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छतीसगढ में कर्ज माफी तथा इसके दुष्परिणाम

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Positive India: अब भूपेश सरकार को आये शायद सौ दिन हो गए हैं । इसमे तो कुछ दिन लोकसभा चुनाव के कारण आचार संहिता लगी हुई
हैं जिसके चलते आर्थिक काम पर वैसे ही पाबंदी लगी हुई है । पर अपने सत्ता मे आने के लिए इस तरह के वादे अब उसके लिए जी का जंजाल बना हुआ है । अभी तो सिर्फ ऋण माफी, वो भी किसानो की पूरी नही हुई है । पर अब खजाना भी खत्म हो रहा है । इसलिए सरकार ने कटौती वाला काम चालू कर दिया है । पर कटौती जहां भी करेंगे उसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगेंगे । भूपेश सरकार ने अब नई नियुक्ति पर पाबंदी लगा दी है । उसमे कटौती कर दी है । सरकार का कहना है कि इनको देने के लिए वेतन के लिए पैसा नही है,जबकि लोकसभा चुनाव मे यही दल रोज मोदी जी को रोजगार मुद्दे पर घेर रहे है । हर रैली मे बेरोजगारी इनका सबसे बड़ा मुद्दा है । वही दूसरी तरफ ये लोग प्रदेश मे अपने शासन मे बेरोजगारी पैदा कर रहे है । कितनी विडंबणा है सत्ता मे रहने के लिए खुद का रोजगार ढूंढने वालो ने ऐसे वादे कर दिये कि प्रदेश के युवा वर्ग का रोजगार खत्म कर दिये । अभी तो साल भर की बात है फिर कब तक ये बंदिश खत्म होगी कहना मुश्किल है । एक तरफ रोजगार के लिए सरकार पर निर्भर है परन्तु केंद्र और राज्य के रस्साकशी मे युवा इन पार्टियो के नेताओ के लिए मात्र फुटबाल बन कर रह गया है । राजनीति में किस पर विश्वास करे, न करे, इस तरह के माहौल मे युवा अनिश्चितता की स्थिति मे आ गया है । रोजगार का मुद्दा इनके लिए एक ऐसे मजाक सा हो गया है जहा पकौड़े चाय और दूसरे तरफ चरवाहे की ट्रेनिंग के बारे मे मध्यप्रदेश की सरकार ने भी कहा है । कुल मिलाकर रोजगार जैसे संवेदनशील मुद्दे पर इस तरह का बचकाना राजनीतिक हरकत कही युवाओ मे आक्रोश न पैदा कर दे । अब समय आ गया है इस मुद्दे पर गंभीरता पूर्वक या तो घोषणा करे या नये रोजगार सृजन करे।यही इस समस्या का समाधान है। लेखक:डा.चंद्रकांत वाघ(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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