरी तरह बदले हुए थे । उनकी मुक्ति में महात्मा गांधी की भी भूमिका थी । सावरकर १९२० में कालापानी से भारत आये पर रिहाई नहीं हुई, वे रत्नागिरी जेल में डाल दिए गये । १९२४ में रत्नागिरी जेल से सशर्त रिहा किए गए कि वे रत्नागिरी से बाहर नहीं जाएँगे ।

इस बीच भारत में बहुत कुछ बदल चुका था । १९१६ में कांग्रेस मुस्लिम लीग समझौता हो चुका था । भारतीय राजनीति में गाँधी(Gandhi) का आगमन हो चुका था । चंपारन, जलियाँवाला बाग हो चुका था । प्रथम विश्व युद्ध ख़त्म हो चुका था । गाँधी का असहयोग और ख़लाफ़त आंदोलन भी हो चुका था । गाँधी जी स्वयं भी देशद्रोह के आरोप में जेल की हवा खा रहे थे ।

लेकिन सावरकर को सर्वाधिक पीड़ा हुई मोपला विद्रोह के नाम पर मालाबार में मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार से । मालाबार में यह अफ़वाह फैलाई गई कि अंग्रेजों के तुर्की पर क़ब्ज़े के विरोध में दिल्ली पर अफ़ग़ानिस्तान के अमीर ने हमला कर दिया है । दुनिया में कहीं भी मुसलमानों पर अत्याचार का बदला आज भी भारत में हिंदुओं से लिया जाता है । अभी २०१२ में ही आज़ाद मैदान हिंसा इसका ताज़ा उदाहरण है । मालाबार हिंदू हिंसा इतने बड़े पैमाने पर थी कि उसे मालाबार का दूसरा जिहाद कहा जाता है पहला जिहाद टीपू के समय हुआ था ।

यूँ तो सावरकर नास्तिक थे लेकिन हिंदू धर्म में नास्तिक भी सम्मान अर्जित कर सकते हैं । सावरकर ने मोपला विद्रोह पर बहुत मर्मस्पर्शी उपन्यास लिखा है और हिंदू धर्म की विद्रूपता को उजागर किया है । रत्नागिरी में रहते हुए छुआ-छूत को मिटाने के लिए मंदिरों में प्रवेश से लेकर उनके साथ सहभोज आयोजित कर अस्पृश्यता की जड़ पर प्रहार किया । उनकी प्राथमिकताएँ बदल गईं । अब वे पुराने क्रांतिकारी नहीं रह गए थे अपितु हिंदुत्व के पुरोधा थे । अस्पृश्यता उन्मूलन में गाँधी और सावरकर के विचार एक जैसे थे ।

उन्होंने हिंदुत्व की नई परिभाषा गढ़ी । जो भी भारतभूमि को अपनी पितृभूमि मातृभूमि और पुण्यभूमि मानता है वह हिंदू है ।
उनके बहुत से प्रशंसकों को इससे निराशा हुई पर सावरकर अपने विचारों पर अडिग रहे ।

गाँधी के अहिंसक तौर तरीक़ों से सावरकर को घोर आपत्ति थी लेकिन गाँधी के सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन के चलते ही भारतीय शासन व्यवस्था में समय समय पर सुधार होते रहे । उनका बारडोली सत्याग्रह, दांडी मार्च ,चंपारन आंदोलन, सभी कुछ न कुछ सफलता लेकर ही आए । १९३५ का गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट कांग्रेस के प्रयासों से ही अस्तित्व में आया और सन ३७ में चुनाव हुए और बम्बई सहित कई प्रदेशों में कांग्रेस कीं सरकारें बनी ।

कांग्रेस के ही बंबई प्रांत के प्रधानमंत्री बीज़ी खेर ने पदभार ग्रहण करने के उपरांत सावरकर पर से सारे प्रतिबंध बिना शर्त हटा लिए । अब वे रत्नागिरी छोड़ कर कहीं भी जा सकते थे और राजनीति में भी सक्रिय भाग ले सकते थे ।

क्रमशः

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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