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मदरसों में आज भी वही औरंगज़ेब के समय की मुल्ला सालेह वाली पढ़ाई जारी है

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Positive India:Rajkamal Goswami:
यूरोपियन यात्री बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में औरंगज़ेब के उस्ताद की लानत मलामत का ज़िक्र कुछ यूँ किया है,
“औरंगज़ेब जब तख़्तनशीन हुआ तो उसका उस्ताद मुल्ला सालेह जिसने बचपन में उसे तालीम दी थी इस आशा से दरबार में आया कि अब उसे दरबार में कोई ऊँचा मनसब हासिल होगा । औरंगज़ेब का उस्ताद जान कर महलों में उसकी अच्छी ख़ातिर हुई । वह लगातार तीन महीने तक दरबार में जाता रहा लेकिन बादशाह ने उस पर कोई तवज्जो न दी ।

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कुरान में माँ बाप के सामने ऊँची आवाज़ निकालने को मना किया गया है उसके बावज़ूद औरंगज़ेब ने बाप के साथ जैसा सुलूक किया वह तो जगज़ाहिर है अब उस्ताद के साथ तो सुलूक के बारे कोई हुक्म था भी नहीं तो उस्ताद को बाप का हश्र देख कर ही समझ लेना चाहिये था मगर लालच बुरी बला होती है ।

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जब औरंगज़ेब मुल्ला सालेह को दरबार में देखते देखते तंग आ गया तो उसने एक दिन उन्हें एकान्त में बुलाया और कहा कि आख़िर आप हमसे चाहते क्या हैं ? क्या आपका दावा है कि हम आपको दरबार के अव्वल दर्ज़े के उमरा में शामिल कर लें ? अगर यही ख़्वाहिश है तो पहले यह साबित हो जाना चाहिये कि आप किसी निशाने इज़्ज़त के मुस्तहक़ हैं भी या नहीं । हम इससे इन्कार नहीं करते कि अगर आप हमारी तालीम और तरबियत शाइस्ता तौर पर करते तो ज़रूर ऐसी ही इज़्ज़त के मुस्तहक़ होते । फ़रमाइये तो सही कि आपकी तरबीयत से मुझे कौन सी वक़्फ़ियत हासिल हुई ? आपने बताया था कि पूरा फ़िरंगिस्तान ( यूरोप ) एक छोटे से जज़ीरे से ज़्यादा बड़ा नहीं है जहाँ सबसे ताकतवर मुल्क पुरतगाल है फिर हॉलैंड । चीन काशगर ईरान ताज़िकिस्तान के बादशाह मुग़ल बादशाहों के नाम से काँपते हैं । सुबहान अल्लाह आपकी यह जुगराफ़िया दानी और कमाल इल्म तारीख़ का क्या कहना ! क्या मुझ जैसे शख़्स के उस्ताद को लाज़िम न था कि दुनिया की हर एक क़ौम के हालात से मुझे मुत्तिला करता ? मसलन उनकी क़ुव्वते जंगी , रस्मो रिवाज़, मज़ाहिब, और तर्ज़े हुक्मरानी से मुझे आगाह करता ?

बावजूद कि बादशाह को अपनी हमसाया क़ौमों की ज़बान से वाकिफ़ होना ज़रूरी है मगर आपने मुझे अरबी पढ़ना लिखना सिखाया । इस ज़बान को सीखने में मेरी उम्र का एक बड़ा हिस्सा ज़ाया हुआ । आपको यह सोचना चाहिये था कि एक शाहज़ादे को किन किन इल्मों को पढ़ाने की ज़रूरत है मगर आपने मुझे वह पढ़ाया कि जो क़ाज़ियों के लिये मुफ़ीद है और मेरी जवानी के दिन बेफ़ायदा बच्चों जैसी पढ़ाई में बरबाद कर दिये ।

औरंगज़ेब का क्रोध इतने पर भी शांत न हुआ । उसने कहा क्या आपको मालूम न था कि छुटपन में क़ूवतेहाफ़िज़ा ( स्मरणशक्ति) इतनी मजबूत होती है कि हज़ारों माकूल बातें ज़हननशीन हो सकती हैं और इंसान आसानी से इल्मो हुनर हासिल कर सकता है । क्या सारा इल्मो हुनर सिर्फ अरबी में ही सीखा जा सकता है ।

अगर आपने मुझे ठीक से पढ़ाया होता तो मैं आपको उसी तरह सम्मान देता जैसे सिकंदर ने अरस्तू को दिया लेकिन आपने एक शाहज़ादे को यह भी नहीं सिखाया कि रिआया के साथ कैसे बर्ताव करना चाहिये ।

बहरहाल इस तरह बहुत सारी बातें सुनाते हुए उसने मुल्ला से कहा कि बस अब आप अपने गाँव चले जायें और कोई जानने न पाये कि आप कौन हैं ।

मदरसों में आज भी वही मुल्ला सालेह वाली पढ़ाई जारी है और मॉडर्न औरंगज़ेब तैयार होकर निकल रहे हैं । मज़े की बात यह है कि करोड़ो रुपये की ज़कात से चलने वाले इन मदरसों को सरकार भी करोड़ों का अनुदान दे रही है साथ में एक हाथ में कुरान और दूसरे में कम्प्यूटर का नारा भी दिया जा रहा है ।

मैंने बहुत संक्षेप में यह क़िस्सा बयान किया है जिनकी दिलचस्पी हो वे बर्नियर के यात्रा वृत्तांत गूगल पर ऑनलाइन पढ़ सकते हैं । हमारी सरकार को और उस्तादों को ख़ास तौर से इस वाक़ये से सीख लेनी चाहिये ।

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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