www.positiveindia.net.in
Horizontal Banner 1

सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों का सुरक्षित बाहर निकल आना पिछले कुछ समय की सर्वश्रेष्ठ खबर क्यों है?

-सर्वेश कुमार तिवारी की कलम से-

Ad 1

Positive India:Sarvesh Kumar Tiwari:
सबसे अच्छी जीत वह होती है जब जीवन, मृत्यु को पराजित कर के विजयी हो। सबसे अच्छी खबर वह है, जिसमें जीवन का उल्लास हो, आनन्द हो… और शायद इसीलिये हिमालय के उस सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों का सुरक्षित बाहर निकल आना पिछले कुछ समय की सर्वश्रेष्ठ खबर है।

Gatiman Ad Inside News Ad

सत्रह दिन तक नरक के अंधेरे को महसूस करने के बाद जब इकतालीस जोड़ी आंखों ने सूर्य का प्रकाश देखा होगा, तब इस संसार का सबसे सुंदर चित्र उन्ही आंखों में उभरा होगा। संसार की सर्वश्रेष्ठ कविता उन इकतालीस लोगों ने तब सुनी होगी, जब बाहर निकलते ही डॉक्टर ने यह पूछा होगा, “ठीक हो न?” ये तीन शब्द भाषाई संसार की सर्वश्रेष्ठ किताबों पर भारी हैं।

Naryana Health Ad

ऐसी खबरों पर बात होनी चाहिये। खूब बात होनी चाहिये। किसी को दोषी बताने या किसी को क्रेडिट देने के लिए नहीं, बस यूँ ही आनन्दित होने लिए। आमजन में इस भरोसे को बनाये रखने के लिए कि कभी कभी सूरज सत्रह दिन के बाद भी निकलता है। मृत्यु के जबड़े में फंस जाने के बाद जीवन की आश नहीं टूटनी चाहिये, क्योंकि अनेक बार आशाएं जैसे नियति को पलट कर विजयी होती हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि सकारात्मकता जीवन की पहली आवश्यकता होती है।

पर तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है। अनेक लोग हैं जिन्हें सकारात्मकता नहीं रुचती। वे सदैव नकारात्मकता तलाशते रहते हैं। उन्हें इसी से शक्ति/रोटी मिलती है।

सुनने में तनिक कठोर लगेगा, पर यह सच है कि एक जनवादी कवि को कविता के लिए कच्चे माल के रूप में ‘दुख’ चाहिये। उसके लिए कविता का सर्वश्रेष्ठ रॉ मेटेरियल लाशें ही होती हैं। और इसी कारण वह हमेशा लाश ढूंढता रहता है।

आपने देखा होगा, अपने माथे पर बुद्धिजीविता का मुकुट बांध कर घूमते लोग किसी भी पर्व त्योहार या अन्य उत्सव का समर्थन नहीं करते। वे सदैव इनमें कमियां ढूंढ कर इनकी आलोचना करते रहते हैं। कारण वही है, किसी का सुख इन्हें आकर्षित नहीं करता। सुख इन्हें आनन्द नहीं देता। इन्हें दुख चाहिये, ताकि ये कविताएं लिख सकें…

जनवादी कवियों को यदि कविता के लिए दुख न मिले तो वे दुखों की कल्पना कर लेते हैं। समाज जिस दुख का अनुभव नहीं भी कर रहा है, उसके लिए भी बार बार चिल्लायेंगे कि तुम दुखी हो… तुम भले नहीं समझ रहे हो, पर हो तुम दुखी ही… और इस तरह जनवादी कविता कुंठित लोगों की नकारात्मक लफ्फाजी में बदल जाती है।

मृत्यु एक दुखद खबर होती है, कविता नहीं होती। दुखों का ब्यापार साहित्य नहीं है। कविता जीवन में होती है, जीवन सर्वश्रेष्ठ कविता है।

एक बात और! दुख का धंधा करने वाले बुद्धिजीवियों से दूरी बनाना भी सुखी जीवन का एक सूत्र है।

साभार:सर्वेश तिवारी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)
गोपालगंज, बिहार।

Horizontal Banner 3
Leave A Reply

Your email address will not be published.