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सियासी दलों के पावर सेंटर्स

-विशाल झा की कलम से-

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Positive India:Vishal Jha:
आम आदमी पार्टी में सुनीता केजरीवाल, आतिशी मारलेना, गोपाल राय, संजय सिंह और राघव चड्ढा। कांग्रेस में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, रॉबर्ट वाड्रा और मल्लिकार्जुन खड़गे। ये सभी नाम नहीं, एक-एक कैंप हैं। सुनीता केजरीवाल के पास सबसे बड़ी चुनौती है कि उन्हें अपने मुख्यमंत्री पति की हैसियत को संभालना है और वे केजरीवाल के नाम पर चिट्ठी पढ़ती हैं और अपने सभी विधायकों को बकौल अरविंद केजरीवाल निर्देश देती हैं कि सभी विधायक अपने-अपने क्षेत्र में जाकर जनसंपर्क के कार्य करें। एक प्रकार से सुनीता केजरीवाल निर्वाचित नेताओं का कैंप करना चाहती हैं। दूसरी तरफ गोपाल राय ने घोषणा कर दी है कि केजरीवाल के समर्थन में तय तारीख को तय स्थल पर उपवास प्रदर्शन करना है अर्थात् एक कैंप ये तैयार कर रहे हैं। आतिशी मारलेना अरविंद केजरीवाल के डायबिटीज और घटते हुए वजन को बोल्ड आवाज में रखने से सुनीता केजरीवाल डोमिनेंट होती हुई नजर आती हैं। आखिरकार वो केजरीवाल के बाद पार्टी की द्वितीय सबसे प्रमुख नेता भी हैं। संजय सिंह जेल से बाहर आते ही पार्टी के समर्थन में सड़कों पर उबलते हुई लहर को थाम कर अपना एक कैंप करना चाहते हैं।

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यही हाल कांग्रेस का है। रॉबर्ट वाड्रा अपने पावर सेंटर से अमेठी उतरना चाहते हैं। प्रियंका गांधी को राहुल गांधी में नेतृत्व की क्षमता नहीं दिखती और वे स्वयं को आयरन लेडी की तरह कांग्रेस को लीड करना चाहती हैं। उनके लिए राहुल गांधी रास्ते का कांटा हैं। राहुल गांधी कांग्रेस वंशवाद का सबसे प्रबल दावेदार हैं। पार्टी लीडरशिप पर उनका क्लेम स्वत: बनता है। लेकिन सोनिया गांधी की अपनी एक आवाज है। कांग्रेस में उनका कैंप एक अलग शेयरहोल्डर है और मल्लिकार्जुन खड़गे तो घोषित रूप से पार्टी के अध्यक्ष हैं। उनका कैंप तो घोषित है। सभी कैंपों के अपने अपने स्वार्थ हैं और अपने-अपने संघर्ष।

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भारतीय जनता पार्टी में केवल एक ही पावर सेंटर है, नरेंद्र मोदी। और सभी अपनी-अपनी स्वीकार्यता उस पावर सेंटर को देते हैं। ऐसा क्यों है! बीजेपी में भी बहुतेरे कैंप क्यों नहीं हैं? इसका बड़ा सीधा और सरल उत्तर है। भारतीय जनता पार्टी में जितने भी ताकतवर लोग हैं, चाहे वे एक बड़े मास को कनेक्ट करते हों, चाहे उनके नेतृत्व कौशल अथवा चुनावी लड़ाई में जीतों की संख्या अधिक हो, जो शीर्ष नेतृत्व पर बैठे हैं वे सब में अव्वल उतरते हैं। अगर पार्टी में कोई अन्य नेता, कोई बड़े मास को कनेक्ट करता है, तो शीर्ष पर बैठे नरेंद्र मोदी सबसे बड़े मास कनेक्टर हैं। अगर किसी में नेतृत्व कौशल अच्छी है, तो नरेंद्र मोदी का नेतृत्व कौशल सबसे ऊंचा है। अगर किसी ने चुनावी लड़ाई में जीतो की बड़ी संख्या हासिल की हुई है, तो नरेंद्र मोदी ने कभी हार का मुंह नहीं देखा है। अब जब कोई दूसरा समानांतर कैंप बीजेपी में तैयार होगा, ये तभी संभव है जब इस शीर्ष नेतृत्व के मुकाबले अधिक ऊंचा या बराबर व्यक्तित्व हासिल कर ले।

सिर्फ एक ऊंचा व्यक्तित्व न केवल पार्टी के भीतर तमाम कैंप और विद्रोहों को सिर उठाने का अवसर ही नहीं देता, बल्कि पार्टी के बाहर भी लोकल बॉडी की जमीनी सियासत से लेकर राष्ट्र के स्तर पर तथा विश्व के भी पटल पर अपने डोमिनेंस को स्थापित करता है। यह एक सहज नेतृत्व कौशल के रूप में कार्य करता है। और बड़ी सुगमता से पार्टी, पॉलिटिक्स, नेशन और डिप्लोमेसी सबको नेतृत्व देता है। सब इस नेतृत्व को बड़े शिष्टाचार से स्वीकार करते हैं। बिना किसी दबाव के स्वीकार करते हैं। सबों को ऐसे नेतृत्व में कार्य करने में एक आत्मिक संतुष्टि आती है। बिना संघर्ष के काम बड़ी एकरूपता से चलता जाता है। जिन्हें भी नेतृत्व करना है उन्हें स्वयं इतना मजबूत होना पड़ता है कि उनके नेतृत्व को स्वीकार करने वाले को आत्मग्लानि न हो। गौरव वल्लभ जैसा बुद्धिमान व्यक्ति राहुल गांधी जैसे मंदबुद्धि नेता का नेतृत्व कैसे स्वीकार कर सकता है? और फिर अव्यवस्था उत्पन्न होती है। सत्ता मिल जाने पर भी यही अव्यवस्था तब राजनीतिक पार्टी से बाहर निकाल कर देश की व्यवस्था को अपने चपेट में ले लेता है और फिर डिप्लोमेसी के स्तर पर भी देश का मिट्टी में मिल जाना तय हो जाता है।

यह भी सच नहीं की कांग्रेस के विगत 70 वर्षों के शासनकाल में नेतृत्व सफलता का कारण कोई एक मजबूत नेतृत्व था। इतिहास भरे पड़े हैं कि चाहे नेहरू कालीन राजनीति हो अथवा इंदिरा गांधी या राजीव गांधी या सोनिया गांधी के वक्त की राजनीति। सबने अपने-अपने नेतृत्व को अथवा एकक्षत्र पावर सेंटर को स्थापित करने के लिए तमाम समानांतर स्टेट स्टेकहोल्डर्स को ठिकाने लगाया है। इसका एक घिनौना इतिहास भरा पड़ा है। सुभाष चंद्र बोस के समय से आरंभ हुआ यह घिनौना खेल राजीव गांधी की नियोजित हत्या पर आकर रुकी। जिसके हत्यारे तक को भी अंततः माफ ही कर दिया गया। ऐसे क्रूर और घृणित और अकर्मण्य बुनियाद पर कोई नेतृत्व खड़ा होता है तो उसका क्या सामर्थ्य हो सकता है? यह केवल और केवल विनाश की तरफ ही जा सकता है।

साभार:विशाल झा-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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