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ममता बनर्जी का यह खेला फिलहाल उल्टा पड़ गया

संजय गांधी ने अमेठी में ऐसा ही चुनावी स्टंट किया था।

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Positive India:Satish Chandra Mishra:
ममता बनर्जी का यह “खेला” फिलहाल उल्टा पड़ गया है।
संजय गांधी 1977 में लोकसभा का चुनाव अमेठी से लड़ रहे थे। केवल उत्तरप्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश के बाहुबलियों ने अपने हथियारबंद गुर्गों के साथ अमेठी में संजय गांधी के पक्ष में डेरा डाल रखा था। लेकिन जनता संजय गांधी से बहुत नाराज थी। संजय गांधी का प्रचार करने अमेठी पहुंचे विश्व प्रसिद्ध पहलवान दारा सिंह का जनता ने बहुत उग्र विरोध किया था और उनपर गालियों की इतनी और ऐसी बौछार कर दी थी कि दारा सिंह अपना आपा खो कर मंच से कूद कर जनता की तरफ डंडा लेकर दौड़ पड़े थे। पर भीड़ के आगे उनकी पहलवानी किसी काम नहीं आयी थी। भीड़ से बचाकर पुलिस उन्हें थाने ले गयी थी और सुरक्षा की दृष्टि से उन्हें रात भर थाने में रख कर सुबह बम्बई भेज दिया था। यह वो दौर था जब दारा सिंह की लोकप्रियता देश में चरम पर थी। विशेषकर ग्रामीण भारत में उनको महामानव की तरह पूजा जाता था।। ऐसे विपरीत राजनीतिक हालातों में एक दिन चुनाव प्रचार कर लौट रहे संजय गांधी की कार पर गोलियां बरसा दी गईं थीं। यह चुनावी स्टंट जनता की सहानुभूति बटोरने के लिए किया गया था। लेकिन नाराज जनता इसे भी समझ गई थी। उस चुनावी स्टंट का उस पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। संजय गांधी को 76 प्रतिशत के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा था।
आज उपरोक्त घटना की याद तब आयी जब अपनी गलती के कारण हुई एक दुर्घटना को अपने ऊपर हुआ जानलेवा हमला बता कर ड्रामा करते हुए ममता बनर्जी को देखा। दो ही तीन घण्टों में ममता बनर्जी के उस सफेद झूठ की धज्जियां उड़ गईं क्योंकि उस दुर्घटना के सैकड़ों प्रत्यक्षदर्शियों ने दर्जनों न्यूजचैनलों पर आकर सच बताना शुरू कर दिया। ममता का यह “खेला” फिलहाल उल्टा पड़ गया है।
1975 में कलकत्ते की एक सड़क पर 80 वर्ष के वृद्ध नेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की कार रोकने के बाद उनकी कार की छत और बोनट पर एक लड़की चिल्लाते हुए नाचने कूदने लगी थी और अखबारों की सारी सुर्खियां बटोर ले गई थी। वो लड़की कोई और नहीं आज की ममता बनर्जी ही थी। अपनी उस उद्दंडता और अराजकता के साथ राजनीतिक यात्रा प्रारंभ करने वाली ममता बनर्जी शायद भूल गयी है कि वर्तमान संचार क्रांति के युग में ऐसे हथकंडों की ना ज्यादा उम्र होती है ना ज्यादा असर होता है।
साभार:सतीश चंद्र मिश्रा-एफबी(ये लेखक के अपने विचार)

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