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कोरोना काल से जीवन को क्या सही सबक सिखने मिला: उपराष्ट्रपति नायडू

महामारी को एक 'सुधारक' के रूप में देखा जाना चाहिए

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पॉजिटिव इंडिया :रायपुर; 13 जुलाई 2020.

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भारत के उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने लोगों से कोरोना वायरस के चलते बंदिश के दौरान पिछले कुछ महीनों के जीवन पर आत्मनिरीक्षण करने का आग्रह किया है और मूल्यांकन भी कि क्या उन्होंने सही सबक सीखा और ऐसी अनिश्चितताओं से निपटने के लिए खुद को तैयार किया है।

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कोविड-19 महामारी के कारणों और परिणामों पर लोगों के साथ जुड़ने की बात करते हुए श्री नायडू ने फेसबुक पर आज एक पोस्ट लिखा, ‘कोरोना काल में जीवन पर चिंतन’। वार्तालाप के अंदाज में लिखते हुए उन्होंने 10 सवाल सामने रखे, जिनके जवाबों से पिछले चार महीनों से ज्यादा समय में बंदिश के दौरान सीखे गए सबक का आकलन करने और जीवन की मांगों में क्या परिवर्तन आया, यह समझने में मदद मिलेगी।

श्री नायडू ने कहा कि 10 बिंदुओं का मैट्रिक्स यह जानने में भी मदद करेगा कि क्या लोगों ने आवश्यक समझ के साथ खुद को इस तरह तैयार कर लिया है ताकि भविष्य में ऐसी कठिनाइयों की पुनरावृत्ति को रोकने में मदद मिल सके।

उपराष्ट्रपति ने जोर देकर कहा कि महामारी को न केवल एक आपदा बल्कि जीने के दृष्टिकोण और प्रथाओं में आवश्यक परिवर्तन करने वाले एक ‘सुधारक’ के रूप में भी देखने की जरूरत है जिससे हम प्रकृति और संस्कृति तथा सहायक मार्गदर्शक सिद्धांतों और लोकाचार के साथ सामंजस्य बनाकर रहें। उन्होंने कहा, ‘जीवन मार्ग का उसकी सभी अभिव्यक्तियों और समग्र रूप में लगातार मूल्याकंन उच्च जीवन के लिए एक जरूरी शर्त है। ऐसा ही एक अवसर अभी है क्योंकि हम कोरोना वायरस के साथ जी रहे हैं।’

श्री नायडू के ‘कोरोना काल में जीवन पर चिंतन’ का जोर आधुनिक जीवन की कार्यप्रणाली, प्रकृति और रफ्तार पर फिर से गौर करने तथा एक सामंजस्यपूर्ण और नपे-तुले जीवन के लिए उपयुक्त परिवर्तन के अलावा जीवन के उद्देश्य को ठीक तरह से परिभाषित करने पर है।

चिंता मुक्त जीवन के लिए श्री नायडू द्वारा दिए गए सुझावों में शामिल हैं; सही सोचना और करना जैसे भोजन को औषधि के रूप में देखिए जो स्वस्थ जीवन का निर्वाह करता है; भौतिक लक्ष्य से परे जाकर जीवन का एक आध्यात्मिक आयाम प्राप्त करना; सही और गलत के सिद्धांतों और प्रथाओं का पालन करना; दूसरों के साथ साझा करना और उनकी देखभाल करना; सामाजिक बंधनों का पोषण और एक सार्थक जीवन के लिए जीने का उद्देश्य तय करना है।

लगातार आपदाओं के कारणों पर गौर करते हुए श्री नायडू ने कहा, ‘ग्रह को हमारी जरूरत नहीं है बल्कि हमें ग्रह की जरूरत है। ग्रह पर एकमात्र स्वामित्व का दावा करना जैसे कि यह केवल इंसानों के लिए है। इसने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है और कई तरह की कठिनाइयां पैदा हो गईं।’

महामारी के समय में जीने के अनुभव को शामिल करते हुए मैट्रिक्स में आत्म-मूल्यांकन का सुझाए दिया गया, जिसमें शामिल है कि क्या आपको; महामारी के कारणों के बारे में पता है; कोरोना के प्रकोप से पहले जीने के तरीकों में बदलाव करने के लिए तैयार थे; जीवन के मायने फिर से परिभाषित हुए हैं; माता-पिता और अन्य बड़ों की देखभाल करने जैसी विभिन्न भूमिकाओं को निभाने में अंतराल की पहचान की है; अगली विपत्ति का सामना करने के लिए तैयार किया है; जीवन के धर्म को समझा; आध्यात्मिक प्रबोधन की जरूरत को समझा; पहचान की गई कि प्रतिबंध के दौरान सबसे ज्यादा क्या चीज छूट गई; महामारी के कारण और इसके अलग-अलग प्रभाव से अवगत हैं और क्या महामारी को केवल आपदा के रूप में देखते हैं या सुधारक के रूप में भी।

महामारी के अलग-अलग प्रभावों में से कुछ वर्ग इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, श्री नायडू ने कहा, ‘हम बराबर (समकक्ष) जन्में हैं और समय के साथ असमान होते गए। महामारी ने कुछ वर्गों में बढ़ रहे जोखिम को उजागर किया है जिसकी वजह वो नहीं हैं। वे ज्यादा व्यवस्थित हैं और उन्हें उचित रूप से मदद की दरकार है। आपके जीने का तरीका दूसरों के बढ़े हुए जोखिमों के कारणों में से एक हो सकता है।’
लार्वा के कोकून के रूप में जीवन को धीमा करने और फिर इससे तितली के रूप में निकलने की घटना का जिक्र करते हुए श्री नायडू ने लोगों से मौजूदा महामारी के दौरान जीवन के अनुभव को समझते हुए तितली की तरह उभरने का आग्रह किया और सुरक्षित भविष्य के लिए उससे सही सबक लेने को कहा।

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