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मजबूरी का नाम महात्मा गांधी

-दयानंद पांडेय की कलम से-

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Positive India: Dayanand Pandey:
एक सवाल पूछने की कृपया मुझे अनुमति दीजिए। वह यह कि गांधी के नाम पर घड़ियाली आंसू बहाने वालों में आज कितने लोग हैं , गांधी के बताए रास्ते पर चलते हैं। कितने लोग हैं जो मांसाहार और शराब से दूर रहते हैं। वह कौन लोग हैं जो गांधी के ग्राम स्वराज और कुटीर उद्योग के दर्शन को व्यवहार में लाने के पहले ही पलीता लगाने में अव्वल रहे। गांधी तो राम को मानते थे। रामराज की कल्पना करते थे।

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लेकिन यह लोग ?

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अगर गोडसे को संघी सिद्ध कर गरियाने का मक़सद न हो तो गांधी का नाम भी न लें। अलग बात है कि न गोडसे संघी था , न सावरकर। दोनों हिंदू महासभा से थे। गोडसे हत्यारा था , इस में क्या शक़ है। लेकिन मुश्किल देखिए कि गांधी की जब हत्या हुई तो पाकिस्तान से जिन्ना ने शोक संदेश में कहा कि अफ़सोस कि हिंदुओं के रहनुमा गांधी नहीं रहे। जिन्ना गांधी को हिंदुओं का रहनुमा बता रहा था और यहां गोडसे जैसे कट्टर हिंदू ने गांधी की हत्या इस लिए की कि वह गांधी को मुस्लिमपरस्त और पाकिस्तानपरस्त समझता था। आज भी बहुत सारे कट्टर हिंदू इसी लिए गांधी से नफ़रत करते दिखते हैं। क्यों कि वह गांधी को मुस्लिमपरस्त और पाकिस्तानपरस्त मानते हैं। नफ़रत तो वामपंथी भी गांधी से बहुत किया करते थे। पर अब भाजपा से लड़ने के लिए गांधी एक टूल बन गए हैं वामपंथियों के लिए।

जैसे जिन्ना गांधी को हिंदुओं का रहनुमा समझता था , वैसे ही आज भी कट्टर मुसलमान , गांधी को हिंदुओं का रहनुमा मानते हैं। क्यों कि गांधी गाय और राम की बात करते थे। मांसाहार और शराब से दूर रहने की बात करते थे। सब से दिलचस्प तो वामपंथियों का इन दिनों का गांधी प्रेम हो गया है। जब तक गांधी जीवित थे , वामपंथी गांधी का विरोध करते रहे। यहां तक कि गांधी ने जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरु किया तो वामपंथी ब्रिटिश हुकूमत के साथ खड़े हो कर भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध करने लगे। आगे भी गांधी के किसी आंदोलन में वामपंथी नहीं खड़े हुए। सुभाष चंद्र बोस को हिटलर का साथी तोजो का कुत्ता कहते रहे। फिर थे कहां और कब आज़ादी की लड़ाई में। हां , बीते दिनों आज़ादी-आज़ादी का नारा , ले के रहेंगे आज़ादी ख़ूब लगाया , वामपंथ के नाम पर जे एन यू के कुछ लौंडों ने। जिन में एक इन का प्रमुख कन्हैया कुमार अब कांग्रेस की शोभा बन कर राहुल गांधी की जी हुजूरी करने में व्यस्त है। पहले लालू यादव का पैर छूता दिखा था यह कामरेड ! फिर वामपंथी तो गांधी से उलट गाय का मांस खाने की पैरोकारी खुल कर करते हैं। खाने का अधिकार मानते हैं। शराब , उन के जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। पर गांधी का नाम बहुत जोर-जोर से लेते हैं।

और नेहरु ?

नेहरु जिस को प्रधान मंत्री बनाने के लिए गांधी ने सारे मत , सारे सिद्धांत और सारी लोकतांत्रिकता को ताक पर रख दिया था। उसी नेहरु ने प्रधान मंत्री बनने के बाद गांधी को उपेक्षित कर दिया। गांधी के सारे उसूल , बंगाल की खाड़ी में बहा दिए। आज लोग लालकृष्ण आडवाणी को नरेंद्र मोदी द्वारा मार्गदर्शक मंडल में डाल देने पर बड़े टेसुए बहाते मिलते हैं। लेकिन नेहरु ने तो आडवाणी से भी बुरा हाल गांधी का कर दिया था। गांधी को गोडसे ने बाद में मारा , नेहरु ने जीते जी मार दिया था। गांधी बुलाते रहते थे , नेहरु मिलने भी नहीं जाते थे। आजिज आ कर गांधी ने जय प्रकाश नारायण को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की ठानी। जय प्रकाश नारायण को बुला कर बात भी की। जय प्रकाश नारायण ने हामी भी भर दी। पर दूसरे ही दिन गांधी की हत्या हो गई।

गोडसे ने पैर छू कर , गांधी को गोली मार दी। पर नेहरु ने उन्हें जीते जी मार दिया था। गांधी चाहते थे कि देश में छोटे उद्योग लगें। ताकि हर हाथ को काम मिले। गांधी औद्योगीकरण के सख्त ख़िलाफ़ थे। पर नेहरु ने औद्योगीकरण न सिर्फ़ शुरु किया , छोटे उद्योगों की हत्या कर दी। गांधी स्वदेसी के पैरोकार थे। नेहरु विदेशी के पैरोकार। गांधी ग्राम आधारित अर्थव्यवस्था चाहते थे। पंचायती राज चाहते थे। नेहरु ने इस सब पर पानी फेर दिया था। गांधी शराब और मांस से दूर रहने की बात करते थे। पर नेहरु ख़ुद कभी शराब और मांस से दूर नहीं रहे। गांधी उन्हें पंडित जी , पंडित जी कहते रहते थे। पर पंडित जी गांधी को सिर्फ़ एक सीढ़ी समझते रहे। प्रधान मंत्री बनने की सीढ़ी। सरदार पटेल का हक़ छीन कर प्रधान मंत्री बने भी।

शुरु में सरकार बनने तक गांधी की चली। पर बहुत कम समय। जैसे नेहरु सी गोपालाचारी को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे। पर गांधी ने राजेंद्र प्रसाद को बनवाया। नेहरु , अंबेडकर को मंत्रिमंडल में नहीं रखना चाहते थे। पर गांधी की ज़िद से अंबेडकर को क़ानून मंत्री बनाना पड़ा। संविधान सभा में भी अंबेडकर को नेहरु नहीं चाहते थे। पर गांधी के कहने पर लेना पड़ा अंबेडकर को। फिर अंबेडकर को मुंबई से चुनाव में कम्युनिस्टों की मदद से हराने में क़ामयाब रहे नेहरु।

गांधी के सत्य का राम नाम सत्य करते गांधी के असली दुश्मन असल में कांग्रेस में ही बैठे थे। धीरे-धीरे गांधी इतने लाचार हो गए कि एक मुहावरा ही बन गया कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। वह तो गोडसे ने गांधी की हत्या कर दी। पर अगर गांधी आगे जीवित रहे होते कुछ दिन और तो तय मानिए कि वह नेहरु सरकार की उपेक्षा से इतना तंग आ गए थे कि नेहरु सरकार के खिलाफ कोई आंदोलन शुरु कर देते। जय प्रकाश नारायण को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने की क़वायद इस आंदोलन की पहली सीढ़ी थी। गांधी कांग्रेस के सदस्य नहीं थे पर कांग्रेस के लोग उन की सुनते थे। नेहरु सरकार चला रहे थे पर गांधी को अनसुना कर। आप इन बातों को कपोल-कल्पित हरगिज न मानिए। गांधी की उस समय की विभिन्न लोगों को लिखी चिट्ठियों को पढ़िए। गांधी के तब के समय के लिखे लेख पढ़िए। सब समझ में आ जाएगा। यह सारा कुछ गांधी वाङ्गमय में संकलित है। बातें बहुत सी हैं , गांधी की उपेक्षा और लाचारी की , उन की हत्या की। मजबूरी का नाम महात्मा गांधी की। पर आज इतना ही।

साभार:दयानंद पांडेय-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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