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पुश्तैनी महल में ताजा हवा का झोंका-कनक तिवारी

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Positive India:Kanak Tiwari:
यह चमत्कार यश या संयोग कभी , कभी होता है। भारत की लोकसभा में वर्षों बाद यह देखने में आया। सबसे ज्यादा ताकतवर और करीब दो तिहाई बहुमत की सरकार के सामने एक ऐसा वाचाल तर्कपूर्ण तीखा और आश्वस्त तेवर एक नए लोकसभा सदस्य ने संसद के जीवन में उछाला। नहीं चाहने या उसे प्रतिबंधित करने के प्रयासों के बावजूद उसकी अनुगूंज संसद की याद ध्यानी कार्यवाहियों का प्रेरक प्रसंग बन गई है।
लोकसभा में पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर संसदीय क्षेत्र की तृणमूल कांग्रेस की निर्वाचित सदस्य महुआ मोइत्रा ने अपने पहले भाषण में दो तिहाई बहुमत की संसदीय हेकड़ी के तैश को समझा दिया । कपड़ा धोबी के यहां कितना भी साफ सांप्रदायिक भावनाएं भड़काकर धो लिया गया हो। उस पर लोकतंत्रीय इस्तरी चलाने से ही संसद की व्यापक समझ का मानक पाठ तैयार किया जा सकता है। अपने पहले क्रिकेट मैच या मेडन स्पीच में महुआ ने लोकसभा की पिच पर छक्का लगा दिया। वे शेरनी के जुमले में नहीं गरजीं। उन्होंने बहुत कम समय में जनसंसद में एक प्राथमिकी दर्ज करने के साथ भविष्यमूलक चुनौतियों का कोलाज भी बिखेरा। उस तर्कमहल की एक एक ईंट इतनी मजबूत रखी कि बीच बीच में दो तिहाई वाले भारी भरकम सत्ता पक्ष की ओर से की जा रही व्यवधानी हुल्लड़ तुलसीदास की रामचरितमानस की चौपाइयों के बीच में क्षेपक या गड़बड़ रामायण की तरह सुनने में बेहूदी लगी। लोकसभा में दिया जा रहा महुआ का भाषण महज नये सदस्य द्वारा बिखेरी गई चेतावनी का अहसास नहीं था। लगा जैसे हिन्दुस्तान का जख्मी और कराहता हुआ मौजूदा इतिहास खुद एक इंसानी प्रतिनिधि बनकर देश के नागरिकों की चेतना को झिंझोड़ रहा है। वह अभिमन्यु शैली का साहसी लेकिन सहायता मांगता हुआ चीत्कार नहीं था। उसमें महाभारत उपदेशक का भाव भी नहीं था।

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महुआ ने अद्भुत संयम सावधानी और मुक्तिबोध के शब्दों की दृढ़.हनु की विनम्रता चेहरे पर कायम रखी। यह बताने के लिए कि विनम्रता मूल्यों को रचने में ज्यादा नायाब और स्थायी कारगर हथियार होती है। एक शब्द का दोहराव किए बिना अटके बिना सांसों के आरोह अवरोह का अभिनय कौशल इस सांसद को याद दिला गया कि इस नई महाभारत में उसे दुर्योधन और दुःशासन को भी नए रूपक में ढालकर ओज के हिन्दी कवि रामधारी सिंह दिनकर से उनकी पंक्तियों में आशीर्वाद लेना है। वह उसने अद्भुत सामयिकता के साथ किया। शायर राहत इंदौरी का शेर भी बहुत मौंजू तरीके से इस महिला सांसद ने सूत्रबद्ध चेतावनी के रूप में लोकसभा के रेकार्ड में लिखा तो दिया। महुआ मोइत्रा की तरह यदि छह सांसद भी संसद की तकरीरों में इसी तरह सजग रहे। तो भारी भरकम सत्तामूलक धड़े का हुल्लड़बाज हिस्सा अपने उस लक्ष्य तक तो पहुंचने में कठिनाई महसूस करेगा जो एक बरसाती नदी के मजहबी उद्दाम उफान की तरह हिन्दुस्तानियत की सदियों पुरानी उगी फसल को बेखौफ होकर काफी कुछ बहा ले गया।

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एक भौंचक सरकार को अंगरेजी भाषा सरिता में चप्पू चलाती सांसद ने तर्क और तथ्य के दोहरे आक्रमण में फंसाकर पूछा। उसका जवाब मोदी है तो मुमकिन है के नारे में नहीं दिया जा सकता। 120 सरकारी नुमाइंदे हैं जो सूचना प्रसारण मंत्रालय में बैठकर हिन्दुस्तान की मीडिया के सेंसर अधिकारी है। उनके आदेश निर्देश और समीक्षा के बाद ही मीडिया में खबरें तराशी खंगाली और छापी जाती हैं। देश की अवाम की दौलत का केवल एक पार्टी और एक नेता के लिए दुरुपयोग हो रहा है। देश के चुनिंदा कारपोरेटी ही मीडियामुगल है। सत्ता और संपत्ति के गठजोड़ का खुला खेल चल रहा है। उसकी परत परत नोचकर महुआ ने संसद को अभियुक्त भाव से आंज भी दिया। यह मार्मिक सवाल पूछा कि देश की सेना तो देश की सेना है। वह एक व्यक्ति की सेवा में चुनाव प्रचार का एजेंडा कैसे बन सकती है। चाहे कुछ हो निराशा का एक बादल तो उनके भाषण से छटा। एक लोकसभा सदस्य ने पूरी लोकसभा को उसके इतिहास संगठन मकसद और भविष्य का साफ सुथरा आईना दिखा दिया। यह तो वह भाषण है जिसने मार्क एंटोनी भले न हो मधु लिमये हीरेन मुखर्जी नाथ पई हेम बरुआ सोमनाथ चटर्जी और राममनोहर लोहिया की एक साथ याद दिला दी।

मौजूदा लोकसभा का भारी भरकम सत्ता पक्ष केवल संख्या बल के आधार पर ही अपना कीर्तिमान स्थापित नहीं कर सकता। कई नए तनाव जबरिया उठाए जा रहे हैं। सरकार के मुख्य घटक भाजपा की पूरी नीयत और ताकत जवाहरलाल नेहरू के रचे लोकशाही के एक एक अवयव पर सैद्धांतिकता की आड़ में निजी हमला करने की है। महुआ ने भी राजस्थान के पहलू खान और झारखंड के तबरेज अंसारी का नाम लेकर माब लिंचिंग की ओर अपनी आवेशित करुणा के जुमले में हमला किया। हैरत की बात है प्रधानमंत्री को अशोक होटल में भोज के वक्त या बिहार के स्वास्थ्य मंत्री को विश्व कप में भारत के खिलाडी रोहित शर्मा की बल्लेबाजी पर खुश होकर तालियां बजाते वक्त बिहार के मुजफ्फरपुर में 200 से भी ज्यादा बच्चों के सरकारी बदइंतामी के फलवरूप मर जाने पर भी अफसोस करते नहीं सुना देखा गया। महुआ मोइत्रा देश के लिए दिए गए बंग संदेश में भारतीय नवोदय के अशेष हस्ताक्षरों राजा राममोहन राय रवींद्रनाथ टैगोर काज़ी नजरुल इस्लाम विवेकानन्द और सुभाष बोस आदि की सामूहिक संकेतित अनुगूंज थी। तब भी हिन्दुस्तान की संसद में आधे से ज्यादा चार्जशीटेड सदस्य देश की रहनुमाई कर रहे हों। यही पेचीदा सवाल महाभारत में उठाए गए यक्ष प्रश्नों के मुकाबले कहीं अधिक तकलीफदेह है।
साभार:कनक तिवारी(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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