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छोटे राज्य का बड़ा चुनाव

-दिवाकर मुक्ति​बोध की कलम से-

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Positive India:Diwakar Muktibodh:
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को छत्तीसगढ़ की 11 सीटों में से एक बस्तर में मतदान की प्रक्रिया पूरी हो गई. इस अनुसूचित जनजाति क्षेत्र में 68 .5 प्रतिशत मतदान हुआ है. इस दफे मतदान में मामूली वृध्दि हुई है. 2019 के चुनाव में 66.26 प्रतिशत वोट पड़े थे. अब दूसरे चरण में 26 अप्रैल को तीन निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव, महासमुंद व कांकेर में मतदान होगा व शेष सात सरगुजा, जांजगीर-चांपा, रायगढ, कोरबा, बिलासपुर, दुर्ग व राजधानी क्षेत्र रायपुर में सात मई को तीसरे व अंतिम चरण के मतदान के साथ ही राज्य में चुनाव की एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रक्रिया पूर्ण हो जाएगी. देश भर में चार जून को मतगणना एव॔ नतीजों की घोषणा के साथ ही छत्तीसगढ़ की भी तस्वीर स्पष्ट हो जाएगी।

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भाजपा का संकल्प राज्य की सभी 11 सीटें जीतने का है. पिछले चुनाव में इनमें से दो सीटें बस्तर व कोरबा कांग्रेस के हाथ लग गई थी हालांकि तब यानी पांच माह पूर्व ,नवंबर 2018 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत हासिल किया था तथा प्रदेश में भूपेश बघेल की सरकार बन गई थी। लेकिन विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को 90 में से 68 सीटें जीताकर देने वाले राज्य के मतदाताओं ने मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में मतदान किया. दरअसल वह चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा गया था और भाजपा की जीत , मोदी की जीत थी. इस बार भी मोदी का ही चेहरा है किंतु नई गारंटियों के साथ।

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हिंदुत्व तो खैर भाजपा का पुराना एजेंडा है, वह अब अधिक भावात्मक है तथा जनमानस पर उसका प्रभाव स्पष्टतः महसूस किया जा सकता है । वैसे भी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से छत्तीसगढ़ भाजपा का गढ़ है तथा बीते चार चुनावों में तमाम प्रयासों के बावजूद कांग्रेस इसे भेद नहीं पाई है। सामान्यतः प्रत्येक चुनाव में भाजपा 11 सीटों में से 9-10 सीटें जीतती रही है।

ऐसे में ये सभी 11 सीटें जीतने की उसकी उम्मीदें यदि टूटती हैं तो इसका बड़ा कारण उसका अति आत्मविश्वास होगा जो जीत तय मानकर नेताओं की बैठकों व जनसभाओं में छलकता रहा है जबकि राजनांदगांव, जांजगीर-चांपा, कांकेर, कोरबा , सरगुजा तथा रायगढ ऐसी सीटें हैं जहां भाजपा को कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ रहा है. बस्तर भी इनमें से एक है जहां मतदान हो चुका है.यहां ऊंट किस करवट बैठेगा, अनुमान लगाना भी मुश्किल है।

भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए विभिन्न प्रचार माध्यमों के जरिए जो चक्रव्यूह रचा है, वह इस बात का प्रमाण है कि पार्टी ने इस छोटे से राज्य के चुनाव को भी बड़ा बना दिया है। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा व राष्ट्रीय संगठन के कुछ बड़े पदाधिकारियों का लगातार प्रवास तथा आमसभाओं का आयोजन तो अपनी जगह है ही,अधिक महत्वपूर्ण है प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का छत्तीसगढ़ प्रवास. अपने कार्यकाल के दस वर्षों में पहली बार प्रधान मंत्री 23 व 24 अप्रैल को दो दिन छत्तीसगढ़ प्रवास पर रहे. उन्होंने रायपुर में रात्रि विश्राम किया तथा इस दौरान चार लोकसभा क्षेत्रों रायगढ़, जांजगीर-चांपा, महासमुंद तथा सरगुजा के अंतर्गत विभिन्न स्थानों में चुनावी जनसभाएं कीं. प्रधानमंत्री द्वारा छत्तीसगढ़ को इतना समय देने से यह बात स्पष्ट है कि भाजपा मोदी-गारंटी के जरिए मतदाताओं का विश्वास अर्जित करने के मामले में कसर नहीं छोड़ना चाहती।

भाजपा का सघन चुनाव प्रचार एवं उसकी आक्रामकता को देखते हुए यदि यह कहा जाए कि कांग्रेस इस रेस में कही नहीं है तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी लेकिन युद्ध कैसा भी क्यों न हो , कछुआ व खरगोश की कहानी को भी नहीं भूलना चाहिए . धीमी व सुस्त नज़र आने वाली चाल भी कभी-कभी मैदान मार लेती है। कांग्रेस के साथ भी ऐसा ही है।
प्रत्याशी का व्यक्तिगत प्रभाव, राजनीति में उसका कामकाज व अंचल में लोकप्रियता के साथ पार्टी के प्रतिबद्ध वोटों को जोड़ लें तो यह कहा जा सकता है कि अधिकांश सीटों पर वह अच्छे मुकाबले में है, ठीक पिछले चुनाव की तरह , भले ही राजनीति में किनारे लग चुके अनेक कांग्रेसी नेता विभिन्न कारणों से भाजपा के रास्ते पर क्यों न चल पड़े हों। उनके दलबदल से पार्टी की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा है । 2019 के चुनाव के आंकडों के लिहाज से पांच लोकसभा क्षेत्र रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, बिलासपुर तथा सरगुजा को छोड़ दें जहां विजेता भाजपा व कांग्रेस के बीच वोटों का भारी अन्तर रहा था लेकिन अन्य चार सीटें रायगढ, जांजगीर -चांपा , महासमुंद तथा कांकेर में भाजपा की जीत के वोटों का फासला काफी कम था। कांकेर में तो भाजपा प्रत्याशी मोहन मंडावी मात्र 6,916 वोटों से जीत पाए थे। हालांकि कांग्रेस ने जो दो सीटें कोरबा व बस्तर जीती थीं, वहां भी जीत का अंतर अधिक नहीं था। बस्तर से वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने 38,982 व कोरबा से ज्योत्स्ना महंत ने 26,349 वोटों से विजय दर्ज की थी। कहना न होगा कि 2023 के विधान सभा चुनाव के बाद लोकसभा क्षेत्रों की स्थिति को देखें तो कांकेर लोकसभा में कांग्रेस के 8 में से 5, राजनांदगांव में 5 , बस्तर में 3 , रायगढ में 4 तथा जांजगीर-चांपा में सभी 8 विधायक उसके हैं। यदि ये विधायक लोकसभा के इस चुनाव में भी कांग्रेस के वोट बैंक को कायम रख पाते हैं तो मानना होगा कि भाजपा का सभी सीटें जीतने का संकल्प पूरा नहीं हो पाएगा।

जो संभावनाएं नज़र आ रही, उस पर यदि भरोसा करें तो कांग्रेस दो से अधिक सीटें जीत रही हैं जिनमें पूर्व मुख्य मंत्री भूपेश बघेल की हाई प्रोफाइल राजनांदगांव सीट भी शामिल हैं। उनके नेतृत्व में कांग्रेस पिछला विधान सभा चुनाव भले ही हार गई हो, पर उनका पांच वर्षों का कार्यकाल , विकास का कार्यकाल रहा था। इस दौरान विभिन्न योजनाओं के जरिए कृषि व कृषकों की जो आर्थिक उन्नति हुई, जिस तरह छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति व छत्तीसगढ़ अस्मिता को बढ़ावा मिला, नवजागरण हुआ, वह लोगों की स्मृतियों में है। हालांकि वे महादेव एप भ्रष्टाचार सहित विभिन्न आरोपों का सामना कर रहे हैं फिर भी सार्वजनिक हितों के उनके प्रयासों का लाभ उन्हें मिल सकता है। लेकिन यदि वे हार जाते हैं , हालांकि इसकी संभावना कम है, फिर भी ऐसा हुआ तो इस लोकसभा चुनाव में यह सबसे बड़ा उलटफेर होगा। इस सीट पर मतदान 26 अप्रैल को है। राजनांदगांव की तरह महासमुंद की सीट भी हाई-प्रोफाइल है। यहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू की प्रतिष्ठा दांव पर है। यहां भी 26 अप्रैल को मतदान होगा। तीसरी हाई-प्रोफाइल सीट कोरबा है जहां 7 मई को चुनाव है। यहां सांसद ज्योत्स्ना महंत , भाजपा की कद्दावर प्रत्याशी सरोज पांडे से संघर्ष कर रही है। ज्योत्स्ना के प्रचार की कमान उनके पति चरणदास महंत के हाथ में है जो नेता प्रतिपक्ष है। यानी पत्नी से अधिक पति की लोकप्रियता कसौटी पर है। तीनों महत्वपूर्ण सीटों पर चल रहे चुनावी घमासान को देखते हुए सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि जो कोई जीतेगा, हार-जीत का अंतर मामूली रहेगा। अलबत्ता यदि कांग्रेस दो से अधिक सीटें जीत पाती हैं तो यह एक उपलब्धि होगी और यदि भाजपा के सभी प्रत्याशी जीत दर्ज करते हैं तो यह विशुद्ध रूप से केवल मोदी-गारंटी की जीत होगी, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की। मोदी-शाह के छत्तीसगढ़ मिशन की।

साभार:दिवाकर मुक्ति​बोध-(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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