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बिहार में ज़हरीली शराब से मौतें

-राजकमल गोस्वामी की कलम से-

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Positive India:Rajkamal Goswami:
अंग्रेज़ी में एक शब्द है बूटलेगिंग (bootlegging ) जिसका मतलब है अवैध शराब की बिक्री । बूटलेगिंग का उद्भव अमेरिका से हुआ जब १९२० में १८वें संविधान संशोधन द्वारा अमेरिका में शराब के उत्पादन बिक्री और निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा दी गई ।

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अमेरिका में पूरे तेरह साल तक शराबबंदी लागू रही । शुरुआती दौर में इसका असर रहा लेकिन जल्दी ही पड़ोसी देश मेक्सिको कनाडा और विस्तृत सागर तट से अवैध शराब की तस्करी शुरू हो गई । तस्कर अपने लंबे लंबे बूटों में बोतलें छुपा कर उपभोक्ताओं तक पहुँचाने लगे । ये तस्कर बूटलेगर शब्द के जन्मदाता थे ।

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शराब आप घर पर बना सकते हैं लेकिन आसवन के समय तापमान नियंत्रित कर मिथाइल अल्कोहल अलग करना पड़ता है जो ६४.७ डिग्री पर उबल कर आसवित हो जाता है जबकि इथाइल अल्कोहल ७८ डिग्री पर आसवित होता है । ये दोनों मिल जायें तो ज़हरीली शराब तैयार हो जाती जिसे पीकर बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई । उधर महामंदी शुरू हो गई जिसमें आबकारी राजस्व की हानि ने कोढ़ में खाज का काम किया ।

व्यापक जनहानि बेरोज़गारी और मंदी से त्रस्त राष्ट्रपति रूज़वेल्ट के समय फिर से संविधान में संशोधन कर १८वें संशोधन को वापस लिया गया और फिर से शराबियों के अच्छे दिन आ गए ।

गुजरात गाँधी जी की जन्मभूमि है और मोरार जी वैकल्पिक पेय पीते थे इसलिए शुरू से ड्राई स्टेट है । क़ानून इतना सख़्त है कि अगर आप राजधानी एक्सप्रेस से मुंबई जा रहे हैं और बड़ौदा के आस-पास आपके सामान में शराब बरामद होती है तो आप पकड़े जाएँगे क्योंकि बड़ौदा गुजरात में है । कतिपय धाराओं के उल्लंघन में शराबबंदी क़ानून में मृत्युदंड का प्रावधान है । पिछले दिनों वहाँ भी ज़हरीली शराब पी कर ४५ लोगों के मरने की ख़बर आई थी ।

क़ुरान ने तीन चरणों में नशाबंदी लागू की जिस दिन शराबबंदी का फ़ाइनल हुक्म नाज़िल हुआ मदीने में घड़े फोड़ दिए गये लेकिन इस्लाम भी शराब को रोक नहीं पाया । जहाँगीर घोर शराबी था और मिर्ज़ा ग़ालिब तो शराब के क़सीदे लिखते थे ।

शराब पीना एक सामाजिक बुराई और प्रज्ञापराध है । शराबियों से करोड़ों रुपये आबकारी टैक्स वसूलने वाली सरकार भी उनको सम्मान जनक दृष्टि से नहीं देखती । सभी शराब पीने वाले शराबी नहीं होते । शराब के पक्ष में सैकड़ों तर्क दिए जा सकते हैं ।

लेकिन सबसे बड़ा तर्क यह है कि कोई सरकार शराबबंदी को पूरी तरह लागू नहीं कर सकती । लोग साइकिल के ट्यूब में भर कर तस्करी करते हैं । शराब के आसवन को नहीं रोक सकती जो प्रेशर कुकर से भी बनाई जा सकती है । देशी बीयर और छाँग के फर्मंटेशन को नहीं रोक सकती । शराबबंदी रहेगी तो लोग मरेंगे ही । यह और बात है कि जहाँ शराबबंदी नहीं है वहाँ भी ज़हरीली शराब से मौते होती ही हैं ।

सरकार शराब बेचे बंद करे या राशन लगा दे पर शराब की जगह विष पी कर मौतें नहीं होनी चाहिए । मरने वाले हमेशा मेहनतकश और मज़दूर तबके के मासूम लोग होते हैं । जो मालदार होते है उन्हें तो स्कॉच भी उपलब्ध होती है ।

सबको अमृत की दो बूँद मिल जायेंगीं हमने सारा जनम सिंधु मंथन किया ।

जो किनारे रहे वारुणी पा गये हमको विष मिल गया आचमन के लिए ॥

साभार:राजकमल गोस्वामी-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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